तिरुवनंतपुरम। विविधताओं से भरे भारत में धार्मिक सौहार्द की मिसाल देखने को मिली है। सबरीमाला मंदिर को लेकर चर्चा में आए केरल राज्य में हिंदू श्रद्धालुओं ने धर्म की खूबसूरत तस्वीर पेश की है। जी हां, जिस देश में किसी धार्मिक किताब के फटे पन्ने मिल जाने से दंगे भड़क जाते हैं, किसी गुरु के बारे में कुछ कह देने मात्र से तलवारें खिंच जाती है, उसी देश में अगर मस्जिद की परिक्रमा और चर्च के पवित्र तालाब में डुबकी लगाकर तीर्थयात्रा का प्रारंभ और समापन किया जाता हो तो इससे बेहतर सर्वधर्म समभाव की मिसाल क्या हो सकती है।
यह कोई कपोल कल्पित कहानी नहीं है, बल्कि केरल राज्य की हकीकत है। ऐसा करने वाले भी कोई और नहीं बल्कि सबरीमाला मंदिर जाने वाले श्रद्धालु ही हैं। सबरीमाला मंदिर यानी श्री अयप्पा मंदिर की वार्षिक तीर्थयात्रा से पहले श्रद्धालु पहले मस्जिद की परिक्रमा करते हैं, जबकि यात्रा का समापन चर्च के तालाब में डुबकी के साथ करते हैं।
नवंबर के मध्य से शुरू होकर दो महीने तक चलने वाले वार्षिक भगवान अयप्पा तीर्थयात्रा के दौरान कोट्टायम जिले की वावर पाली मस्जिद (इरुमेली नयनार जुमा मस्जिद) और पड़ोसी अलप्पुझा जिले के अर्थुकल सेंट एंड्रयू बैसिलिका चर्च के मुख्य द्वार को सबरीमाला श्रद्धालुओं के लिए खुला रखा जाता है।
शरीर पर पारंपरिक काले कपड़े, गले में मनकों की माला, ललाट, सीने और बाजुओं पर भस्म लगाए हिंदू श्रद्धालु हर साल मस्जिद और चर्च जाकर प्रार्थना करते हैं। स्थानीय स्तर पर मान्यता है कि भगवान अयप्पा की मुस्लिम युवक वावर और ईसाई पादरी जैकोमो फैनिसियो से गहरी मित्रता थी, उसी को जीवंत करने के लिए हिंदू श्रद्धालु हर साल चर्च और मस्जिद की यात्रा करते हैं। मस्जिद और चर्च के दरवाजे सिर्फ हिंदू श्रद्धालुओं के लिए खुले ही नहीं रहते हैं, बल्कि स्वामी नारायण अयप्पा मंत्र का उद्घोष करते हिंदुओं का स्वागत भी उत्साह और उमंग के साथ किया जाता है।
जब भारत माता की जय बोलने पर आपत्ति उठाई जाती हो, तब अपने भगवान की आराधना में लीन भक्तों का दूसरे धर्म के लोगों द्वारा स्वागत किया जाना वास्तव में अद्वितीय है। जब धार्मिक मसलों पर देश में लड़ाई छिड़ी हो तब मंदिर, मस्जिद और चर्च धार्मिक सौहार्द की अनूठी मिसाल पेश करते हैं।
वावर मस्जिद के मौलवी हाकिम के मुताबिक केरल के अलावा तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के श्रद्धालु भी अयप्पा मंदिर जाने से पहले वावर मस्जिद आते हैं। वह बताते हैं कि हिंदू श्रद्धालु प्रार्थना कक्ष में तो नहीं जाते, बल्कि मस्जिद की परिक्रमा करते हैं, भोग चढ़ाते हैं और नारियल फोड़ते हैं जबकि, हाल में मुस्लिम नमाज अदा करते हैं। मस्जिद की तरफ से वार्षिक सबरीमाला तीर्थयात्रा के समापन पर एक महोत्सव का भी आयोजन किया जाता है।
यहां यह भी जानना रोचक है कि सबरीमाला में भी एक वावर नाडा है, जो वावरस्वामी को समर्पित है। हिंदू श्रद्धालु भगवान अयप्पा के मित्र वावर को वावरस्वामी के नाम से पुकारते हैं। सबरीमाला मंदिर में पूजा करने के बाद श्रद्धालु चर्च जाते हैं, जहां वह अपनी मनकों की माला उतारते हैं। चर्च के पादरी के मुताबिक यहां माला उतारने के बाद श्रद्धालुओं के 41 दिन की तीर्थयात्रा का समापन होता है। पादरी के मुताबिक 1584 में चर्च के पादरी रहे फादर जैकोमो फेनिसियो और भगवान अयप्पा के बीच गहरी दोस्ती थी। स्थानीय पौराणिक कथाओं के मुताबिक लोग दोनों को भाई समझते थे। पादरी ने बताया कि तीर्थयात्रा सीजन शुरू होने से पहले चर्च के तालाब को स्वच्छ कर दिया जाता है। हिंदू श्रद्धालुओं के लिए चर्च में और भी इंतजाम किए जाते हैं।
यहां मान्यता है कि तुलसी या रुद्राक्ष की माला पहनकर, व्रत रखकर और सिर पर नैवेद्य रखकर जो भी व्यक्ति आता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह मंदिर 1535 ऊंची पहाड़ियों पर स्थित है। इस मंदिर से पांच किलोमीटर दूर पंपा तक कोई गाड़ी लाने का रास्ता नहीं हैं, इसी वजह से पांच किलोमीटर पहले ही उतर कर यहां तक आने के लिए पैदल यात्रा की जाती है।