
नीतिगत बाधाओं के कारण नर्सिंग होम और निजी अस्पताल संकट में, सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की मांग
दिल्ली में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति लगातार गंभीर होती जा रही है। नेशनल मेडिकल फोरम और दिल्ली हॉस्पिटल्स फोरम के अध्यक्ष डॉ. प्रेम अग्रवाल ने आज एक संवाददाता सम्मेलन में बताया कि राष्ट्रीय राजधानी में निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम्स में करीब 8,000 बिस्तरों की कमी उत्पन्न हो गई है। इसका प्रमुख कारण विभिन्न सरकारी एजेंसियों की कठोर और अव्यवहारिक नीतियाँ हैं।
डॉ. अग्रवाल ने कहा कि वर्ष 2007 में तैयार हुए मास्टर प्लान 2021 में दिल्ली की अनियंत्रित जनसंख्या वृद्धि और अव्यवस्थित शहरीकरण को देखते हुए स्वास्थ्य ढांचे के लिए विशेष दिशा-निर्देश दिए गए थे। इस योजना में 15 मीटर से कम ऊँचाई वाले रिहायशी भवनों को “अन्य उपयोग” श्रेणी में लाकर अस्पतालों के रूप में विकसित करने की अनुमति दी गई थी। इस नीति के तहत दिल्ली में 800 से अधिक अस्पताल और नर्सिंग होम अस्तित्व में आए, जिससे 20,000 से अधिक बिस्तरों की क्षमता निर्मित हुई।
लेकिन वर्तमान में यह प्रक्रिया लगभग ठप पड़ी है।
नर्सिंग होम सेल ने अग्निसुरक्षा (फायर एनओसी) प्राप्त होने तक नए अस्पतालों का पंजीकरण और पुराने अस्पतालों के नवीनीकरण पर रोक लगा दी है। फायर डिपार्टमेंट, इन अस्पतालों को “नया आवेदन” मानते हुए एनओसी देने से इनकार कर रहा है क्योंकि रिहायशी भवनों में 50,000 लीटर पानी की टंकी, दो मीटर चौड़ी सीढ़ियाँ और पाँच मीटर चौड़े गलियारे जैसे संस्थागत भवनों की शर्तें पूरी कर पाना असंभव है।
इसके चलते कई अस्पतालों को अपनी सेवाएं तीन मंजिलों से घटाकर एक मंज़िल पर सिमटानी पड़ी हैं, जिससे हजारों बिस्तरों की क्षमता बेकार पड़ी है। डॉ. अग्रवाल ने इसे “दिल्ली की जनता के साथ धोखा” करार दिया।
इसके अतिरिक्त, डीजीएचएस (स्वास्थ्य सेवाएं निदेशालय) द्वारा 50 से अधिक बिस्तरों वाले अस्पतालों में अनिवार्य एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) लगाने की शर्त भी दिल्ली के स्वास्थ्य ढांचे को कमजोर कर रही है, जबकि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा आरटीआई के माध्यम से स्पष्ट किया गया है कि यह आवश्यकता गैर-आवश्यक है। इस नीति के कारण कई अस्पतालों को अपनी क्षमता 100 से घटाकर 50 बिस्तरों तक सीमित करनी पड़ी है।
डॉ. अग्रवाल ने बताया कि इन सभी समस्याओं को लेकर नेशनल मेडिकल फोरम और दिल्ली हॉस्पिटल्स फोरम की ओर से दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री को पत्र लिखा गया है, जिसमें सभी नीतिगत बाधाओं को दूर करने और तत्काल प्रभाव से समाधान निकालने की मांग की गई है।
यदि समय रहते कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्था आगामी किसी भी महामारी या आपात स्थिति से निपटने में सक्षम नहीं रह पाएगी।