
डॉ. समरेन्द्र पाठक, वरिष्ठ पत्रकार
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा है कि भारत न केवल विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, बल्कि वह एक निरंतर उभरती हुई आर्थिक शक्ति भी है।
श्रीमती मुर्मू आज राष्ट्रपति भवन में भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) 2024 बैच के प्रशिक्षु अधिकारियों को संबोधित कर रही थीं। इस अवसर पर उन्होंने सभी युवा अधिकारियों को शुभकामनाएँ देते हुए उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की।

राष्ट्रपति ने कहा कि विदेश सेवा के नए अधिकारी अपनी यात्रा की शुरुआत सभ्यतागत मूल्यों — शांति, बहुलवाद, अहिंसा और संवाद — को आधार बनाकर करें। उन्होंने कहा कि अधिकारियों को चाहिए कि वे प्रत्येक संस्कृति, विचार और दृष्टिकोण के प्रति खुले मन से आगे बढ़ें और भारतीय कूटनीति की गरिमा को और सशक्त करें।
उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में दुनिया तीव्र गति से बदल रही है। भू-राजनीतिक परिवर्तन, डिजिटल क्रांति, जलवायु संकट और बहुपक्षवाद के नए संदर्भ पूरी दुनिया के परिदृश्य को बदल रहे हैं। ऐसे में युवा अधिकारियों की चपलता और अनुकूलनशीलता ही भारत की सफलता की कुंजी सिद्ध होगी।

श्रीमती मुर्मू ने कहा कि भारत आज वैश्विक चुनौतियों के समाधान का अभिन्न हिस्सा है — चाहे वह उत्तर और दक्षिण के बीच असमानता हो, सीमा-पार आतंकवाद का खतरा हो या जलवायु परिवर्तन की चुनौतियाँ। उन्होंने जोर देकर कहा, “भारत न केवल विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, बल्कि एक उभरती हुई आर्थिक शक्ति भी है। विश्व मंच पर हमारी आवाज़ का महत्व निरंतर बढ़ रहा है।”
राष्ट्रपति ने इस अवसर पर सांस्कृतिक कूटनीति के महत्व को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि “हृदय और आत्मा से बने संबंध सदैव मजबूत होते हैं। चाहे वह योग हो, आयुर्वेद हो, श्रीअन्न (मिलेट्स), भारतीय संगीत, कला, भाषाई विविधता या आध्यात्मिक परंपराएँ हों — इन्हें विश्व पटल पर और अधिक रचनात्मक व महत्वाकांक्षी प्रयासों से प्रदर्शित करना समय की मांग है।”
अंत में राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे कूटनीतिक प्रयास हमारी घरेलू आवश्यकताओं और विकसित भारत 2047 के लक्ष्य के साथ निकटता से जुड़े होने चाहिए। उन्होंने प्रशिक्षु अधिकारियों से आह्वान किया कि वे स्वयं को केवल भारत के हितों का संरक्षक न मानें, बल्कि उसकी आत्मा के सच्चे राजदूत के रूप में भी स्थापित करें।