डॉ. गोपाल चतुर्वेदी
वृन्दावन।गोविन्द घाट स्थित अखिल भारतीय श्रीपंच राधावल्लभीय निर्मोही अखाड़ा (श्रीहित बड़ा रासमण्डल) में श्रीमहंत लाड़िली शरण महाराज के नेतृत्व में चल रही अष्टदिवसीय ब्रज चौरासी कोस दर्शन यात्रा अत्यंत श्रद्धा एवं हर्षोल्लास के साथ संपूर्ण हुई।जिसके अंतर्गत देश-विदेश के सैकड़ों भक्तों-श्रृद्धालुओं ने समूचे ब्रज चौरासी कोस की यात्रा कर पुण्य अर्जित किया।
इस अवसर पर आयोजित संत-विद्वत संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए श्रीहित बड़ा रासमण्डल के अध्यक्ष श्रीमहंत लाड़िली शरण महाराज ने कहा कि ब्रज चौरासी कोस की पावन भूमि कोई साधारण भूमि नहीं, अपितु स्वयं अखिल कोटि ब्रह्माण्ड नायक परब्रह्म परमेश्वर भगवान श्रीकृष्ण का ही वांग्यमय स्वरूप है।इसकी यात्रा करने वाले भक्तों व श्रृद्धालुओं पर सदैव उनकी कृपा दृष्टि बनी रहती है।
बाद ग्राम स्थित श्रीहित हरिवंश महाप्रभु की जन्मभूमि आश्रम के महन्त दम्पत्ति शरण महाराज (काकाजी) एवं महामंडलेश्वर स्वामी सच्चिदानंद शास्त्री महाराज ने कहा कि ब्रज चौरासी कोस की यात्रा करने से चारों धाम, सप्त पुरियां एवं समस्त तीर्थों के दर्शनों का फल प्राप्त होता है।क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञानुसार ये सभी ब्रज चौरासी कोस की दिव्य भूमि में ही विद्यमान हैं।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. गोपाल चतुर्वेदी एवं प्रख्यात भागवताचार्य डॉ. हरेकृष्ण शर्मा “शरद” ने कहा कि ब्रज चौरासी भूमि लीला पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण और उनकी आल्हादिनी शक्ति स्वरूपा श्रीराधा रानी की क्रीड़ा स्थली है।उनकी कृपा पाए बिना यहां आना संभव नहीं है।हम सभी अत्यंत सौभाग्यशाली हैं,जो हम को श्रीराधा-कृष्ण की अपार कृपा प्राप्त हुई है।
संत-विद्वत संगोष्ठी में महामंडलेश्वर स्वामी राधाप्रसाद देव जू महाराज, सिंहपौर हनुमान मन्दिर के महंत सुंदरदास महाराज, आचार्य कनिका गोस्वामी, डॉ. रमेश चंद्राचार्य महाराज “विधिशास्त्री”, महंत मोहिनी शरण महाराज, पण्डित राधावल्लभ वशिष्ठ, युवा साहित्यकार डॉ. राधाकांत शर्मा, ठाकुर दिनेश सिंह तरकर, पण्डित इन्द्रकुमार शर्मा एवं प्रियावल्लभ वशिष्ठ आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इससे पूर्व दुग्धधारा के साथ श्रीधाम वृन्दावन की पंचकोसी परिक्रमा की गई।साथ ही श्री यमुना महारानी का दिव्य चुनरी मनोरथ किया गया।तत्पश्चात सरस भजन संध्या का आयोजन हुआ।जिसमें प्रख्यात भागवताचार्य पण्डित राम प्रकाश भारद्वाज “मधुर” ने अपनी वाणी में संगीत की मृदुल स्वर लहरियों के मध्य श्रीराधा-कृष्ण की महिमा से ओतप्रोत भजनों का गायन कर सभी को भाव-विभोर कर दिया।इसके अलावा संत, ब्रजवासी, वैष्णव सेवा एवं वृहद भंडारा भी हुआ।