
महिला सशक्तिकरण और शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमती चंपा सिंह ने अपने 75वें जन्मदिवस को नई दिल्ली के प्रतिष्ठित अशोक होटल में एक सादगीपूर्ण किन्तु गरिमामयी आयोजन के साथ मनाया। यह अवसर न केवल उनके जन्म का उत्सव था, बल्कि उनके सामाजिक योगदान की सार्थक यात्रा का उत्सव भी था।
कार्यक्रम में परिजनों के साथ-साथ चुनिंदा विशिष्ट अतिथियों की उपस्थिति ने इसे और भी विशेष बना दिया। सबका उद्देश्य एक ही था – उस स्त्री को सम्मानित करना, जिसने दशकों तक मौन आवाज़ों को मंच और अधिकारविहीनों को संबल प्रदान किया।
संघर्ष की ज़मीन पर खड़ा सशक्तिकरण का सपना
श्रीमती सिंह का सामाजिक जीवन एक निशब्द क्रांति की तरह रहा है। उन्होंने वर्षों तक वंचित समुदायों, विशेषकर महिलाओं और बालिकाओं के बीच जाकर, उन्हें शिक्षा, आत्मविश्वास और अधिकारों का महत्व समझाया। उनके प्रयासों से न जाने कितनी बेटियों को पढ़ाई छोड़ने से रोका गया, और कितनी स्त्रियों ने पहली बार अपने लिए आवाज़ उठाना सीखा।
उनकी यह संवेदनशील दृष्टि और जनसेवा की भावना उनके पारिवारिक संस्कारों से भी जुड़ी रही है। श्रीमती सिंह, भारत के प्रथम संसदीय कार्य एवं सूचना-प्रसारण मंत्री स्व. सत्य नारायण सिन्हा की भतीजी हैं — जिन्होंने भारतीय लोकतंत्र की नींव के साथ जुड़कर बिहार के समस्तीपुर (पूर्व में दरभंगा) लोकसभा क्षेत्र से वर्षों तक प्रतिनिधित्व किया और बाद में मध्यप्रदेश के राज्यपाल रहे।
उपस्थित विशिष्ट अतिथि और परिवारजनों के भावपूर्ण शब्द
इस विशेष अवसर पर केंद्रीय विधि सचिव श्रीमती अंजू राठी राणा एवं उनके पति आर. एस. राणा (प्रवर्तन निदेशालय एवं सीबीआई के वरिष्ठ लोक अभियोजक) की उपस्थिति ने आयोजन को गरिमा प्रदान की।
श्रीमती पारुल सिंह, जो दिल्ली राज्य पैरा ओलंपिक समिति की अध्यक्ष एवं राकेश कुमार सिंह की धर्मपत्नी हैं, ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा, “यह जन्मदिन एक साधारण अवसर नहीं, बल्कि सशक्त स्त्रीत्व की जीवंत प्रेरणा का उत्सव है, जिसकी ऊर्जा हम सभी को स्पर्श करती है।”
चंपा सिंह का भावुक संबोधन
स्वयं श्रीमती सिंह ने जब माइक संभाला, तो पूरे सभागार में एक सन्न, भावुक शांति छा गई। उन्होंने कहा: “मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरे छोटे-छोटे प्रयास इतने जीवनों को छू पाएंगे। आज जब मैं 75वें पड़ाव पर हूं, तो मुझे लगता है कि मेरी यात्रा अभी अधूरी है। अब भी कई आवाज़ें हैं जो सुनी जानी बाकी हैं – खासकर महिलाएं और बच्चे, जिन्हें बराबरी का अवसर मिलना ही चाहिए।”
परिवार की श्रद्धांजलि और आत्मीयता
इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार श्री राकेश कुमार सिंह ने भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए कहा: “मेरी मां ने अपने धैर्य, अनुशासन और प्रेम से हमारे परिवार को आकार ही नहीं दिया, बल्कि समाज की अनेकों ज़िंदगियों में भी उजास भरा। यह जन्मदिन एक संख्या नहीं, बल्कि उनके संघर्ष, योगदान और हमारे जीवन में उनकी उपस्थिति का जीवंत उत्सव है।”
सांस्कृतिक गरिमा और पारिवारिक सौहार्द
कार्यक्रम का समापन केक काटने और रात्रि भोज के साथ हुआ, जिसमें पारिवारिक आत्मीयता और सामाजिक सरोकार का अद्भुत संगम देखने को मिला। यह आयोजन अपने आप में एक जीवंत प्रेरणा, और उस विश्वास की पुष्टि था — कि सेवा का मार्ग उम्र से नहीं, संकल्प से चलता है।