चंडीगढ़ः रक्षा मंत्रालय ने आखिरकार देश के सभी सैनिक स्कूलों में लड़कियों को प्रवेश देने का फैसला लिया है। भविष्य में सशस्त्र बलों के लिए लीडर तैयार करने वाला सैनिक स्कूल अब लड़कियों को भी इसके लिए तैयार करेगा। केंद्रीय रक्षा राज्यमंत्री डॉ. सुभाष रामराव भामरे ने बाताया के देश के सारे सैनिक स्कूलों में डेवलपमेंट का काम चल रहा है। स्कूलों में लड़कियों को प्रवेश देने के लिए कंस्ट्रक्शन का काम शुरू हो गया है। लड़कियों के लिए हॉस्टल्स और दूसरी सुविधाओं के लिए स्कूलों में तैयारी की जा रही है।
लंबे समय से चल रही थी मांग
डॉ. भामरे ने बताया कि केंद्र सरकार का यह फैसला क्रांतिकारी है। सैनिक स्कूलों में लड़कियों को पढ़ाकर सशस्त्र बलों के लिए तैयार करना महिला सशक्तिकरण का एक ऐतिहासिक फैसला है। लड़कियों को नेशनल डिफेंस एकेडमी में शामिल करने के लिए यह अहम पहल है। बता दें कि लड़कियों को सैनिक स्कूल में प्रवेश देने की मांग लंबे समय से चल रही थी।
सबसे अधिक सैनिक स्कूल हरियाणा में
अभी देश में 26 सैनिक स्कूल हैं और सबसे अधिक हरियाणा में हैं। हरियाणा के कुंजपुरा में एक सैनिक स्कूल है और रेवाड़ी व मातनहेल में स्कूल के निर्माण का काम चल रहा है। पंजाब के कपूरथला और हिमाचल प्रदेश के सुजानपुर तिरा में एक-एक स्कूल है। झुंझुनू (राजस्थान) और पूर्व सियांग (अरुणाचल प्रदेश) में इस वित्तीय वर्ष में स्कूल खोले जाने हैं। केंद्र सरकार इस फैसले पर भी गंभीरता से विचार कर रही है, जिससे सैनिक स्कूलों के कर्मचारियों को सातवां वेतन आयोग के सिफारिशों का लाभ मिले।
यूपी के सैनिक स्कूल ने की थी पहल
लखनऊ में स्थित कैप्टन मनोज पांडे उत्तर प्रदेश प्रदेश सैनिक स्कूल में छात्राओं को इस साल पहली बार प्रवेश दिया था। कक्षा 9 के 2018-19 शैक्षिक सत्र के लिए 2,500 छात्राएं उम्मीदवार थीं। विभिन्न वर्ग की इन छात्राओं में से 15 छात्राओं को चुना गया था। सैनिक स्कूल ने छात्राओं को प्रवेश देकर यूपी ने इतिहास बनाया था। यह देश का इकलौता ऐसा सैनिक स्कूल था, जिसमें छात्राओं को भी दाखिला मिला। हालांकि, यह स्कूल प्रदेश सरकार द्वारा संचालित है।
मिजोरम में भी दिया गया था लड़कियों को दाखिला
यूपी के सैनिक स्कूल के बाद मिजोरम के सैनिक स्कूल में इस साल 6 लड़कियों को दाखिला दिया गया था। यह रक्षा मंत्रालय के तहत आने वाले किसी भी सैनिक स्कूल में लड़कियों को मिला पहला दाखिला था। यह शुरुआत पायलट प्रोजेक्ट के तहत की गई थी। अब इसे पूरे देश के सैनिक स्कूलों में लागू किया जा रहा है।