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साहिब सिंह और शापित बीजेपी

rashtratimesnewspaper March 4, 2025 1 min read
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रमेश शर्मा
27 साल कोई कम नहीं होते, भारतीय जनता पार्टी ने 27 सालों के बाद वापसी की है और निश्चित तौर पर यह माना जा सकता है कि स्वर्गीय साहिब सिंह वर्मा जो कि 1990 के दशक के उत्तरार्ध में सीएम दिल्ली थे, उनको हटाने के बाद भारतीय जनता पार्टी कभी सत्ता में नहीं आ पाई। शीला दीक्षित ने लंबे समय तक राज किया और फिर केजरीवाल आ गए थे। इस लंबे दौर में भारतीय जनता पार्टी ने कई नेता बदले, कई वादे किए लेकिन दिल्ली ने भाजपा पर पूरा भरोसा नहीं जताता और इस बार अगर भारतीय जनता पार्टी की धूमधड़ाके के साथ वापसी हुई है तो इसमें दिल्ली वालों की खास मानसिकता को समझना होगा कि दिल्ली वाले हीपोक्रिसी को पसंद नहीं करते हैं। केजरीवाल ने जिस तरह शराबखोरी को बढ़ावा दिया, उनके दफ्तर में स्वाति मालीवाल के साथ पिटाई हुई उसका असर दिल्ली के औसतन देश भर में सबसे ज्यादा अवेयर पढ़ेलिखे व्यक्ति पर होना ही था। जो क्रांति की बड़ी बड़ी बातें कर के दिल्ली के दिल पर काबिज हुआ लेकिन फिर कुरसी की भ्रांति में फंस गया।
लेकिन अब बात यहां भाजपा की है और साहिब सिंह को याद किए बगैर जिस शाप की बात की जाती है वो पूरी नहीं हो सकती। दिल्ली में आज अगर मेट्रो दौड़ रही है तो उसकी संरचना बिछाने का काम साहिब सिंह की भविष्य की सोच के साथ परवान चढ़ा था। अनधिकृत बस्तियों का दर्द साहिब सिंह की स्पीच में गूंजता था और तब जग प्रवेश चन्द्र की इसी मुद्दे पर खटपट हो जाती थी। जग प्रवेशजी नई दिल्ली की बौद्धिक समस्याएं ज्यादा उठाते रहते। उस समय की दिल्ली का बेड़ा गर्क था, एक तरफ यमुना पार की नालियां बजबजाती थी और सुविधा के मामले में साउथ दिल्ली नई दिल्ली इतराती थी। यह उपमा दी जाती थी नई दिल्ली महारानी, साउथ दिल्ली पटरानी और यमुना पार वाली दिल्ली नौकरानी। साहिब सिंह की प्लानिंग ने इस खाई को पाटा और पूरी दिल्ली को सरकार की एक नजर से देखा जाने लगा। Ndmc cant तब अलग ही थे। राष्ट्रीय सहारा और जनसत्ता ने यमुना पार को लेकर अलग से पेज भी निकाले और समस्या फोकस में आई। याद पड़ता है कि मैं यमुनापार किराए के मकान में रहता था और रोज बिजली जाने की समस्या से त्रस्त था। एक दिन उनिंदा सा साहिबजी की प्रेस कांफ्रेंस में पीछे बैठा था। साहिब की आवाज गूंजी “रमेश के होया तन्ने भाई।” मैं भी बोल पड़ा “नींद पूरी नहीं होईजी।


बिजली रात रात नहीं आती।” बात हंसी में उड़ गई। रात जब घर लौटा तो देखा रोशनी से नहाया हुआ है रमेश पार्क लक्ष्मी नगर। थाने की सतत सेवा वाली लाइन से घर मुहल्ले की बिजली जोड़ दी गई थी। अब कोई सीएम आपके ऊपर इतना मेहरबान हो जाए तो संबंधों में चमचत्व घुलने के पूरे चांस पैदा हो जाते हैं लेकिन अखबार की नीति थी बाजा ही बजाना है सो मैं ठोक कर खबरें लिखता। लेकिन व्यक्तिगत तौर पर साहिब सिंहजी से अपनत्व का भाव रहता। खबरों में खिंचाई का साहिब कभी बुरा नहीं मानते।
एक दिन हैरान हो गया। मैने कहा सरजी इंटरव्यू करना है, उन्होंने कहा ठीक है गाड़ी में चलना। इंतजार के बाद हम सरकारी काफिले वाली गाड़ी में सवार हो गए। बातचीत हुई और आईटीओ के चौराहे पर गाड़ी रुक गई क्योंकि मुझे उतरना था। आप यकीन नहीं मानेंगे साहिब सिंह साथ ही उतर गए। ट्रैफिक जाम। कहा अगली बार छोले भटूरे खाएंगे। काफिला बढ़ गया। सड़क पर उतर कर मैं जब चला तो लगा पूरा ट्रैफिक मुझे घूर रहा था।
ज्यादातर नेताओं के साथ पत्रकारों की जो दोस्ती होती है वह दो तरह की होती है पहले तरह की कौन सी होती है मुझे बताने की जरूरत नहीं है लेकिन दूसरे तरह की दोस्ती सिर्फ खबरों को लेकर होती है, मैंने साहिबजी को कहा कि सर एक एक्सक्लूसिव खबर दीजिए। खबर यू चाहिए कि दिल्ली की जो 70 सीटें हैं उनमें भारतीय जनता पार्टी के किन प्रत्याशियों का नाम शीर्ष पर होगा, इसकी एक खबर मिल जाए तो मेरी बल्ले बल्ले। आप यकीन नहीं मानेंगे साहिब सिंह चयन समिति में थे, जो 70 नाम दिए, 62 नाम सही साबित हुए। बीजेपी की लोकल बीट में मेरा डंका बज गया था।
फिर तस्वीर बदली। 1999 में एक रात साहिब सिंह अचानक हटा दिए गए। साहिब सिंह तब बहुत लोकप्रिय हो रहे थे और तय यह माना जा रहा था कि दिल्ली में कम से कम 35 सीट जरूर आएगी लेकिन साहिब को हटाने के बाद छह महीने सुषमा स्वराज सीएम रही। बीजेपी के दिन लद गए। पार्टी चुनाव में पिछड़ गई। शीला दीक्षित छा गई। भारतीय जनता पार्टी का सितारा इस तरह से गर्दिश में आया कि 27 साल तक पार्टी आउट ऑफ पावर रही। उन दिनों साहिब सिंह बहुत मायूस हुआ करते थे क्योंकि उनको अचानक हटाने का कोई कारण नहीं था, दिल्ली के लिए उनका दिल धड़कता था और सुषमा को लाने और एक तरह से उनको जबरदस्ती केंद्रीय राजनीति में भेजने की नीति फेल रही। साहिब को केंद्र न रास आया और न दिल्ली को शायद साहब का हटाया जाना रास आया। फिर जो हुआ सबके सामने है। डॉक्टर हर्ष वर्धन को भी तब पार्टी मौका दे देती तो बीजेपी को लंबा वनवास न झेलना पड़ता।

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राष्ट्र टाइम्स को नई दिल्ली के प्रमुख समाचारपत्रों में से एक माना जाता है जिसका पैमाना देश और दुनिया भर में बड़े वर्गों तक होता है। इस समाचारपत्र का मुख्य आधार हिंदी भाषा है जिससे उन लोगों तक समाचार पहुंचता है जो अंग्रेजी नहीं जानते हैं।

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