
उमेश जोशी
राजनीति से संन्यास ले चुके हरियाणा के जाट नेता चौधरी वीरेंद्र सिंह ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सलाह दी है कि वह ‘टायर्ड’ हो चुके हैं और ‘रिटायर्ड’ भी; लिहाजा उन्हें अब राजनीति से संन्यास ले लेना चाहिए, मेरी तरह।
इस बयान पर कांग्रेस का कोई नेता हुड्डा के बचाव के लिए आगे नहीं आया बल्कि कभी हुड्डा के खासमखास रहे कुलदीप शर्मा ने वहीं सलाह दे डाली जो चौधरी वीरेंद्र ने दी है। हाल में कुमारी सैलजा खेमे में शामिल हुए कुलदीप शर्मा ने हुड्डा को राजनीति से संन्यास लेने की सलाह दी है। जाहिर है, कुलदीप शर्मा अब वही भाषा बोलेंगे जो कुमारी सैलजा और उसका खेमा बोलता रहा हैं।
आश्चर्य की बात है कि हुड्डा के बचाव में बीजेपी के दिग्गज नेता और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर आगे आए हैं। उन्होंने कहा है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा ना तो ‘टायर्ड’ है ना ही रिटायर्ड; उन्हें राजनीति में बने रहना चाहिए। इस बयान पर कई अहम् सवाल उठना स्वाभाविक है। आखिर राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी भुपेंद्र सिंह हुड्डा को राजनीति में बनाए रखने में मनोहर लाल खट्टर की दिलचस्पी क्यों है? कांग्रेस में कौन नेता राजनीति में सक्रिय रहे और कौन रिटायर होकर संन्यास ले, इस मुद्दे पर भाजपा नेता क्यों चिंता में डूबे हुए हैं? इस पर चिंतन मनन कांग्रेस आला कमान को करना चाहिए लेकिन उससे पहले बीजेपी के नेता बयानबाजी क्यों करने लगे हैं और हुड्डा को राजनीति से संन्यास ना लेने की सलाह क्यों दे रहे हैं?
हरियाणा की राजनीति का मर्म समझने वाले एक विश्लेषक में बताया कि बीजेपी को जाट और गैर जाट की राजनीति रास आ रही है। हरियाणा में 2014 से सत्ता पर काबिज बीजेपी को यह समझ आ गया है कि जाट वोटो का ध्रुवीकरण होगा तभी गैर जाट वोट बीजेपी को मिलेंगे। बीजेपी उत्तर प्रदेश में मुसलमानों का डर दिखाकर हिंदुओं के वोट लेती है, ठीक उसी तरह हरियाणा में जाटों का डर दिखाकर गैर-जाटों के वोट लेती है। यह नीति बीजेपी को हरियाणा में जाट और गैर-जाट की राजनीति को पोषित करने को विवश करती है।
बीजेपी यह भी चाहती है कि किसी एक पार्टी का जाट नेता राज्य में सक्रिय न रहे; कम से कम दो अलग-अलग पार्टियों के जाट नेता सक्रिय रहें ताकि जाट वोटों का ध्रुवीकरण होने के साथ उनका विभाजन भी हो। बीजेपी यह भी जानती है कि अगर जाट वोटो का ध्रुवीकरण होकर किसी एक पार्टी को चला गया तो वह पार्टी सत्ता पर काबिज हो सकती है इसलिए जाट वोटो का ध्रुवीकरण के साथ बंटवारा भी होना चाहिए। बीजेपी की इस नीति का समर्थन करती है 25 सितंबर को रोहतक में हुई इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) की रैली।
इस रैली में इनेलो सुप्रीमो अभय चौटाला से लेकर छोटे-बड़े सभी नेताओं के निशाने पर थे। एक विपक्षी दल दूसरे विपक्ष दल की जी भर आलोचना करे और सरकार की किसी भी नीति पर एक शब्द ना बोले तो उसके मायने समझने में दिक्कत नहीं होती है। राजनीति की मामूली समझ रखने वाला व्यक्ति भी बीजेपी और इनेलो के नेताओं के आपसी रिश्ते समझ जाएगा। इनेलो के अभय चौटाला को मजबूत करने के पीछे बीजेपी की यही मंशा है जाट वोट भूपेंद्र सिंह हुड्डा की ओर न जाए उसका कुछ हिस्सा अभय चौटाला को भी मिले जाट वोटो का बँटवारा होगा तो ही बीजेपी सत्ता में बनी रह सकती है।
फिलहाल, हरियाणा में काँग्रेस बैकफुट पर है। अंदरूनी कलह काँग्रेस का भारी नुकसान कर रही है। 2024 के विधानसभा चुनाव में काँग्रेस की हार का मुख्य कारण भी अंदरूनी कलह ही मानी जा रही है। कई दशकों से काँग्रेस आपसी कलह से नहीं उबर पा रही है। आलाकमान भी कुछ नहीं कर पा रहा है।
कॉग्रेस आलाकमान 2024 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद से ही प्रदेश में जाटों का भरोसा जीत कर काँग्रेस को मजबूत स्थिति में लाने की रणनीति बना रहा था। इस प्रयास के तहत आलाकमान ने जाटों की नज़र में अब तक कमजोर दिख रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा को नेता प्रतिपक्ष बनाने का 29 सितंबर 2025 को ऐलान कर दिया। इस फैसले की लंबे समय से प्रतीक्षा की जा रही थी। हालांकि भूपेंद्र सिंह हुड्डा औपचारिक तौर पर नेता प्रतिपक्ष नहीं थे लेकिन हरियाणा विधानसभा में सरकार की ग़लत नीतियों के ख़िलाफ़ आवाज उठाकर जनता के हितों के लिए लगातार काम कर रहे थे। इसके साथ ही राव नरेंद्र सिंह को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया है। इन दोनों फैसलों से कांग्रेस को मजबूती मिलेगी, ऐसा कार्यकर्ताओं का विश्वास है।
कॉंग्रेस नेताओं का मानना है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा को नेता प्रतिपक्ष बनाने का फैसला भले ही देर से किया गया है, लेकिन सही फैसला है।