ब्रज में श्रावण मास की छटा अद्भुत व अनौखी होती है। जो कि देखते ही बनती है। हर ओर अत्यंत हर्षोल्लास रहता है। वन-उपवन और कुंज लताओं की हरीतमा के मध्य नृत्य करते मयूरों के झुंड श्रावण के आगमन पर अपने पंख फैलाकर कुहुकने लगते हैं। वर्षा की नन्ही रिमझिम व बड़ी फुहारों के मध्य समूचा ब्रज प्रिया-प्रियतम में भाव निमग्न होकर झूमने लगता है। यहां श्रावण का अर्थ है- झूले, कजरी, बरसते मेघ, भीगता मन, खनकती चूड़ियाँ और खिलती महंदी। प्रत्येक व्यक्ति यह चाहता है कि वह आकाश को छू ले। यहां के विभिन्न मंदिरों में झूलों, हिंडोलों, रासलीला, मल्हार गायन व सत्संग-प्रवचन आदि की विशेष धूम रहती है। देश-विदेश के विभिन्न दूरवर्ती स्थानों से आये भक्त-श्रद्धालुओं व पर्यटकों का जमघट इस धूम का और अधिक सम्वर्धन कर देता है। इस माह में प्रायः प्रत्येक मन्दिर-देवालयों में हिंडोले सजाये जाते हैं। हिंडोले उन्हें कहते हैं कि जिनमें बैठकर ठाकुर जी झूला झूलते हैं। “भक्ति रसामृत सिंधु” ग्रंथ में यह लिखा है कि भक्ति के जो 64 अंग हैं उनमें एक अंग हिंडोला उत्सव भी है। साथ ही मन्दिरों को केले के पत्तों, फूल-पत्तियों, कांच की रंगीन पिछ्वाईयों व पर्दों आदि से सजाया जाता है, जिसे कि घटा कहते हैं। कभी काली घटा, कभी हरी घटा, कभी लाल घटा।
कुछ मन्दिरों में नित्य नए-नए प्रकार के हिंडोले सजाये जाते हैं। जिनमें ठाकुर विग्रह विराजित कर उनका मालपूए,घेवर व फैनी आदि से भोग लगाया जाता है। वस्तुतः ब्रज के प्रायः सभी ठाकुर विग्रह पूरे श्रावण मास यह मिष्ठान अगोरते रहते हैं। भगवान शिव को श्रावण मास अत्यंत प्रिय है। जो व्यक्ति पूरे श्रावण मास भर उनकी पूजा-अर्चना व व्रत आदि के द्वारा उन्हें प्रसन्न कर लेते हैं,उनकी समस्त मनोकामनायें पूर्ण हो जातीं हैं। श्रीधाम वृन्दावन के वंशीवट क्षेत्र स्थित गोपीश्वर महादेव मंदिर में इस मास शिव भक्तों का तांता लगा रहता है। भक्तगण उनका रुद्राभिषेक कर भांति-भांति से उनकी पूजा-अर्चना करते हैं।
ब्रज में श्रावण शुक्ल तृतीया को हरियाली तीज का त्योहार अत्यंत श्रद्धा व धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस पर्व में माँ पार्वती की पूजा का विधान है। ऐसा माना जाता है कि इसी व्रत के फल-स्वरूप पार्वती जी ने भगवान शिव को प्राप्त किया था। ब्रज में हरियाली तीज का त्योहार यहां की जीवन-शैली का एक अविभाजित हिस्सा है। यहाँ यह त्योहार भगवान श्रीकृष्ण और उनकी आल्हादिनी शक्ति राधा रानी के “झूलनोत्सव” के रूप में तीज से लेकर रक्षा बंधन तक पूरे 13 दिनों अत्यंत धूमधाम के साथ मनाया जाता है। साथ ही यहाँ इन दिनों सर्वत्र हिंडोला उत्सव की बहार आ जाती है। इस उत्सव के दौरान यहां के हर एक मन्दिर में हिंडोला पड़ जाता है और उनमें नित्य-प्रति संगीत की मृदुल स्वर लहरियों के मध्य झूले के पदों का गायन प्रारंभ हो जाता है। स्वर्ण व रजत मण्डित एवं विशाल व कलात्मक हिंडोले केवल ब्रज के मंदिरों में हीं दिखाई देते हैं। जो कि यहां के मंदिरों के वैभव व सम्पन्नता के प्रतीक हैं।
ब्रज के मन्दिरों में “हिंडोला उत्सव” अर्थात “झूलनोत्सव” का शुभारंभ महाप्रभु बल्लभाचार्य के समय में हुआ था।
हरियाली तीज पर वृन्दावन का विश्वविख्यात ठाकुर बाँके-बिहारी मंदिर सभी के आकर्षण का प्रमुख केंद्र रहता है। क्योंकि यहां वर्ष भर में केवल इसी एक दिन ठाकुर बाँके बिहारी जी महाराज को सोने व चांदी से बने अत्यंत भव्य व विशाल 218 किलो वजनी हिंडोले में झुलाया जाता है। यह हिंडोला सन 1947 में ठाकुर श्री बाँके बिहारी महाराज के अनन्य भक्त सेठ स्व. हरगुलाल बेरीवाला ने वाराणसी से कुशल कारीगरों को बुलाकर बनवाया था। यह हिंडोला उत्कृष्ट कारीगरी का नायाब नमूना है।
ठाकुर राधा-रमण मन्दिर वृन्दावन का प्रख्यात मन्दिर है। यहां हरियाली तीज के प्रथम तीन दिन सोने,अगले तीन दिन चांदी और फिर पूर्णिमा तक के शेष साथ दिन तक फूल-पत्ती आदि के भव्य हिंडोलों में लम्बे-लम्बे झोटे देकर ठाकुर जी को झुलाया जाता है।
वृन्दावन के ठाकुर राधादामोदर मन्दिर में हरियाली तीज से रक्षा बन्धन पर्यंत झूलन यात्रा महोत्सव की अत्यधिक धूम रहती है। इस दौरान ठाकुर जी को काष्ठ से सुसज्जित हिंडोले में झुलाया जाता है।इस दर्शन हेतु भक्त श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ता है।साथ ही लोग-बाग इस मंदिर की चार परिक्रमा भी करते हैं।क्योंकि यह मान्यता है कि इस मंदिर की चार परिक्रमा करने गिरिराज गोवर्धन की सप्तकोसीय परिक्रमा का पुण्य फल प्राप्त होता है।
उत्तर को दक्षिण से जोड़ने वाले वृन्दावन के प्रख्यात ठाकुर रँगलक्ष्मी मन्दिर में चांदी और शाहजी मन्दिर में सोने के हिंडोले में ठाकुर जी को झुलाया जाता है। शाहजी मन्दिर में रक्षा बंधन के दिन भक्त-श्रद्धालुओं को झाड-फ़ानूश से सुसज्जित बसन्ती कमरे के दर्शन भी कराए जाते हैं। यह कमरा वर्ष भर में केवल रक्षा बंधन व बसंत पंचमी पर ही खोला जाता है।
राधारानी की क्रीड़ा स्थली बरसाना के श्रीजी मन्दिर में भी हिंडोला उत्सव हरियाली तीज से रक्षा बन्धन तक मनाया जाता है। इस दौरान राधारानी के श्रीविग्रह को भव्य स्वर्ण हिंडोले में गीत-संगीत की मृदुल स्वर लहरियों के साथ झुलाया जाता है। जबकि नंदगांव के नन्दबाबा मन्दिर में ठाकुर जी को विशालकाय चांदी के हिंडोले में झुलाया जाता है।
भगवान श्रीकृष्ण के अग्रज ठाकुर दाऊदयाल की नगरी बल्देव के दाऊजी मन्दिर में श्रावण शुक्ल एकादशी से श्रावण शुक्ल पूर्णिमा तक भगवान श्रीकृष्ण के अग्रज दाऊजी व उनकी भार्या रेवती मैया के श्रीविग्रहों के समक्ष जगमोहन में 15-15 फुट के स्वर्ण व रजत जड़ित हिंडोले स्थापित कर दिये जाते हैं। साथ ही स्वर्ण जड़ित दर्पण में पड़ने वाले दाऊजी और रेवती मैया के प्रतिविम्बों को उक्त हिंडोलों में झुलाया जाता है। क्योंकि इन दौनों के विग्रह बड़े होने के कारण हिंडोलों में विराजित नही किये जा सकते हैं।
मथुरा के ठाकुर द्वारिकाधीश मन्दिर एवं गोकुल के विभिन्न बल्लभकुलीय मन्दिरों में श्रावण के प्रारंभ से रक्षाबंधन तक निरन्तर एक माह प्रतिदिन ठाकुर जी को हिंडोले में अत्यंत भाव व श्रद्धा के साथ झुलाया जाता है।यहाँ सोने का एक एवं चांदी के दो विशालकाय हिंडोले हैं। द्वारिकाधीश मन्दिर में हिंडोला उत्सव प्रायः श्रावण कृष्ण द्वितीया से प्रारंभ होकर भाद्र कृष्ण द्वितीया तक चलता है। इस दौरान श्रावण शुक्ल अष्टमी को लाल घटा, श्रावण शुक्ल दशमी को गुलाबी घटा, श्रावण शुक्ल द्वादशी को काली घटा, श्रावण शुक्ल चतुर्दशी को लहरिया घटा सजाई जाती है।
इस अनूठे हिंडोला झूलनोत्सव के दर्शन करने के लिए अपने देश के सुदूर प्रांतों से और विदेशों से भी असँख्य दर्शनार्थी यहां प्रतिवर्ष आते हैं। जो कि यहां के विभिन्न मंदिरों में सजाये गए हिंडोलों और घटाओं के मध्य राधा-कृष्ण के अद्भुत रूप-माधुर्य का दर्शन सुख प्राप्त कर कृतार्थ होते हैं।इस प्रकार समूचा ब्रज पूरे श्रावण मास सोने, चांदी व पुष्पों से आच्छादित हिंडोलों के द्वारा श्यामा-श्याम मय रहता है।
इस वर्ष पुरुषोत्तम मास (अधिक मास) होने के कारण श्रावण मास की अवधि 59 दिनों की रहेगी।जिसके अंतर्गत श्रावण के सोमवार व्रत 8 रहेंगे।