मधुरेन्द्र सिन्हा
उत्तर भारत के लोग महाराष्ट्र में चार दशकों से चल रहे मराठा आंजोलन से अनभिज्ञ हैं और उतना ही जानते हैं जितना टीवी चैनल या कुछ राष्ट्रीय समाचार पत्र बताते हैं। इससे बहुत ज्यादा भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है और लोग कई तरह की बातें करते हैं खासकर इसलिए कि यह आरक्षण से जुड़ा हुआ मसला है। सच तो यह है कि यह मुद्दा अस्सी के दशक से शुरू हुआ लेकिन इसका उचित समाधान कभी नहीं हुआ। इस दौरान तीन-चार मराठा मुख्य मंत्री भी हुए लेकिन मराठा आरक्षण के भागीदारों को न्याय नहीं मिला। वे सभी आरक्षण के लिए आंदोलन करते रहे लेकिन ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
दरअसल समस्या इसलिए खड़ी हुई कि आजादी के बाद औरंगाबाद सहित महाराष्ट्र के आठ जिलों को हैदराबाद के निजाम से लेकर महाराष्ट्र में शामिल कर दिया गया। लेकिन उसके बाद ही समस्या शुरू हुई। उत्तर भारत के लोग महाराष्ट्र की जाति व्यवस्था को नहीं जानते। उनके लिए मैं बता देता हूं कि वहां कूणबी समुदाय है जो मूलतः खेतिहर है और छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना में रहे थे और अपनी बहादुरी का परिचय दिया था। इन लोगों ने ही यह आंदोलन किया जिसे मराठा आंदोलन का नाम दिया गया। लेकिन यहां पर एक तथ्य भी है कि मराठा कुछ मायनों में कूणबी समुदाय से अलग हैं और उनके बीच रोटी-बेटी का संबंधा है। इसलिए मराठा-कूणबी भी कहा जाता है। कूणबी समुदाय की जनसंख्या महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा रही है। 1881 में अंग्रेजों ने जो गैजेट बनाया था उसके मुताबिक महाराष्ट्र के उन आठ जिलों में कूणबी समुदाय की आबादी सबसे ज्यादा थी। 1984 में हैदराबाद के निजाम के गैजेट में भी इनके खेतिहर होने के बारे में विस्तार से वर्णन है। लेकिन 1952 में सरकार ने इन्हें ओबीसी की श्रेणी में नहीं रखा जबकि महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों में जो मराठा थे उन्हें रखा गया। कर्नाटक में, मराठों को अन्य पिछड़ा वर्ग के रूप में वर्गीकृत किया गया है, कोडगु जिले के मराठों को छोड़कर जिन्हें अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है। महाराष्ट्र में उन्हें मंडल आयोग द्वारा अगड़ी जाति के रूप में वर्गीकृत किया गया था। और यहां से समस्या जटिल हो गई क्योंकि अन्य पिछड़ी जातियों को तो मंडल कमीशन ने आरक्षण दे दिया लेकिन कूणबी समुदाय जिसे वास्तव में यह मिलना चाहिए था, वह वंचित रह गया। 1994 में इसके लागू होने के बाद से माहौल और गरमा गया। कुणबी समुदाय के लोग आंदोलन तेज करने लगे। यह मामला राजनीति का शिकार हो गया। तरह-तरह की बातें होने लगीं। कूणबी मराठा आंदोलन बहुत तेज होने के बाद महाराष्ट् के मुख्य मंत्री एकनाथ शिंदे ने अगस्त 2023 में एक समिति बनाई। जस्टिस संदीप शिंदे के नेतृत्व में एक तीन सदस्यीय समिति ने इस मुद्दे का हल निकालने की दिशा में काम किया। समिति ने कुल तीन रिपोर्ट सरकार को दी ताकि इस मामले पर प्रकाश पड़ सके। इसके बाद सरकार ने इस समिति को पांच महीने का विस्तार दे दिया ताकि और भी मुद्दे स्पष्ट हो सकें। उसे यह भी कहा गया कि वह हैदराबाद से इस बारे में कुछ दस्तावेज लाये। इस समिति की रिपोर्ट काफी मायने रखती है।
लेकिन इस बीच यहां पर बता देना उचित होगा कि यह आंदोलन तेज हुआ तो उसका कारण था कि उस समय युवा एक्टिविस्ट मनोज जरांगे पाटील के कारण जिन्हें कूणबी समुदाय का जबर्द्स्त साथ मिला। बीड जिले के मातोरी के माशिरूर-कासार तालुका में गरीब परिवार में जन्मे 41 वर्षीय जरांगे-पाटील तीन भाइयों और एक बहन में सबसे छोटे हैं। गन्ना काटने का काम करने वाले अपने पिता और भाइयों की कड़ी मेहनत के बावजूद उन्हें गरीबी का सामना करना पड़ा। उन्होंने कम उम्र में ही मराठा हितों के लिए एक आंदोलनकारी के रूप में अपनी पहचान बना ली। जालना जिले में वे अपने मामा के घर चले गए और वहां शादी कर ली और वहीं बस गए। वे मराठा संगठनों में रहे और बाद में कांग्रेस से जुड़े। उन्होंने ‘शिवबा संगठन’ नामक संगठन भी बनाया। देखते ही देखते उनकी लोकप्रियता मराठवाड़ा में आसमान छूने लगी और लाखों लोग उनके पीछे खड़े हो गये। इससे आंदोलन बढ़ता गया। सितंबर 2023 में जालना जिले में लाठीचार्ज के दौरान उनका नाम सुर्खियों में आया। वहां वे मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग करते हुए आमरण अनशन कर रहे थे। जरांगे पाटील राज्य स्तर के नेता तो बन गये हालांकि वह अपने को नेता नहीं मानते बल्कि एक कार्यकर्ता ही मानते हैं। उनका विनम्र किन्तु दृढ़ स्वभाव उन्हें ऊँचाइयों पर ले गया। सबसे बडी बात यह थी कि वह किसी तरह की राजनीति में नहीं रहे और न ही किसी राजनीतिज्ञ का साथ लेते थे। उन्होंने जनता के बीच अपनी जगह बना ली और पिछले साल एक राज्यव्यापी आंदोलन किया जिसकी गूंज चारों ओर सुनाई दी। उनके समर्थकों ने लाखों की तादाद में आकर मुंबई महानगर में अपना शांतिपूर्ण शक्तिप्रदर्शन किया। वरिष्ठ मराठी पत्रकार धाराजी भूसारे ने जोर देकर कहा कि यह आंदोलन स्व प्रेरित है और सभी आंदोलनकारी अपने पैसे खर्च करके इसमें भाग ले रहे थे। वे स्वयं इस आंदोलन से कई दशकों से जुड़े हुए हैं ताकि कुणबी मराठा समुदाय को आरक्षण तथा न्याय मिल सके। इसके लिए उन्होंने खुद काफी पैसा खर्च किया जबकि उनकी सामर्थ्य उतनी नहीं थी। भूसारे ने इस बात का कड़े शब्दों में खंडन किया कि जरांगे पाटील के पीछे शरद पवार या इस तरह के किसी नेता का हाथ है। भूसारे ने कहा कि जरांगे के साथ वह वर्षों से जुड़े हुए हैं और उन्हें नजदीक से जाना है। वह सच्ची बातें कहते हैं और उनका कोई स्वार्थ नहीं है। उन्होंने हमेशा शांतिपूर्ण आंदोलन की बात की है। उन्होंने कहा कि जरांगे पाटील शांतिपूर्ण आंदोलनों में विश्वास करते हैं और किसी तरह की उग्रता के पक्षधर नहीं हैं। एक अन्य बड़े समर्थक शिवाजी देशमुख भी यही बात कहते हैं। वह कहते हैं कि जरांगे पाटील के पीछे करोड़ों लोग है और इसलिए उनकी लोकप्रियता इतनी है। वह किसी राजनीतिज्ञ के कहने पर नहीं चलते इसलिए भी उन पर आरोप लगते हैं लेकिन वह सच्चे इंसान हैं और जिन लोगों ने उनसे मुलाकात की है या उनकी बातें सुनी हैं वे उनके समर्थक बन गये हैं। यह स्व स्फूर्त आंदोलन है और इस पर किसा भी तरह का आरोप लगाना अनुचित है।
इस प्रश्न के जवाब में कि जरांगे पाटील ने 10 फीसदी आरक्षण की मांग की बजाय मराठाओं को ओबीसी वर्ग में शामिल करने का दबाव क्यों बनाया, भूसारे कहते हैं कि उन्हें मालूम था कि इस तरह की कोई भी व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट में नहीं टिक पायेगी इसलिए यह मांग की गई है। सरकार पर जब दबाव पड़ा तो वह इस बात के लिए मान गई कि मराठाओं को आरक्षण ओबीसी कोटे से ही मिलेगा। उन्हें अपना जाति प्रमाण पत्र देना होगा। यहां पर थोड़ी समस्या आती है कि पुराने दस्तावेज मिलने में काफी दिक्कत है।
डॉक्टर जनार्दन पिंपले, जिन्होंने इस विषय का गहन अध्ययन किया है बताते हैं कि कुणबी समुदाय या मराठा समुदाय के उन लोगों की जाति का पता लगाना इसलिए भी संभव नहीं है क्योंकि हैदाराबाद का निजाम जब भारत ने ले लिया था तो उस समय रजाकारों ने वहां की बड़ी कचहरी में आग लगा दी ताकि सभी दस्तावेज नष्ट हो जाएं और ऐसा हुआ भी। वह बताते हैं कि समस्या यह है कि इन आठ जिलों के कूणबी मराठाओं के पास उस तरह का कोई पुराना दस्तावेज नहीं है। लेकिन 1881 के अंग्रेजों के गजट में उनका पूरा जिक्र है और उधर निजाम के गजट में भी इसका जिक्र है। इस आधार पर ही बात बन सकती है।
अब महाराष्ट्र सरकार ने कूणबी मराठाओं को ओबीसी वर्ग में डालने का आदेश तो जारी कर दिया है लेकिन ओबीसी नेता इससे नाराज हैं और कुछ कोर्ट में भी चले गये हैं। ओबीसी नेता छगन भुजबल ने तो इस पर घोर आपत्ति की है और इसका विरोध किया है। उन्होंने तो इसके विरोध में कई रैलियां भी की हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि छगन भुजबल ओबीसी वर्ग में अपनी संप्रभुता बनाये रखने के लिए ऐसा विरोध कर रहे हैं। इसी तरह पूर्व मुख्य मंत्री राणे भी इस फैसले के खिलाफ हैं। जाहिर है कि इस बड़े फैसले का विरोध तो होगा ही, ओबीसी वर्ग के लोगों की चिंताएं बढ़ेंगी ही।
कूणबी-मराठा का इतिहास
इस मामले के जानकार जनार्दन पिंपले ने बताया कि शिवाजी महाराज भी कूणबी थे और कूणबी राजा नही हो सकता यह बहाना बनाकर पैठण और नाशिक के पुरोहितों ने छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक विधी करने से इंकार कर दिया था! इसलिए छत्रपति शिवाजी महाराज ने काशी के मशहूर पुरोहित गागा भट्ट को बुलाकर राज्याभिषेक किया था! ऐतिहासक ग्रंथ में इसका स्पष्ट उल्लेख हैं। इसलिए मराठा यह कोई जाति नहीं है! मराठा जाति का नाम होता तो भारत के राष्ट्र गीत मे एक जातिं का नाम नही आता! इस लिए एह प्रांतवाचक शब्द हैं! 1931 के जातिगत गणना के वक्त “मराठा”नाम से चलने वाले उस पत्र मे तत्कालीन कूणबी समाज को मराठा जाति रेकॉर्ड करने के लिए उसकाया गया था। इसलिए कूणबी जाति के लोगों ने मराठा जाति बताना चालू किया! महाराष्ट्र के निजाम गजट 1884 के साथ साथ सातारा स्टेट गजट, कोल्हापूर स्टेट गजट, मुंबई स्टेट गजट तथा सीपी एंड बेरार स्टेट गजट मे भी 1881 के जातिगत गणना के अहवाल में अन्य जातियों के साथ मे सिर्फ कूणबी जाति का उल्लेख है, मराठा नाम की जाति का कोई उल्लेख नहीं है!