
सत्यपाल मलिक, पूर्व राज्यपाल, भारत सरकार
नमस्कार मेरे देशवासियों,
यह संभवतः मेरा आप सबसे अंतिम संवाद हो
मैं पिछले एक महीने से गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहा हूँ। मेरी किडनी ने काम करना लगभग बंद कर दिया है। दो दिन पहले स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ, पर आज फिर मुझे आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया है। डॉक्टरों की चिंता बढ़ गई है। लेकिन इस विषम क्षण में भी मेरा संकल्प अडिग है — सत्य बोलना और देश के लोगों को सच्चाई बताना।
ईमान का रास्ता आसान नहीं होता
जब मैं देश के विभिन्न राज्यों में राज्यपाल के पद पर कार्यरत था, तब मुझे भी कई बार भ्रष्ट ताकतों का सामना करना पड़ा। एक बार नहीं, 150-150 करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश हुई — केवल इसलिए कि मैं एक घोटाले को चुपचाप पास कर दूं। लेकिन मैं कौन हूँ? मैं स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह का शिष्य हूँ — जिनकी ईमानदारी ही उनकी राजनीति थी।
मैंने साफ इनकार कर दिया। ईमान नहीं डिगा, आत्मा नहीं हारी।
जब किसान दिल्ली की सड़कों पर खड़ा था, तब मैं उनके साथ था
मैंने राज्यपाल के पद पर रहते हुए भी खुलकर किसान आंदोलन का समर्थन किया। जब लाखों किसान सर्दी, गर्मी और बारिश में दिल्ली की सीमाओं पर डटे थे, तब मैं राजभवन में नहीं छुपा, मैं उनकी पीड़ा को आवाज़ देता रहा।
जब बेटियों ने जंतर-मंतर पर न्याय की गुहार लगाई, तब मैं उनके साथ था
महिला पहलवानों के आंदोलन में भी मैं जंतर-मंतर से लेकर इंडिया गेट तक उनके साथ खड़ा रहा। ये वही बेटियां थीं, जिन्होंने देश का नाम रोशन किया, और आज न्याय की भीख मांग रही थीं। सरकारें आंखें फेर सकती थीं, लेकिन मेरा जमीर नहीं।
पुलवामा हमला – वो सवाल जो आज भी जवाब मांगते हैं
पुलवामा में हमारे वीर जवान शहीद हुए। मैंने सार्वजनिक रूप से सवाल उठाए कि इस हमले की निष्पक्ष जांच क्यों नहीं हो रही है? मेरे सवाल चुभे, लेकिन मैं चुप नहीं हुआ। क्योंकि सवाल अगर देश की सुरक्षा से हो, तो चुप रहना गुनाह होता है।
अब मेरे खिलाफ झूठे केस का षड्यंत्र\
सरकार आज मुझे CBI और एजेंसियों की धमकियों से डराने की कोशिश कर रही है। जिस टेंडर के मामले में मुझे फंसाने की बात हो रही है, वो टेंडर मैंने खुद निरस्त किया था। मैंने स्वयं प्रधानमंत्री जी को उस घोटाले की जानकारी दी थी। लेकिन मेरे ट्रांसफर के बाद किसी और के हस्ताक्षर से वह टेंडर पास हुआ।
आज सरकार मेरी छवि खराब करने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है, लेकिन मैं कहना चाहता हूँ —
“मैं किसान की कोख से जन्मा हूँ, न डरा हूँ, न डरूंगा। न झुका हूँ, न झुकूंगा।”
50 साल की सेवा, एक कमरा और कर्ज में जिंदगी
मैंने अपने 50 साल से अधिक के सार्वजनिक जीवन में सांसद, राज्यपाल, और विभिन्न संवैधानिक पदों पर रहते हुए देश की सेवा की। लेकिन आज भी मैं एक कमरे के मकान में रहता हूँ, और कर्ज में हूँ।
अगर मेरे पास धन-दौलत होता, तो मैं किसी बड़े प्राइवेट हॉस्पिटल में इलाज करवा रहा होता। लेकिन आज भी मेरी पूंजी है — मेरी ईमानदारी, मेरा चरित्र, और मेरे देशवासियों का प्यार।
मेरी अंतिम प्रार्थना
अगर मेरी जीवन-यात्रा अब समाप्ति की ओर है, तो मेरी अंतिम प्रार्थना यही है कि —
“मेरे देश की जनता को सच्चाई बताई जाए।”
जो भी एजेंसियां मेरी जांच करें, वे केवल एक प्रश्न का उत्तर दें:
“50 वर्षों की सार्वजनिक सेवा के बाद मेरे पास क्या मिला?”
मैं आज भले ही बीमारी से लड़ रहा हूँ, पर अंत तक झूठ के खिलाफ और सत्य के साथ खड़ा रहूंगा।