संगीत जगत में शोक की लहर—36 देशों में किया था भारत का नाम रोशन
भारतीय शास्त्रीय संगीत की दुनिया के दिग्गज और कालवाड़–जयपुर घराने के प्रसिद्ध क्लारनेट वादक उस्ताद अब्दुल अज़ीज़ साहब (74 वर्ष) का आकस्मिक दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। उनके निधन से संगीत जगत में शोक की गहरी लहर दौड़ गई है। देश-विदेश के उस्तादों, कलाकारों और संगीत प्रेमियों ने फोन पर और व्यक्तिगत रूप से पहुंचकर श्रद्धांजलि अर्पित की।
उस्ताद अब्दुल अज़ीज़ केवल एक कलाकार नहीं, बल्कि जयपुर घराने की सांस्कृतिक आत्मा थे। शुद्ध सुरों की साधना, भाव की गहराई, रागों में भक्ति और आध्यात्मिक स्वर के कारण वे अपने आप में एक संस्था माने जाते थे। उन्होंने 36 देशों में प्रस्तुति देकर भारत और राजस्थान का नाम विश्व पटल पर रोशन किया। फ्रांस में हुए अंतरराष्ट्रीय संगीत सम्मेलन में उन्हें विशेष पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया था।
उस्ताद अब्दुल अज़ीज़ कालवाड़ घराने की उस परंपरा के साधक थे, जहाँ संगीत केवल पेशा नहीं बल्कि साधना माना जाता है।
उनकी वादन शैली की प्रमुख विशेषताएँ—सुरों की अद्भुत शुद्धता
भाव और राग की गहन अभिव्यक्ति
धुनों में भक्ति, ध्यान और आध्यात्मिकता का समावेश
क्लारनेट पर शब्दों की स्पष्टता जैसी मिठास: उनके राग-प्रस्तुति में राग यमन, दरबारी, बिहाग और मालकौंस विशेष रूप से लोकप्रिय थे। उनकी बंदिशें प्रायः भक्ति रस और सूफियाना एहसास से जुड़ी रहती थीं। आलाप और तान में कालवाड़ घराने का विशिष्ट रंग साफ झलकता था।
उस्ताद साहब ने अपने जीवन में कई अंतरराष्ट्रीय संगीतकारों के साथ काम किया। कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, दुबई, मलेशिया, इंडोनेशिया सहित अनेक देशों में उनकी प्रस्तुतियाँ आज भी याद की जाती हैं। वह भारत की शास्त्रीय परंपरा को नई पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए अनेक संस्थानों से जुड़े हुए थे।
उस्ताद अब्दुल अज़ीज़ अपने पीछे चार पुत्रों का परिवार छोड़ गए हैं। परिवार सहित पूरे राजस्थान के संगीत जगत में गहरा शोक है। अनेक उस्तादों और संगीत संस्थानों ने उनके निधन को अपूरणीय क्षति बताया है।
उस्ताद अब्दुल अज़ीज़ का जीवन और कला हमेशा आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनी रहेगी। उनका स्वर, उनकी साधना और उनका घराना—भारतीय संगीत में एक अमर धरोहर बनकर सदैव जीवित रहेगा।