बिहार में 2025 के विधानसभा चुनावों ने राज्य की राजनीति को नई दिशा दे दी है। एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) ने भारी बहुमत के साथ सत्ता में वापसी करते हुए प्रदेश में एक बार फिर सरकार बनाई है। इस चुनाव में मतदाताओं ने जिस तरह से जागरूकता दिखाई और जिस तरह से मुद्दों की राजनीति हावी रही, उससे स्पष्ट है कि बिहार में लोकतंत्र जिंदा है और जनता अपने अधिकारों को लेकर सजग है।
एनडीए की जीत के कारण
एनडीए गठबंधन ने 243 सदस्यीय विधानसभा में 202 सीटें जीतकर स्पष्ट बहुमत हासिल किया। इसमें सबसे ज्यादा सीटें भारतीय जनता पार्टी (89), जनता दल (यूनाइटेड, 85) और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को 19 सीटें मिलीं। मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने लगातार पाँचवीं बार सरकार बनाने का मौका पाया है। यह जीत उनके नेतृत्व, भाजपा-जदयू की मजबूत रणनीति तथा सहयोगी दलों की एकजुटता की वजह से मानी जा रही है। कैडर आधारित संगठनों द्वारा प्रत्येक बूथ स्तर पर अभियान, पन्ना प्रमुख और और डिजिटल प्रचार ने मतदाताओं को जोड़ने में बड़ी भूमिका निभाई।
विपक्ष की रणनीति और विफलता
इस चुनाव में महागठबंधन में शामिल राष्ट्रीय जनता दल (RJD), कांग्रेस और वाम दलों को कुल मिलाकर केवल 35 सीटें मिलीं – जिसमें आरजेडी को 25, कांग्रेस को 6, और अन्य दलों को 4 सीटें मिलीं। तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाली आरजेडी को यादव-मुस्लिम समीकरण तो मिला, लेकिन यह समर्थन सीमित क्षेत्रों में सिमट कर रह गया। विपक्ष ने बेरोजगारी, महंगाई, शिक्षा और स्वास्थ्य को प्रमुख मुद्दा बनाया था, लेकिन वोटरों का झुकाव NDA की ओर रहा।
प्रमुख चेहरे और उनके विजय क्षेत्र
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नितीश कुमार (जदयू): उनके नेतृत्व और अनुभव को जनता ने सराहा।
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तेजस्वी यादव (राजद): हालांकि वे अपनी सीट (राघोपुर) से जीते, परंतु पार्टी को समग्र सफलता नहीं मिल पाई।
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चिराग पासवान (लोजपा-रामविलास): पार्टी ने 19 सीटें जीतकर उल्लेखनीय प्रदर्शन किया और मगध तथा कोसी क्षेत्र में मजबूत बनी।
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साम्राज्य चौधरी (डिप्टी सीएम, बीजेपी): बतौर उपमुख्यमंत्री उनकी जीत भी ऐतिहासिक रही।
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महेश्वर हजारी, प्रेम कुमार: विधानसभा के महत्वपूर्ण चेहरों में रहे।
जाति और सामाजिक समीकरण
बिहार में चुनावी राजनीति जातिगत समीकरणों पर बहुत निर्भर करती है। इस बार भी यादव, मुस्लिम, सवर्ण, दलित, महादलित, अत्यंत पिछड़ा वर्ग और महिला वोटर्स का रुझान महत्वपूर्ण रहा। कई नए समीकरण सामने आए — युवाओं और महिलाओं ने NDA के पक्ष में वोट दिए। महिला मतदाताओं की भागीदारी उल्लेखनीय थी, कई जगहों पर यह पुरुषों से अधिक रही।
मुद्दे जो छाए रहे
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सरकारी नौकरी, बेरोजगारी: विपक्ष ने रोजगार की समस्या को केंद्र में रखा, परंतु NDA ने अपने विकास कार्य, नई योजनाओं और कानून-व्यवस्था की मजबूती को प्रमुख सफलता बताया।
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महंगाई: महंगाई और आर्थिक कष्टों पर मतदाताओं की नाराजगी थी, लेकिन विपक्ष इसे पूरी तरह भुनाने में विफल रहा।
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शिक्षा-स्वास्थ्य: शिक्षा व स्वास्थ्य पर लगातार बहस हुई, लेकिन सरकार ने अपने उपलब्धियों और नए अस्पताल/स्कूलों का उल्लेख किया।
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लॉ एंड ऑर्डर: नीतीश कुमार की सरकार की कानून-व्यवस्था की छवि को लेकर जनता का भरोसा बरकरार रहा।
चुनाव प्रचार और तकनीकी नवाचार
2025 का यह चुनाव सोशल मीडिया, मोबाइल ऐप्स, डिजिटल प्रचार और डेटा एनालिटिक्स के माध्यम से लड़ा गया। नेताओं ने डिजिटल रैलियों का सहारा लिया, ज़ूम और वीडियो संदेशों से सीधा संवाद कायम किया। कोविड और बाद के दौर में विकसित इस चुनाव प्रचार शैली ने गाँव-गाँव तक राजनीतिक दलों को पहुंचा दिया।
महिला और युवा वोटर का असर
आश्चर्यजनक रूप से कई जगहों पर महिला मतदाता पुरुषों से अधिक संख्या में वोट डालने पहुंचीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नितीश कुमार की ‘सशक्त महिला, सशक्त बिहार’ थीम ने महिलाओं को आकर्षित किया। साथ ही, युवाओं के लिए स्टार्टअप, शिक्षा, नौकरियों की घोषणाओं ने उन्हें NDA के पक्ष में किया।
AIMIM, अन्य छोटे दलों का प्रदर्शन
इस चुनाव में हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने सीमांचल क्षेत्र में 5 सीटों पर जीत हासिल कर सियासत के नए समीकरण गढ़े। कई अन्य छोटे दलों (HAM, VIP, लोजपा-रामविलास, Rashtriya Lok Morcha) ने भी स्थानीय स्तर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
विपक्ष के आरोप और विवाद
पराजित महागठबंधन ने वोट गिनती में गड़बड़ी, EVM में छेड़छाड़ और ‘वोट चोरी’ के आरोप लगाए, लेकिन चुनाव आयोग और NDA ने इन्हें सिरे से खारिज किया। निष्पक्षता बनाए रखने के लिए 18,000 से अधिक मतगणना एजेंटों ने निगरानी की।
भविष्य की चुनौतियाँ
अब सभी की नज़रें सरकार की नई प्राथमिकताओं और योजनाओं पर हैं। बिहार में निवेश, शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार के क्षेत्र में व्यापक सुधार की अपेक्षा है। साथ ही, एनडीए सरकार को विपक्ष के आरोपों तथा जनता की आकांक्षाओं के बीच संतुलन बिठाना होगा।
निष्कर्ष
2025 का बिहार विधानसभा चुनाव लोकतंत्र की ऊर्जा और आम जनता की जागरूकता का परिचायक रहा। एनडीए की धमाकेदार वापसी और विपक्ष की कमजोरी आने वाले वर्षों के लिए कई राजनीतिक संकेत छोड़ गई है। बिहार की राजनीति अब गाँव-गाँव तक पहुँची है — और यहाँ परिवर्तन निरंतर जारी है।