अशोक पंडा
नगरी -सिहावा में आदिवासियों के भूमि अधिकार को लेकर जो आन्दोलन सन् 1952 में डा. राममनोहर लोहिया की पहल से शुरू हुआ था उसे पूरी तरह सफल होने में तेहत्तर साल लग लग गये। देश में वन अधिकार अधिनियम इसी आंदोलन की देन है। वनग्रामों को राजस्व ग्राम जैसी सुविधाएं देने की शुरुआत 1990 के दशक में यहीं से हुई जिसका लाभ देश के लाखों आदिवासी गांवों को मिलना शुरू हुआ। चारों ओर नक्सली हिंसा से घिरा यह क्षेत्र अहिंसा का टापू है। यहां के आदिवासियों ने अहिंसक संघर्ष के जरिए जिस धैर्य और संयम का परिचय दिया है उसे देश के पाठ्यक्रमों में स्थान मिलना चाहिए।
सुप्रसिद्ध सोशलिस्ट – गांधीवादी चिंतक व लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के संस्थापक – संरक्षक श्री रघु ठाकुर ने दुगली विकासखण्ड के कौहाबहरा में आयोजित सभा में यह विचार व्यक्त किये।
लोहिया जी जिस उमरादेहान से आजादी के बाद नगरी- सिहावा आंदोलन की शुरुआत की थी, सभा से पहले श्री ठाकुर ने वहां पहुंचकर स्मृति -फलक का विमोचन किया जिसमें इस संघर्ष के साथियों के नाम अंकित किये गये हैं।
कौहाबहरा के सरपंच व लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष शिव नेताम की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यक्रम में पार्टी की छत्तीसगढ़ इकाई के महासचिव श्याम मनोहर सिंह व पत्रकार जयन्त सिंह तोमर उपस्थित थे।
रघु ठाकुर ने कहा कि भारत में दो ही आंदोलन सबसे लंबे चले। एक सीमांत गांधी का , दूसरा डॉ लोहिया का नगरी- सिहावा आंदोलन।
उल्लेखनीय है कि डॉ लोहिया के बाद सन् 1977 से नगरी सिहावा के आंदोलन की बागडोर रघु ठाकुर जी ने सम्हाली जिसके तहत अठारह में से तेरह गांवों के आदिवासियों को तो 1990 के दशक में भूमि का अधिकार मिल गया था लेकिन पांच गांवों का प्रकरण उलझ गया था जिन्हें अब जाकर सफलता मिली है। अपने अधिकारों के लिए इस अंचल की पांच पीढ़ियों ने निरंतर संघर्ष किया, रायपुर तक 120 किमी की पदयात्रा की, रघु जी ने अनशन किया, आदिवासियों ने जेल भरी, जार्ज फर्नांडीज व शरद यादव आदि नेताओं ने सांसद रहते हुए समर्थन में गिरफ्तारी दी।
रघु ठाकुर ने कहा कि इस आंदोलन में पत्रकार मधुकर खेर, गोविन्दलाल वोरा, तत्कालीन मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा व पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह का समर्थन व सहयोग रहा। सबके प्रति इस आंदोलन से जुड़े लोग कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। लोहियावादियों का सबके प्रति सकारात्मक भाव रहता है, किसी से शत्रुता नहीं होती।
रघु ठाकुर ने कहा कि नगरी- सिहावा आंदोलन की सफलता ने आदिवासियों के मन में अधिकारों को हासिल करने की भूख जगाई है, चाहे वह चिकित्सा का मौलिक अधिकार हो या गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का।
डॉ लोहिया कहते थे कि सड़कें सूनी हो जायेंगी तो संसद आवारा हो जायेगी। इसीलिए यहां के आदिवासी अपने आगामी कार्यक्रम के तहत फसल कटने के बाद अपने अधिकारों के लिए फिर राजधानी की ओर कूच करेंगे।
रघु ठाकुर ने कहा नगरी- सिहावा आंदोलन के जरिए पांच सफलताएं निश्चित हुईं। अठारह गांवों के कब्जे वाली जमीन की जांच हुई, 1985 से पहले के कब्जों को पट्टे मिलना तय हुआ, जो पात्र नहीं थे उन्हें खेती की जमीन जीवनयापन के लिए मिली , आदिवासियों की टूटी झोपड़ियों की सरकार द्वारा मरम्मत का सामान मिला। देश के स्तर से जो वन भूमि अधिकार अधिनियम पारित हुआ है उसका मूल भी सिहावा के आदिवासियों का जमीन की माँग का ही आंदोलन है।
यह दुगली गांव अनेक बड़ी घटनाओं की जन्म भूमि है। यहीं 1991में हमने वन ग्राम वासियों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया था जिसमें वन ग्राम घोषणा पत्र जारी किया था और वन ग्राम को राजस्व ग्राम घोषित कर राजस्व ग्राम जैसी सुविधा देने की मांग भारत सरकार से की थी। आज हजारे वन ग्राम को राजस्व ग्राम में बदला जाना इसी आंदोलन की देन है ।
लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी को हर तरह की गैर-बराबरी, अन्याय व भ्रष्टाचार के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखना है।
लोसपा छत्तीसगढ़ इकाई के महामंत्री श्याम मनोहर सिंह ने कहा इतने लम्बे आन्दोलन को अहिंसक ढंग से चलाने में रघु ठाकुर जी की भूमिका सर्वोपरि है।
जयन्त सिंह तोमर ने कहा कि इस ऐतिहासिक आन्दोलन पर एक डॉक्यूमेंट्री बननी चाहिए।
उमरादेहान के स्मृति- फलक में सुखराम नागे, बिसाहिन बाई, समरीन बाई, रामप्रसाद नेताम, रमेश वल्यानी व एच वी नारवानी एडवोकेट आदि का विशेष उल्लेख किया गया है।