तिब्बत के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने शुक्रवार को कहा कि बौद्ध परंपरा बहुत उदार है, उसमें पुरुष और महिलाओं दोनों के लिए समान अधिकार हैं तथा भविष्य में कोई ‘महिला दलाई लामा’ हो सकती है। दलाई लामा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-बंबई में एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। दलाई लामा को साल 1989 में नोबेल का शांति पुरस्कार मिला था और तिब्बत तथा अन्य कारणों के लिए आजादी का समर्थन करने के कारण उन्हें दुनियाभर में पहचाना जाता है। यह पूछे जाने पर कि क्या भविष्य में कोई महिला दलाई लामा हो सकती है, इस पर उन्होंने कहा कि बौद्ध धर्म ने दोनों लिंगों को समान अधिकार दिए हैं और तिब्बत तथा भारत में महिलाएं भी पंथ प्रमुख रह चुकी हैं। दलाई लामा ने कहा, ‘करीब 15 साल पहले महिलाओं के लिए एक फ्रांसीसी पत्रिका की संपादक ने मेरा साक्षात्कार लिया। उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या भविष्य में कोई महिला दलाई लामा हो सकती है। मैंने कहा था, हां। अगर भविष्य में महिला ज्यादा प्रभावी हुई तो निश्चित तौर पर हां। बौद्ध परंपरा काफी उदार है।’ उन्होंने कहा कि बचपन से ही दी जाने वाली शिक्षा में भावनात्मक स्वच्छता की महत्ता को आत्मसात करना चाहिए क्योंकि शारीरिक स्वास्थ्य के लिए दिमाग शांत होना चाहिए। उन्होंने कहा कि दूसरे देशों ने ईश्वर की अवधारणा को अपनाया लेकिन केवल प्रार्थना करने के लिए जबकि भारत ने मानसिक शांति की तकनीक विकसित की। दलाई लामा ने कहा, ‘खुशी का शांति से गहरा संबंध है। 20वीं सदी में काफी हिंसा और परेशानियां थी। 21वीं सदी में इसे दोहराना नहीं चाहिए और शांति होनी चाहिए। लेकिन आंतरिक शांति के बिना आप वास्तविक शांति पैदा नहीं कर सकते।’