
“तुम भारत से अपरिचित नहीं हो, ह्वेनसांग
उसका आकाश अभी स्वच्छ और नीला है
लेकिन भविष्य की अनेक पीढ़ियों की शिराओं में
वह जो घृणा का रक्त बहेगा
उसका दायित्व कौन संभालेगा
दुख है , ह्वेनसांग जब बंदुके उठती हैँ
तो लोग बुद्ध को भूल जाते हैँ”
यह हैं प्रसिद्ध कवि नंद चतुर्वेदी। यह कविता उन्होंने भारत चीन युद्ध के समय लिखी थी। आज भी कोई स्थिति में परिवर्तन हुआ है, ऐसा नहीं लगता। यही कवि के दूरगामी सोच की छाप होती है । नंद चतुर्वेदी की कविताओं में वो गूंज सुनाई पड़ती है।
देश के प्रसिद्ध लेखक स्वर्गीय नंद चतुर्वेदी द्वारा लिखित चार खंडों में छपी ‘रचनावली’ मिली। अनुराग, नंद बाबू के पुत्र हैं। अनुराग का और मेरा साथ लगभग 37 साल से हैं। हम दोनों ही हिन्दी की मशहूर पत्रिका ‘रविवार’ में एक साथ काम करते थे। नंद बाबू से मैं केवल दो बार मिला, पहली बार उदयपुर जहाँ के वो रहने वाले थे, दूसरी बार दिल्ली। (वो किस्से फिर कभी) मैंने अनुराग से यही सुना था कि नंद बाबू एक शिक्षक और कवि हैं।
जब से ‘नंद चतुर्वेदी रचनावली’ मिली है, मुझे अहसास हुआ कि नंद बाबू बहुत ही संवेदनशील थे। समुद्र की गहराई लिए उनका चिंतन। ‘नंद चतुर्वेदी रचनावली’ चार खंडों में है। प्रत्येक खंड की अपनी विशेषता है। चारों को पढ़ने में समय लगेगा। लेकिन मैंने गंभीरता से चारों खंडों के कुछ पन्नों को खंगाला है ।
इस रचनावली का संपादन कथा आलोचना में घनघोर दिलचस्पी रखनेवाले पल्लव ने किया है। पल्लव पेशे से अध्यापक हैं और ‘बनास जन’ नाम से एक पत्रिका का सम्पादन-प्रकाशन भी करते हैं। पल्लव के संपादन का कसाव रचनावली में दिखायी पड़ता है। पल्लव को बधाई ।
नंद रचनावली का पहला खंड 567 पृष्ठ का है। एक कविता जो मुझे पसंद आई वो मैंने ऊपर उद्धृत की है। पहला खंड नंद बाबू की कविताओं को समर्पित है, जिसमे उनकी 548 कविताएं हैं। एक से बढ़कर एक । कविता की विवेचना करना कठिन काम है, इसलिए नहीं करूंगा। ये मेरा क्षेत्र भी नहीं है।
“यही प्रतिद्वंदीता है
विषाद के ढेर पर
खड़ा मुर्गा , एक खूबसूरत-सी
नरम-सी गर्दन उठा कर, जगाता है सबको
कोई उठता है या नहीं
कोई चलता भी है या नहीं
यह हिसाब नहीं करता।
वाह! क्या व्यंग है, पीड़ा है, यह पूरी कविता को पढ़ कर ही समझ आ सकता है
प्रथम खंड के आखिरी पन्ने पर एक कविता पर बरबस ध्यान जाता है ।
यह संसार अजब रे साधौ
‘संसद मैं जा कर जो सोता
जी हुजूर जो बोले तोता
उसकी जनम कुंडली पंडित
देख देख कर गदगद होता
पुण्यवान वह ही कहलाता
करता जो सौ सौ अपराधौ
यह संसार अजब रे साधौ”
नंद बाबू ने यह कविता कब लिखी होगी, नहीं मालूम। यह आप पर है सोचे, कही कुछ बदला क्या ?
दूसरा खंड नन्द चतुर्वेदी रचनावली का उनके काव्य आलोचना और निबंधों पर है या यूं कहें गध पर है । इस खंड में लगभग 70 के करीब रचनाएँ है. इसमें एक विषय है ‘कवि सम्मेलन और रूपांतर की नई दिशाएँ’ इसमें नंद बाबू लिखते हैं “कवियों से मेरी यही प्रार्थना है यदि वे औसत श्रोताओं के लिए नहीं लिखते तो एक व्यवधान एक रिक्तता आती रहेगी और उस रिक्तता में ये सब लोग घुस आएँगे जिन्हें हम नहीं आने देना चाहते”
नंद बाबू समाजवादी विचार धार से प्रभावित थे। इसी खंड में नन्द बाबू ने जन योद्धा डॉक्टर राम मनोहर लोहिया पर एक लेख लिखा है उसमें नंद बाबू लिखते हैं “राजनीति के फरेब और क्रूर सामंती आचरण को उद्घाटित करते हुए भी देश के सांस्कृतिक सरोकारों से जुड़े रहने की कोशिश लोहिया को एक लासानी राजनेता और बड़ा आदमी बनाती है” अगर लोहिया को आप जानना चाहते हैं तो यह लेख जरूर पढ़िए। इस खंड में एक दिलचस्प और अंतिम लेख है ‘शब्द संसार की यायावरी’ इस के आरंभ में ही नंद बाबू ने लिखा है “ हमारे समय की विलक्षणता यह है यह हम लिखते है और बार बार यह पूछते हैं कि लिखते क्यों हैं। यह है क्यों है, ऐसा पूछना ‘आत्म साक्षात्कार’ से कम नहीं होता। एक सवाल का सामना करना तलवार की धार पर चलना होता है।
नंद चतुर्वेदी रचनावली का चौथा खंड उनके द्वारा किये गए अनुवाद और साक्षात्कारों पर है। इस के आरंभ में ही संपादक पल्लव ने लिखा है “नन्द चतुर्वेदी प्रतिबद्ध कवि थे उनकी प्रतिबद्धता किसी दल या विचारधारा के साथ ना हो कर मनुष्य मुक्ति के लिए थी। मुक्ति के संघर्ष में जो राजनैतिक’ दल या विचार नन्द बाबू को उपयोगी लगते थे उनका साथ देने में वे झिझकते नहीं थे। अपने सुदीर्घ रचना जीवन में उन्होंने अनुवाद और संपादन के अनेक काम किए इन कार्यों का आश्रय भी उनके किसी आग्रह में देखा जाना चाहिए”।
जी फाइल्स का संपादक होने के नाते पिछले 18 वर्षों में मेरा वास्ता आईएएस,आईपीएस अफसरों द्वारा अंग्रेजी में लिखी किताबों से ही रहा, ज़्यादातर उन किताबों में आत्मकथाएँ होती थी या बहुत हुआ तो प्रशासनिक अन्तर्द्वन्दों का विश्लेषण। हिंदी की किताबों का मित्रों द्वारा ही पता चलती रहा कि कौन क्या लिख रहा है। अनुराग जी ही वॉट्सऐप ग्रुप पर कभी कभी हंस पत्रिका भेजते हैं। जिसका संपादन प्रसिद्ध लेखक और राजनीतिज्ञ स्वर्गीय दयानन्द सहाय के पुत्र संजय सहाय करते है।
किसी ग्रंथावली को क्यों पढ़ना चाहिए, ये एक सवाल है? लगभग 2000 पन्नों को पढ़ना अपने आप में एक श्रम साध्य कार्य है । इस तरह की ग्रंथावलियाँ इसलिए पढ़नी चाहिए कि लेखक आप को साहित्य इतिहास के उस काल खंड के अंतर्द्वंद में ले जाता है, जिस से वो स्वयं जूझ रहा होता है । नंद बाबू द्वारा राजस्थान के राजे रजवाड़ों में बटे प्रदेश में साहित्य इतिहास के सृजन का जो काम किया , वो वास्तव में ही बड़ा काम है।
नंद बाबू, अनुराग को पत्रों में किस नाम से संबोधित करते थे, उसके लिए आपको यह रचनावली खगालनी पड़ेगी । मैं यह रहस्य नहीं बताने वाला हूँ।
हिन्दी के प्रतिष्ठित प्रकाशक राजकमल ने बहुत सुन्दर तरीके से ग्रंथावली को छापा है। राजकमल प्रकाशन को बधाई। अनुराग चतुर्वेदी हालांकि नंद बाबू के पुत्र है, लेकिन पिछले पाँच वर्षों के अथक प्रयासों से यह ग्रंथावली प्रकाशित हुई है। मैने साहित्यकारों के बच्चों को पिता की लाइब्रेरी को कबाड़ी को बेचते देखा है । लेकिन अनुराग जी ने यह साहस का काम किया है । बरसों की इधर उधर बिखरी सामग्री को एकत्र करना। यह दिखाता है पुत्र का पिता के प्रति सम्मान और समर्पण। पिता की धरोहर को देश दुनिया के सामने ले जाना बड़े साहस का काम है। पल्लव ने उसी धर्य से संपादन भी किया है। अनुराग जी को बहुत बहुत बधाई। आपकी दिलचस्पी अगर इस ग्रंथावली को पढ़ने मैं है तो आप इसे amzon, इस लिंक को क्लिक कर के खरीद सकते हैं।
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अंत में । ‘40 बरस के याराने की रस कथा’ में नन्द बाबू ने कवि प्रकाश का चित्रण किया है। यह तीसरे खंड में है, जो कि नंद बाबू के संस्मरण , डायरी , व्याख्यानों और पत्रों का संकलन है । प्रकाश एक शिक्षक कवि और राजनेता की तरह राजस्थान के राजनीति के शिखर पर थे ,लेकिन राजनीति में जैसा होता है हर व्यक्ति के भाग्य में विजय नहीं होती ऐसा ही प्रकाश बाबू के साथ भी हुआ। नंद बाबू और प्रकाश कवि का का यराना था और इस लेख के अंत में नन्द बाबू लिखते हैं प्रकाश को 60 बरस का होते देखने का ये सुख है की वह हमें वार्धक्य के थकान की नहीं तारुण्य की उस कविता की याद दिलाता है। जो उसने कभी लिखी थी।
चट्टान तोड़ कर रहां करें
यह वह लहराता पानी है
लड़ने का नाम जवानी रे
बढ़ने का नाम जवानी है।
‘नंद चतुर्वेदी रचना वली’ साहित्य इतिहास का एक क्रांतिकारी दस्तावेज
खंड 4, प्रकाशक राजकमल । मूल्य र 2500/- मात्र।