ललित बेरी
कौन कहता है कि पुत्र ही पिता की विरासत को आगे लेकर जाते हैं? कौन कहता है कि पुत्री पराया धन होती है? जो भी यह कहता है उसे श्रीमती हेमा सिंह से एक मुलाकात अवश्य कर लेनी चाहिए। सिनेमा जगत के जाने माने अभिनेता पंडित कन्हैयालाल चतुर्वेदी की आत्मजा श्रीमती हेमा सिंह एक आदर्श सुपुत्री की जीवंत उदाहरण है।
अपने स्वर्गीय परंतु प्रतिभा के माध्यम से जीवित पिता को अमर देखने का सपना साकार करने हेतु श्रीमती हेमा सिंह ने ‘ नाम था कन्हैयालाल ‘ शीर्षक से एक वृतचित्र ( डॉक्यूमेंटरी फिल्म) का निर्माण किया जो कि एम. एक्स. प्लेयर पर सफलतापूर्वक चल रही है। मेरा सौभाग्य है कि इस फिल्म के लिए मुझे क्रिएटिव कंसलटेंट का कार्यभार सौंपा गया। फिल्म के प्रति वार्तालाप संबंधित प्रथम मुलाकात में ही मेरे मुख से ये शब्द निकले : यथा पिता तथा सुता यानि कि यह पुत्री पिता के ही समान है।
पिता प्रति उनका स्नेह वृतचित्र तक ही सीमित नहीं है। अपने पिता को समर्पित अभिनय रत्न पंडित कन्हैयालाल मेमोरियल ट्रस्ट की संस्थापना की है जो नारी सशक्तिकरण हेतु सक्रिय संस्था है। आजकल वह अपने पिता जी की जीवन गाथा ( बायोग्राफी) के लेखन को समय अर्पित कर रही हैं जिसमें अभिनय के अतिरिक्त अनेक पहलू भी उजागर होंगे।
15 दिसम्बर 1910 को बनारस में जन्मे पंडित कन्हैयालाल चतुर्वेदी जिनको फिल्मों में कन्हैयालाल के नाम से श्रेय दिया जाता था, एक बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी थे। उनका नाम उन चन्द अभिनेताओं की कतार में शुमार है जिन्हें उनके अभिनीत पात्र के नाम से संबोधित किया जाता रहा है। महबूब खां की बहुचर्चित फिल्म मदर इंडिया में उनका अभिनीत सुखीलाला का पात्र इतना प्रसिद्ध हुआ कि आज भी लोग उन्हें सुखीलाला के नाम से पुकारते हैं। आज भी लालची, धूर्त, सूदखोर व्यक्ति की भूमिका अदा करनी हो तो कहीं न कहीं पंडित कन्हैयालाल जी की छवि उस अभिनेता में नज़र आती है। उल्लेखनीय है कि मदर इंडिया महबूब खां की ही फिल्म औरत का रीमेक थी। केवल कन्हैयालाल जी ही अभिनेता थे जिन्हें महबूब खां ने न केवल दोहराया बल्कि दोनों बार सुखीलाला की ही भूमिका दी। यह पंडित कन्हैयालाल जी की प्रतिभा का साक्ष्य है।
नेगेटिव शेडस ही नहीं पोजिटिव शेडस में भी उन्होंने अमिट छाप छोड़ी है। उनमें धरती कहे पुकार के, दुश्मन, सत्यम शिवम सुंदरम, मेरी सूरत तेरी आँखें उल्लेखनीय हैं। मदर इंडिया के सुखीलाला के इलावा पंडित कन्हैयालाल जी अभिनीत लाल हवेली के चाचा, पंचायत के चरणदास, गंगा जमुना के कल्लू, ऊँचे लोग के गुणीचंद, उपकार के धनीराम, जीवन मृत्यु के जगत नारायण, दुश्मन के दुर्गा प्रसाद, हम पांच के नैनसुख, हथकड़ी के रघुवीर, मेरी सूरत तेरी आँखें के रहमत को भी कोई कैसे भूल सकता है। पंडित कन्हैयालाल चतुर्वेदी जी सिर्फ फिल्मों से ही नहीं जुड़े थे, वह रंगमंच पर भी सक्रिय थे। बहुत कम लोग जानते हैं कि वह गीतकार भी थे।
कला के क्षेत्र में लम्बी और सफल पारी खेलने वाले पंडित कन्हैयालाल चतुर्वेदी जी ने 14 अगस्त 1982 को मृत्युलोक पृथ्वी को अलविदा कह कर कृष्ण कन्हैया के देवलोक में प्रस्थान किया।
हाँ, दुःख इस बात का है कि इतने महान कलाकार को सरकार की तरफ से सम्मानजनक अवार्ड्स जैसे पद्म अवार्ड, दादा साहेब फाल्के अवार्ड से अलंकृत नहीं किया गया।
इस विषय पर बात करते हुए उनकी सुपुत्री हेमा सिंह कहते हैं कि माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के निर्वाचन क्षेत्र से संबंध रखने वाले मेरे पिता जी दादा साहेब फाल्के अवार्ड के हक़दार हैं। यह सोचकर ही संतोष हो जाता है कि उनके प्रशंसकों का स्नेह ही वास्तविक अवार्ड है।