रघु ठाकुर
आज देश के महान किसान नेता, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, महात्मा गांधी के अनुयायी और उनके विचारों के प्रखर प्रवर्तक चौधरी चरण सिंह का जन्मदिवस है। चौधरी चरण सिंह के हृदय में किसान बसते थे। वे जीवन के हर क्षण किसानों की उन्नति और उनके भविष्य के बारे में चिंतन करते रहे।
उन्होंने देश के किसानों की गरीबी के वास्तविक कारणों को गहराई से समझा और सत्ता में रहते हुए तथा प्रतिपक्ष में रहते हुए भी निरंतर सरकारों को इस सच्चाई से अवगत कराते रहे। जब वे उत्तर प्रदेश के राजस्व मंत्री बने, तब उन्होंने जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम जैसे क्रांतिकारी कानून को पारित कराया, जिससे उत्तर प्रदेश के लाखों खेतिहर मजदूर भूमि के स्वामी बने।
चौधरी चरण सिंह सदैव इस प्रश्न पर केंद्रित रहे कि किसानों की वास्तविक तरक्की कैसे हो। एक ओर वे सरकारी नीतियों और कानूनों के माध्यम से किसान हितों की रक्षा करते थे, वहीं दूसरी ओर किसानों को राजनीति के प्रति जागरूक करते हुए सत्ता की दिशा को गांव और खेत-खलिहान की ओर मोड़ने का प्रयास करते थे। उनका प्रसिद्ध कथन था—
“भगवान ने तुम्हें दो आंखें दी हैं—एक खेती पर रखो और दूसरी राजनीति पर।”
वे यह भी कहते थे कि “दिल्ली का रास्ता खेत-खलिहानों से होकर जाता है।”
उनका ही प्रभाव था कि 1977 के बाद लगभग दो दशकों तक भारतीय राजनीति के केंद्र में किसान और कृषि के प्रश्न बने रहे। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक ‘भारतीय अर्थव्यवस्था का दुःस्वप्न: कारण और निदान’ देश की गरीबी, कृषि संकट और आर्थिक विषमताओं का वस्तुनिष्ठ और गहन विश्लेषण प्रस्तुत करती है।
चौधरी चरण सिंह सच्चे गांधीवादी थे। उनका मानना था कि देश की गरीबी और किसानों के दुःख का मूल कारण खेती पर बढ़ता आर्थिक बोझ है। वे ईमानदारी के प्रतीक थे। उन्होंने राजनीति को उद्योगपतियों के धन से मुक्त रखते हुए जनसहयोग और किसान शक्ति से संचालित करने का मार्ग दिखाया। उन्होंने कभी किसी उद्योगपति से राजनीतिक चंदा नहीं लिया, बल्कि किसानों में चेतना जगाकर आत्मनिर्भर राजनीति का रास्ता प्रशस्त किया।
आज देश को चौधरी चरण सिंह जैसे दूरदर्शी, ईमानदार और किसान-केंद्रित नेतृत्व की अत्यंत आवश्यकता है। लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी उन्हें श्रद्धा और सम्मान के साथ स्मरण करती है।