
डा. हरीश चंद्र लखेड़ा
नेपाल में जेनरेशन-ज़ी (Gen Z) के विद्रोह ने राजनीति में बड़ा बदलाव ला दिया है। भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और अस्थिर गठबंधन सरकारों से तंग आकर युवाओं ने संसद भवन और राजनीतिक दलों के मुख्यालयों को आग के हवाले किया। इसके बाद पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की की अंतरिम सरकार बनी है, जिसे 60 दिनों के भीतर चुनाव कराने हैं। जेनरेशन-ज़ी का आरोप है कि 2015 का संविधान किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं देता। आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के कारण 17 वर्षों में 14 गठबंधन सरकारें बनीं, जिससे भ्रष्टाचार और तोड़फोड़ को बढ़ावा मिला। वे चुनावी सुधार और स्थिर सरकार चाहते हैं। उनका मानना है कि पुराने दलों—नेपाली कांग्रेस, सीपीएन-यूएमएल और माओवादी सेंटर—ने जनता को निराश किया है।
नेपाल की आर्थिक हालत भी चिंताजनक है। भ्रष्टाचार सूचकांक 2024 में नेपाल 110वें स्थान पर है। युवा बेरोजगारी 20% तक पहुँच चुकी है और प्रतिदिन औसतन 2,200 नेपाली विदेश पलायन कर रहे हैं। 2025 में ही 4 लाख से अधिक लोगों ने देश छोड़ा। रेमिटेंस जीडीपी का 25% है, लेकिन यह निवेश में न लगकर उपभोग पर खर्च हो रहा है। विद्रोह का मुख्य कारण ओली सरकार द्वारा 26 सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स—फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, व्हाट्सएप—पर लगाया गया प्रतिबंध रहा। इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला माना गया। काठमांडू, पोखरा और बीरगंज में हुए प्रदर्शनों पर पुलिस फायरिंग में अब तक 72 मौतें और 2,100 से अधिक लोग घायल हो चुके हैं। अंततः दबाव में ओली को इस्तीफ़ा देना पड़ा। अब सभी की निगाहें मार्च 2026 में होने वाले चुनावों पर हैं।जेनरेशन-ज़ी चुनावी सुधार और नई राजनीतिक व्यवस्था की मांग तो कर रहा है, लेकिन संगठित नेतृत्व के अभाव में उनकी रणनीति स्पष्ट नहीं हो पाई है।