
राजीव गांधी हत्याकांड पर बनी वेब सीरीज को लेकर CBI अधिकारी, फोरेंसिक विशेषज्ञ और वरिष्ठ अधिवक्ता ने उठाए गंभीर सवाल
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में आयोजित एक महत्वपूर्ण प्रेस वार्ता में सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी और सीबीआई के पूर्व डीआईजी (जांच) अमोद के. कांत ने Sony LIV पर प्रसारित वेब सीरीज “द हंट – द राजीव गांधी असैसिनेशन केस” की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि इस सीरीज में तथ्यों को तोड़-मरोड़कर दिखाया गया है और विशेष जांच दल (SIT) के अधिकारियों को बदनाम किया गया है, जिन्होंने इस ऐतिहासिक जांच में अहम भूमिका निभाई थी।
प्रेस वार्ता की शुरुआत प्रयास संस्था के मीडिया प्रमुख अमिताभ श्रीवास्तव ने की। उन्होंने कहा कि समय के साथ सिनेमा का स्वरूप बदला है—1950 के दशक की मुगल-ए-आजम से आज की पीढ़ी सायरा जैसे कंटेंट को मोबाइल और ओटीटी पर देख रही है। कोरोना के बाद ओटीटी कंटेंट घर के हर सदस्य की पहुंच में है, लेकिन इस पर कोई ठोस नियामक नियंत्रण नहीं है।
अमोद कांत, जो 23 मई 1991 को सबसे पहले राजीव गांधी हत्याकांड की घटना स्थल पर पहुंचने वाले सीबीआई अधिकारी थे, ने बताया कि कैसे इस वेब सीरीज में उनकी और उनके साथियों की छवि को गलत तरीके से दिखाया गया है। “हमारे वास्तविक नामों का इस्तेमाल किया गया, झूठे घटनाक्रमों को दिखाया गया, हिरासत में उत्पीड़न और महिला आतंकवादी की गिरफ्तारी के आपत्तिजनक दृश्य दिखाए गए—ये सब बिना हमारी अनुमति के किया गया,” उन्होंने कहा।
उन्होंने बताया कि निर्माता नागेश कुकुनूर ने एक साक्षात्कार में स्वयं यह स्वीकार किया है कि उन्हें असली घटनाओं की सच्चाई पता थी, लेकिन उन्होंने जानबूझकर ‘थ्रिल’ के लिए कहानी में फेरबदल किया। “अगर कोई निर्माता सच्चाई जानते हुए भी उसे न दिखाए, तो वह रचनात्मकता नहीं बल्कि दुष्प्रचार है,” श्री कांत ने दो टूक कहा।
उनकी बात का समर्थन करते हुए मेजर जनरल माणिक सबरवाल, जो उस समय NSG बम डिस्पोज़ल यूनिट के कमांडिंग ऑफिसर थे, ने तकनीकी जांच का विवरण साझा किया। उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने विस्फोटक सामग्री—बॉल बेयरिंग, तार, टॉगल स्विच और आत्मघाती बनियान—का फोरेंसिक विश्लेषण किया और पाया कि यह सिंगापुर फ्रैगमेंटेशन ग्रेनेड था जिसे ड्यूल टॉगल स्विच और 9-वोल्ट बैटरी से चालू किया गया था। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह जांच कांत की टीम के सहयोग से हुई थी, न कि उस व्यक्ति द्वारा जैसा कि सीरीज में झूठा दर्शाया गया है।
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता राजन राज, जिन्होंने कांत की ओर से मानहानि का मुकदमा दायर किया है, ने कहा कि यह सीरीज केवल व्यक्तियों को नहीं, बल्कि सीबीआई जैसी संस्था की गरिमा को ठेस पहुंचाती है। उन्होंने कहा, “जब रचनाकार असली नाम और घटनाओं का उपयोग करते हैं, तो उन पर यह नैतिक जिम्मेदारी होती है कि वे डॉक्यूमेंट्री जैसी सटीकता बरतें, न कि कल्पना के नाम पर झूठ फैलाएं।”
उन्होंने ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर नियामक निगरानी की कमी को भी उजागर किया और कहा कि यह समय है जब न्यायपालिका रचनात्मक स्वतंत्रता की सीमाएं तय करे। “इस तरह की झूठी सामग्री से न सिर्फ सार्वजनिक धारणा विकृत होती है, बल्कि यह राष्ट्रीय अखंडता को भी प्रभावित कर सकती है।”
दिलीप शरण, जो एक खेल मीडिया चैनल के पूर्व CEO हैं, ने भी रचनात्मक स्वतंत्रता की सीमाओं पर स्पष्ट नियम बनाने की मांग की। उन्होंने 2019 के उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम का हवाला देते हुए कहा कि जिस प्रकार भ्रामक विज्ञापन दंडनीय हैं, उसी प्रकार असत्यापित मीडिया कंटेंट पर भी अंकुश लगना चाहिए। उन्होंने कहा, “श्री कांत जैसे अधिकारियों की वर्षों की सेवा और संस्थागत विश्वास को इस तरह की झूठी कहानियों से नुकसान पहुंचाना न केवल अनुचित है बल्कि समाज के लिए भी खतरनाक है।”
इस कार्यक्रम में कई प्रतिष्ठित फिल्म निर्माताओं और बुद्धिजीवियों ने भाग लिया और यह प्रश्न उठाया कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय फिल्मों और ओटीटी कंटेंट को लेकर दोहरे मानदंड क्यों अपना रहा है, जब कि ओटीटी पर बच्चों के लिए भी आपत्तिजनक सामग्री एक बटन की दूरी पर उपलब्ध है।
प्रेस वार्ता का समापन करते हुए कांत ने पत्रकारों से आग्रह किया कि वे उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक पढ़ें, जिसमें पूरे मामले का सच्चा और क्रमबद्ध विवरण दर्ज है। “हमने कानून के अनुसार ईमानदारी से जांच की, उस ऐतिहासिक जांच को सनसनीखेज झूठ से बदनाम न करें।”