
उमेश जोशी
राजस्थान में सरकारी स्कूलों की घटती संख्या अब सामाजिक संकट का रूप लेती जा रही है, खासकर लड़कियों की शिक्षा के संदर्भ में। राज्य सरकार के हालिया फैसले के तहत, जनवरी 2025 में ही 449 स्कूलों को या तो बंद कर दिया गया या फिर उनका विलय कर दिया गया। इनमें 190 प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूल शामिल थे। बाद के महीनों में 259 और स्कूलों का विलय किया गया।
शिक्षा विभाग के सूत्रों के अनुसार, 10 या उससे कम नामांकन वाले 1,000 से अधिक स्कूलों को भी भविष्य में बंद करने की योजना पर विचार चल रहा है। जोधपुर, बीकानेर और जयपुर जैसे जिलों में यह समस्या अधिक गंभीर रूप से उभर रही है।
स्कूल विलय की पुरानी पटकथा
यह पहला मौका नहीं है जब राज्य में स्कूलों के विलय की कवायद चल रही हो। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कार्यकाल (2014-2018) में लगभग 22,000 स्कूलों का एकीकरण किया गया था, हालांकि बाद में 2,500 स्कूलों का विलय रद्द भी कर दिया गया। वर्ष 2018-19 तक कुल लगभग 19,500 स्कूलों का विलय हो चुका था।
लड़कियों की शिक्षा पर गहराता संकट
स्कूल बंद होने का सबसे अधिक असर बेटियों पर पड़ रहा है। दूरस्थ गांवों में रहने वाली बच्चियों को अब शिक्षा के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है, लेकिन सुरक्षित और सुविधाजनक परिवहन न होने के कारण कई अभिभावक अपनी बेटियों को स्कूल भेजने से कतराते हैं। नतीजतन, कई लड़कियों ने स्कूल जाना छोड़ दिया है। यदि भविष्य में और स्कूलों का विलय हुआ, तो यह संख्या और बढ़ने की आशंका है।
यह स्थिति न केवल शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है, बल्कि ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसे सरकारी अभियानों को भी विफल करती है। महिला सशक्तिकरण की दिशा में यह एक गंभीर बाधा बनकर उभरी है।
सरकारी स्कूलों में गिरता नामांकन: कारण और नतीजे
सरकारी स्कूलों में छात्रों की घटती संख्या का बड़ा कारण है निजी स्कूलों का बढ़ता प्रभाव। अंग्रेजी माध्यम, बेहतर सुविधाएं और पाठ्येतर गतिविधियों की वजह से अभिभावक अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजना पसंद कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर, सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी, बुनियादी सुविधाओं का अभाव और शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है।
ग्रामीण इलाकों से पलायन भी एक बड़ा कारण है। रोजगार की तलाश में शहरों की ओर बढ़ते कदमों के साथ परिवार अपने बच्चों का नाम स्कूल से कटवाकर उन्हें अपने साथ ले जा रहे हैं।
क्या है समाधान?
विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को इस समस्या से निपटने के लिए बहुआयामी रणनीति बनानी होगी। इसमें शामिल हो सकते हैं:
शिक्षकों की समय पर नियुक्ति और प्रशिक्षण। बुनियादी सुविधाओं (पेयजल, शौचालय, बिजली, पुस्तकालय) का सुदृढ़ीकरण। लड़कियों के लिए सुरक्षित परिवहन और छात्रवृत्ति योजना।
स्थानीय समुदाय और अभिभावकों की भागीदारी।
सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता और छवि को सुधारने के लिए प्रचार अभियान।
स्कूलों का बंद होना केवल प्रशासनिक फैसला नहीं है, यह एक सामाजिक, शैक्षिक और नैतिक चुनौती भी है। यह आवश्यक है कि समाज, सरकार और स्थानीय समुदाय मिलकर यह सुनिश्चित करें कि कोई भी बच्चा — विशेषकर बेटियाँ — शिक्षा से वंचित न रहें।