करवा चौथ पर सुहागिन महिलाएं शनिवार, 27 अक्टूबर को दिनभर निर्जला व्रत रखकर शाम को सोलह श्रृंगार करेंगी। फिर मां गौरी, भगवान शंकर, गणेश व कार्तिकेय को पुष्प, अक्षत, धूप, दीप आदि अर्पित करके करवा चौथ कथा का पाठ करेंगी। इसके बाद चंद्रमा को अघ्र्य देकर पति को चलनी से देखने के बाद व्रत का पारण कर सकेंगी। ज्योतिर्विद आशुतोष वाष्र्णेय बताते हैं कि करवा चौथ का व्रत सुहागिन महिलाएं पति की चिरायु के लिए रखती हैं। कुंवारी युवतियां भी इस व्रत को रखकर पूजा पाठ कर सकती हैं। करवा चौथ के व्रत का वैज्ञानिक दृष्टि से भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि धार्मिक पक्ष।
विश्व पुरोहित परिषद के अध्यक्ष ज्योतिर्विद प्रो. विपिन पांडेय बताते हैं कि करवाचौथ व्रत में चंद्रमा की पूजा धार्मिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। चंद्रमा मन का कारक एवं औषधियों को संरक्षित करता है। कार्तिक मास में औषधियों के गुण विकसित अवस्था में होते है। यह गुण उन्हें चंद्रमा से ही प्राप्त होता है। यह व्यक्ति के स्वास्थ्य और निरोगी काया को बनाता है। करवा चौथ के व्रत में चंद्रमा को अर्घ्य देने का विधान इसी कारण है। इससे मानव को आयु, सौभाग्य और निरोगी काया की प्राप्ति होती है।
करवा चौथ व्रत रखने व पूजन की विधि :
– व्रत के दिन प्रात: स्नानादि करने के बाद ‘मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये’ को मन में बोलकर करवाचौथ का व्रत आरंभ करें।
– दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावल के घोल से करवा चित्रित करें, इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है।
– आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ एवं अन्य पकवान बनाएं।
पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएं।
– गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं। चौक बनाकर आसन को उस पर रखें। गौरी को चुनरी ओढ़ाएं, बिंदी आदि सुहाग सामग्री से उनका श्रृंगार करें।
– जल से भरा हुआ लोटा रखें।
– वायना (भेंट) देने के लिए मिट्टी का टोटीदार करवा लें। करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें, उसके ऊपर दक्षिणा रखें।
– रोली से करवा पर स्वास्तिक बनाएं।
– गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें।
– करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवाचौथ की कथा कहें या सुनें।
– कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सास के पांव छूकर आशीर्वाद लेकर करवा उन्हें दें।
– रात में चंद्रमा निकलने के बाद चलनी की ओट से उसे देखें, फिर उसी से पति को देखें। इसके बाद चंद्रमा को अघ्र्य दें।
– इसके बाद पति से आशीर्वाद लेकर उन्हें भोजन कराकर स्वयं करें।
 
                 
                 
                 
                 
                 
                