हिन्दी एवं उर्दू अकादमी, दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में सेंट्रल पार्क, कनॉट प्लेस, नई दिल्ली में तीन दिवसीय रंग धनक के कार्यक्रम का प्रारम्भ कवयित्री सम्मेलन एवं मुशायरा के आयोजन से हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता जानी-मानी कवयित्री श्यामा सिंह सबा द्वारा की गई।
इस कवयित्री सम्मेलन और मुशायरा का संचालन हिन्दी की प्रसिद्ध कवयित्री डॉ. कीर्ति काले ने किया।
कार्यक्रम की शुरुआत रश्मि शाक्य की सरस्वती वंदना से हुई। नैनीताल से पधारी गौरी मिश्रा ने अपने काव्य-पाठ में पढ़ा:- मिलाकर वक़्त से आँखें, हर एक लम्हा चुरा लें हम/जो अपने हो नहीं पाए, उन्हें अपना बना लें हम/यहाँ ढूंढे से भी ख़ुशियाँ, कहाँ मिलती ज़माने में/चलो अपने ही ग़म पे, आज थोड़ा मुस्कुरा लें हम। वंदना विशेष ने पढ़ा:- मेरे मासूम से दिल के सभी अरमान ले लेगी/मेरे होठों की सारी ये मघुर मुस्कान ले लेगी/बड़ी मुश्किल से इस दिल को संभाला आज तक मैंने/तुम्हारी बेरुख़ी एक दिन हमारी जान ले लेगी।
शायरा डॉ. नसीमा निशा ने अपने कलाम में पढ़ा:- देखो तो दीवार कहाँ है, दो धारी तलवार कहाँ है/गंगा जल जो चाहे पी ले, मज़हब पहरेदार कहाँ है। शायरा अना देहलवी ने पढ़ा:- ज़िन्दगी जिस पे मैंने वारी थी, हर अदा जिसकी मुझको प्यारी थी/वो नज़र से उतर गया है अना, मैंने जिसकी नज़र उतारी थी। श्रृंगार रस की कवयित्री मनीषा शुक्ला ने पढ़ा:- एक सूखे हुए बाँस का अंश थी/कृष्ण ने जब छुआ तो बाँसुरी हो गई। डॉ. कीर्ति काले ने अपने काव्य-पाठ में पढ़ा:- अयोध्या में अगर ढूंढोगे तो श्रीराम मिलते हैं/जो वृंदावन में ढूंढोगे तो फिर घनश्याम मिलते हैं/अगर काशी में ढूंढोगे तो भोलेनाथ मिल जाएं/मगर माँ-बाप के चरणों में चारों धाम मिलते हैं। अपने अध्यक्षीय काव्य-पाठ में श्यामा सिंह सबा ने पढ़ा:- चलो बन जाएं उनकी रौशनी हम/वो आँखें जिनमें बिनाई नहीं है।
इस कार्यक्रम में मुम्बई से पधारीं कवयित्री ज्योति त्रिपाठी, शायरा डॉ. सलमा शाहीन, ईशा नाज़ और मुमताज़ नसीम से काव्य-प्रेमी श्रोताओं को अपने कलाम और कविताओं से मंत्रमुग्ध कर दिया।
इस अवसर पर अनेक गणमान्य व्यक्ति और बड़ी संख्या में काव्य-प्रेमी दर्शक उपस्थित थे।
कार्यक्रम के अंत में हिन्दी अकादमी के सचिव श्री संजय कुमार गर्ग ने सभी कवयित्रियों-शायरा, अतिथियों और दर्शकों का आभार व्यक्त किया।