
दिल्ली देहात के गाँव लिबासपुर में जन्में संत शेरसिंह के 36 वें महापरिनिर्वाण दिवस (पुण्यतिथि) के अवसर पर उनके परिजनों, सहयोगियों तथा उनके वैचारिक अनुयायियों द्वारा रविवार को दिल्ली विश्वविद्यालय उत्तरी परिसर के कला संकाय में संत शेरसिंह रिसर्च एंड एजुकेशनल ट्रस्ट (रजि.) की ओर से उनकी पुण्यतिथि मनाई गई। इस अवसर पर संत शेरसिंह के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित करते हुए उनके सामाजिक कार्यों को याद किया गया। इससे पूर्व ट्रस्ट ने उनकी पुण्यतिथि पर गाँव लिबासपुर में भंडारे का आयोजन किया जिसमें सैंकड़ों लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया । कार्यक्रम में ट्रस्ट के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन, सुश्री पल्लवी, योगेंद्र पाटिल, प्रदीप पाटिल, श्रीमती सरिता सुमन, प्रसून पाटिल, उत्कर्ष पाटिल, गणेश राज, डालचंद, संदीप कुमार तोमर , राज चौहान , महिपाल पाटिल आदि भी उपस्थित थे।
ट्रस्ट के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन ने संत शेरसिंह का स्मरण करते हुए कहा कि संत शेरसिंह कबीर साहेब के सच्चे अनुयायी थे। वे मध्यकालीन संतों में कबीर साहेब से विशेष प्रभावित थे। अपने जीवन को उन्होंने कबीर साहेब के व्यक्तित्व में ढाल लिया था। उन्होंने महात्मा कबीर के विचारों के प्रचार प्रसार के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन अर्पित कर दिया था। कबीर साहेब द्वारा रचित उनकी साखियों, बीजक, रमैनी, शबद को गा-गाकर वे आम लोगों के बीच मानवता एवं भाईचारे का प्रचार प्रसार करते रहे। समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने में जिस तरह से कबीर साहेब का योगदान रहा है, ठीक उसी का अनुसरण करते हुए संत शेरसिंह ने भी समाज में फैली विसंगतियों, छुआछूत, जातिप्रथा, धार्मिक आडंबर, हिंसा तथा भ्रष्टाचार के विरुद्ध आम लोगों में जन जागृति फैलाई। उनके शिष्यों ने कबीर साहेब की वाणियों का गायन करते हुए समाज में जागरूकता का संदेश दिया। उन्होंने भ्रष्टाचार के विरुद्ध प्रशासन तक अपनी आवाज़ पहुंचाई। वे ऐसे समाज का सपना देखते थे जहाँ आपसी सौहार्द, भाईचारा, एक-दूसरे के प्रति सहयोग की भावना एवं समानता का भावबोध हो। वे समझते थे कि सामाजिक समरसता बनाए रखने के लिए और मूलभूत परिवर्तन के लिए कबीर साहेब की वाणी सबसे उत्तम है। वे किसी भी तरह के आडम्बर, पाखंडवाद और धार्मिक कुरीतियों में विश्वास नहीं करते थे। समाज में फैली वैमनस्यता को दूर करना उनकी प्राथमिकता थी।
डॉ. सुमन ने बताया कि समाज के वंचित, पिछड़े और दलित वर्ग के लोगों को सामाजिक विकास की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए संत शेरसिंह जीवन पर्यंत प्रयास करते रहे। आजादी के बाद देश में आर्थिक संकट और गरीबी से जनता तबाह हो रही थी। उस समय समाज के उपेक्षित और वंचित वर्गों का जीवन बेहतर बनाने के लिए उनके बीच कार्य करना बहुत जरूरी था। ऐसी स्थिति में समाज सेवा बहुत हिम्मत का काम था। क्योंकि देश की आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी। उस विपरीत परिस्थितियों में संत शेरसिंह ने समाज सेवा का कार्य स्वयं के प्रयास से शुरू किया। उन्होंने अपने गाँव में समाज के उपेक्षित वर्गों के लिए समुदाय भवन , बीस सूत्रीय कार्यक्रम के अंतर्गत भूमि का वितरण कराना व सरकार से आवासीय प्लाट दिलाना तथा युवा पीढ़ी को कबीर साहेब के विचारों से अवगत कराना जैसे महत्वपूर्ण कार्य किए। संत शेरसिंह रिसर्च एंड एजुकेशनल ट्रस्ट की स्थापना का उद्देश्य भी सामाजिक समरसता और मानवता की स्थापना करना है। यह ट्रस्ट जून माह में कबीर साहेब की जयंती के अवसर पर शिक्षा, साहित्य, पत्रकारिता तथा समाज सेवा के क्षेत्र के कार्य कर रहे 20 महान विभूतियों को सम्मानित करता रहा है। ट्रस्ट का यह कार्य आगे भी जारी रहेगा।
ट्रस्ट की उपाध्यक्ष सुश्री पल्लवी ने बताया है कि इस रिसर्च एंड एजुकेशनल ट्रस्ट के अंतर्गत समाज में किन्हीं कारणों से पिछड़ गए बच्चों को शिक्षा प्रदान कराना, स्कूल छोड़कर चले गए बच्चों को जागरूक कर पुनः स्कूल तक लाना, उन्हें शिक्षा दिलाना ट्रस्ट की प्राथमिकता रहा है। बच्चों को शिक्षा, खेल, विज्ञान, मीडिया के क्षेत्रों में प्रतिभा सम्पन्न बनाना इस ट्रस्ट का मुख्य उद्देश्य रहा है। स्त्री शिक्षा को ध्यान में रखते हुए बालिकाओं को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करना तथा अभावग्रस्त बालिकाओं को उनकी शिक्षा के लिए मदद करना ट्रस्ट के प्रमुख कार्य रहे हैं। मिल मजदूरों तथा कृषि क्षेत्र के मजदूरों के बच्चों को छात्रवृत्ति प्रदान कर उन्हें कौशल आधारित शिक्षा के द्वारा बेहतर जीवनयापन के योग्य बनाना ट्रस्ट का कार्य रहा है। ट्रस्ट ने अपने सामाजिक कार्यों का विस्तार जनजातीय क्षेत्रों में भी किया है। वहाँ के लोगों से संपर्क करते हुए उनके बच्चों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करना तथा जनजातीय क्षेत्र को देश की मुख्य धारा में शामिल करने का कार्य प्राथमिकता के आधार पर किया गया है।
ट्रस्ट के सदस्य योगेंद्र पाटिल ने कहा कि फिलहाल यह ट्रस्ट एक व्यापक सामाजिक फलक पर कार्य कर रहा है। दलित समाज के उद्धार के लिए शिक्षण-प्रशिक्षण के माध्यम से कार्यक्रम चलाया जा रहा है। उनको संविधान की मुख्य धाराओं से परिचित कराया जा रहा है जिससे वे संविधान प्रदत्त अपने अधिकारों को समझ सकें। उन्होंने बताया है कि भविष्य में उच्च शिक्षा के मद्देनजर ऐसे विषयों पर शोध कार्य के लिए प्रोत्साहित भी किया जाएगा तथा ट्रस्ट से जुड़े छात्रों को शोधकार्य संबंधी सामग्री उपलब्ध कराने के लिए संस्थान कटिबद्ध रहेगा। ऐसे शोधार्थियों के छात्रवृत्ति की व्यवस्था ट्रस्ट द्वारा की जाएगी। दलित और पिछड़े वर्ग के छात्रों को सरकारी अनुदान और छात्रवृत्ति उपलब्ध कराने के लिए भी ट्रस्ट सहयोग करता रहेगा।
इस अवसर पर शेरसिंह फाउंडेशन के सदस्यों, कार्यकर्ताओं के अतिरिक्त बहुत सी सामाजिक संस्थाओं के कार्यकर्ता भी शामिल हुए। सभी आगंत