जिन श्रीराम के नाम पर भारतीय जनता पार्टी तमाम दलों को पछाड़ कर देश में 80 सीटें जीतकर देश की दूसरी बड़ी पार्टी बनी और फिर धीरे धीरे जनता से राममंदिर बनाने के लिए निरंतर जनमत लेती रही वही बीजेपी पूर्ण बहुमत सरकार बनते ही राम मंदिर मामले में चार साल से चुप रही। मंदिर मामले को उसने सुप्रीम कोर्ट में बताकर निर्माण पर आगे बढ़ने से पल्ला झाड़ा मगर चुनाव आते आते करुणानिधान श्रीराम भारतीय जनता पार्टी को फिर से प्यारे होने लगे।
उत्तर प्रदेश में भगवा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ राम मंदिर निर्माण पर खुल कर बोलने लगे तो उत्तेजक बयान देने वाली भाजपा की फायरब्रांड नेता मंडली फिर फार्म में आ गई। उत्तर प्रदेश में उमा भारती तो बिहार में गिरिराज सिंह मोर्चा संभाल रहे हैं। बची खुची कसर भाजपा के चचेरे फुफेरे संगठन विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल आदि कर रहे हैं।
इस बीच भाजपा के अंदर से ही दूसरा राग निकल रहा है। भाजपा की बहराइच से सांसद सावित्री बाई फुले ने लालकृष्ण आडवाणी के मंदिर आंदोलन से लेकर आज तक की भाजपा की हिन्दूवादी गर्जना से एकदम विरोधी बयान दिया है। भाजपा की दलित सांसद ने डंके की चोट पर कहा है कि अयोध्या में न मस्जिद बनना चाहिए और न राममंदिर बनना चाहिए। अयोध्या में केवल बुद्ध का मंदिर बनना चाहिए। पार्टी विद डिफरेंस कही जाने वाली अनुशासन समर्पित भाजपा में इस बयान को अचानक ही नहीं दे दिया गया है। ऐसा नहीं है कि भाजपा से इस्तीफा देने वाली साध्वी फुले का यह बयान मोदी और अमित शाह से लेकर हिन्दुओं की पैरोकार भाजपा के तमाम शीर्ष नेतृत्व ने सुना न हो।
मोदी और अमित शाह के सांसद तो छोड़िए तमाम राज्यों के विधायक भी कहां कहां क्या क्या बोल रहे हैं ये पार्टी और सरकार को पूरा पूरा पता है और उस पर कठोरता से नियंत्रण भी है। इतने चौकन्ने केन्द्रीय नेतृत्व के बावजूद भाजपा की सांसद सावित्रीबाई फुले क्यों राममंदिर निर्माण के खिलाफ बोलती हैं और क्यों रामभक्त मोदी और अमित शाह उन पर चुप हैं ये सवाल सबको परेशान कर रहा है। क्या राम मंदिर के लिए गर्जना और बुद्ध के लिए सावित्रीबाई के जरिए गर्जना कराकर भाजपा सवर्ण और अन्य, दोनों नावों की सवारी कर रही है और अपने खेमे से दलित राजनीति को सामने लाकर एक बार फिर से राममंदिर निर्माण पर निर्णायक लड़ाई से बचने की बिसात बिछा रही है। ये बड़े सवाल हैं जो देश के अगले आम चुनाव में मोदी और अमित शाह से तीखे तेवरों से पूछे जाएंगे।
दरअसल भाजपा को विपक्ष की भीड़ से पहचान वाले विपक्ष, मजबूत विपक्ष, गठबंधन सरकार और सबसे अंत में मजबूत सरकार तक पहुंचाने में जितना जनता का आशीर्वाद मिला है उससे कहीं भी कम देश के करोड़ों रामभक्तों ने नहीं दिया है। अयोध्या में रामलला हम आएंगे मंदिर वहीं बनाएंगे के नारे की गर्जना के बाद से भारतीय जनता पार्टी ने भारत के एक बहुत बड़ी हिन्दू वोटर जनता को अपने पाले में कर रखा है। राम के नाम पर ये करोड़ों वोटर भाजपा पर आशीर्वाद इस आस में बनाए रहे कि आडवाणी ने जो रामलला के लिए आंदोलन शुरु किया है वो भाजपा के राज में मंदिर निर्माण से संपन्न होगा। इसके लिए देश के हिन्दुओं ने भारतीय जनता पार्टी को अटल आडवाणी से लेकर मोदी और अमित शाह के युग तक भरपूर आशीर्वाद दिया है। ये बड़ा सवाल है और यही सवाल अब भारतीय जनता पार्टी पर विपक्ष को जोरदार हमले की जमीन दे रहा है। अटल के अध्यक्ष रहते जो भाजपा देश में सत्ता से कोसों दूर रही उसे आडवाणी के मंदिर आंदोलन ने देश भर में चर्चा में ला दिया। भाजपा के इस भगवा तेवर ने देश के बहुसंख्यक हिन्दुओं को तुष्टिकरण के खिलाफ एक विकल्प दिखाया और हर आम चुनाव में भाजपा निरंतर सत्ता की सीढ़ियां चढ़ती चली गई। वक्त आया जब भाजपा सत्ता में भी पहुंची मगर पूर्ण बहुमत न होने की बात करके उसने करोड़ों हिन्दुओं को बताया कि उसे सत्ता में पहुंचाने का शुक्रिया मगर राममंदिर निर्माण उसे बिना पूर्ण बहुमत दिए देश में नहीं किया जा सकता। अटल युग के अवसान और दस साल के कांग्रेसी राज के बाद भाजपा ने एक बार फिर हिन्दूवादी नरेन्द्र मोदी को मैदान में उतारा और राममंदिर की आस लिए देश के तमाम हिन्दू समाज ने जातियों से एक तरफ रखकर मोदी को पूर्ण बहुमत से सत्ता के सिंहासन पर पहुंचा दिया। मोदी हिन्दुत्व की गर्जना और एकजुट लहर पर दिल्ली की कुर्सी पर बैठे मगर सत्ता में बैठते ही वे विकास के पैरोकार पीएम बने। जनता ने भी उन्हें सराहा और विकास देखने की आस रही। 2014 से लेकर अब तक उस हसीन ख्याब के बीच काफी पानी गंगा में बह चुका है और अब 2019 का चुनावी तट एकदम करीब है। इस बीच जो राममंदिर निर्माण का मुद्दा भाजपा के विकास एजेंडे से गायब हो गया था वो अब प्रचंड रूप में फिर से फिर से सामने लाया जा रहा है। भाजपा चुनाव के जैसे जैसे करीब आ रही है वैसे वैसे भाजपा के बड़े बड़े नेताओं को करुणानिधान श्रीराम याद आ रहे हैं। भाजपा के फायर ब्रांड नेताओं को फिर से काम मिल गया है। विकास वाली टीम कोने में हो गई है और भगवा और हिन्दुत्व के भाजपाई चेहरे ओपनर बनकर उतरे हैं। राममंदिर निर्माण पर फिर वही सालों पुराने दावे और नारे लगाए जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की परवाह न करते हुए राममंदिर निर्माण के लिए कानून बनाने का जयघोष किया जा रहा है। 2018 के समापन और चुनावी साल 2019 के आगमन पर भाजपा का राममंदिर राग फिर से नए सवाल खड़े कर रहा है। विपक्ष भाजपा पर श्रीराम को ठगने का पानी पी पीकर आरोप लगा रहा है। खुद भाजपाई भी कई दफा इस मुद्दे पर फंसते नजर आ रहे हैं। ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि आखिर राममंदिर पर भाजपा की घर वापिसी क्या वाकई भाजपा को भवसागर से पार लगाएगी।