प्रभु यीशु ने मनुष्य और मनुष्य के बीच में, धर्म और धर्म के बीच में या संस्कृति और संस्कृति के बीच में कोई अंतर नहीं रखा। जिस समाज के वे सदस्य थे, उसकी मानसिकता अत्यंत संकीर्ण थी। लोग अपने आपको ईश्वर की चुनी हुई प्रजा मानते थे और दूसरों से अलग रहना चाहते थे। लेकिन यीशु सभी से मिलते-जुलते रहे।
मानवता को लेकर प्रभु ईसा ने पांच आदेश दिए। उन्होंने कहा,
1. पुराने धर्मग्रंथ में कहा है कि किसी की हत्या मत करो और जो आदमी हत्या करता है, वह गुनहगार है।
– पर मैं तुमसे कहता हूं कि जो आदमी अपने भाई पर गुस्सा करता है, वह परमात्मा की नजर में गुनहगार है। जो आदमी अपने भाई को गालियां देता है, कड़वी बातें कहता है, वह और ज्यादा गुनहगार है। अपने भाई पर मन में जो क्रोध हो, उसे प्रार्थना करने के पहले निकाल दो। उससे सुलह कर लो।
2. पुराने धर्मग्रंथों में कहा है कि व्यभिचार मत करो और पत्नी से अलग होते हो, तो उसे तलाक दे दो।
– पर मैं तुमसे कहता हूं कि व्यभिचार तो करना ही नहीं चाहिए। किसी पर कुदृष्टि डालने वाला भी ईश्वर के आगे गुनहगार है। जो आदमी पत्नी को तलाक देता है, वह खुद व्यभिचार करता है और पत्नी से भी व्यभिचार कराने का कारण बनता है। जो आदमी उससे विवाह करता है, उसे भी वह गुनहगार बनाता है।
3. पुराने धर्मग्रंथ में कहा है कि कसम न खाओ, किंतु परमात्मा के आगे अपनी प्रतिज्ञाओं पर डटे रहो।
– पर मैं तुमसे कहता हूं कि तुम्हें किसी भी हालत में कसम नहीं खानी चाहिए। किसी के बारे में पूछा जाए, तो ‘हां’ या ‘न’ में ही जवाब दे देना चाहिए।
4. पुराने धर्मग्रंथ में कहा है कि ‘आंख के बदले आंख फोड़ दो, दांत के बदले दांत तोड़ दो।’
– पर मैं तुमसे कहता हूं कि बुराई का बदला बुराई से मत दो। कोई तुम्हारे दाहिने गाल पर चांटा मारे, तो तुम बायां गाल भी उसके सामने कर दो।
5. पुराने धर्मग्रंथ में कहा है कि ‘केवल अपनी ही जाति के लोगों से प्रेम करो।
– पर मैं तुमसे कहता हूं की तुम्हें हर आदमी से प्रेम करना चाहिए। जो तुम्हें दुश्मन मानते हों, उनसे भी प्रेम करना चाहिए। सभी मनुष्य एक ही पिता की संतान हैं। सब भाई-भाई हैं। सबके साथ तुम्हें प्रेम का व्यवहार करना चाहिए।