बीबीसी ने पम्मा को दिया एंग्रीमेन का खिताब
परमजीत सिंह पम्मा एक ऐसा नाम है जो किसी पहचान का मोहताज नहीं है। कहावत है कि सपूत के पांच पालने में ही नजर आ जाते है यह कहावत परमजीत पर चरितार्थ होती है। समाजसेवी जत्थेदार त्रिलोचन सिंह के घर जन्म लेने वाले पम्मा को आम लोगों की सहायता व समाजसेवा विरासत में मिली है।
जत्थेदार त्रिलोचन सिंह ने अपना जीवन समाजसेवा में अर्पित कर दिया और पम्मा की छोटी आयु में ही वे सवर्ग सिधार गए लेकिन पम्मा ने उनके दिखाए रास्ते को ही अपना जीवन मान लिया। करीब 30 वर्ष की समाज सेवा में उन्होंने हर तबके, देश विरोधी गतिविधियों के खिलाफ आवाज उठाने के अलावा राजनीतिक पार्टियों के खिलाफ भी जनता के हित में आवाज उठाई यही कारण है कि उनको सबसे गुसैल व्यक्ति यानि एंग्रेीमैन के नाम का तमगा मिल गया। यहां तक के एशिया की सबसे बड़ी व्यापारी मार्केट सदर बाजार की फेडरेशन ऑफ सदर बाजार ट्रेड्स एसोसिएशन का चेयरमैन बनाया गया इसके साथ-साथ विभिन्न संस्थाओं ने अपने संगठन में उच्च पद दिए। जिससे पम्मा के जरिए उनकी आवाज भी प्रशासन व सरकार तक पहुंच सके।
परमजीत सिंह पम्मा ने शुरु में देखा कि बिना किसी इोसस्मंच के समाज सेवा में परेशानी आ रही है तो उन्होंने नेशनल अकाली दल का गठन कर लिया। दिल्ली में भाजपा सरकार के समय अचानक प्याज के दामों में भारी वृद्धि के चलते हाहाकार मच गई लेकिन सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाए। आखिर पम्मा ने अपनी अभ्म के साथ जिम्मेदारी उठाई और मंहगे दामों पर प्याज खरीदकर राजधानी के विभिन्न स्थानों पर सस्ती दरों पर बेच कर सरकार का ध्यान आम लोगों की परेशानी की और खींचा। सरकार ने ध्यान नहीं दिया तो भाजपा को सत्ता से हाथ धोना पड़ा।
इसी प्रकार भाजपा हो या कांग्रेस की सरकार पम्मा ने मंहगाई यानि दालों की बढ़ती कीमतो, पैट्रोल-डीजल के बढ़ते दाम व अन्य पर जनता की और से अपनी आवाज बुलंद की।
पम्मा ने अपना सामाजिक दायित्व निभाने के लिए टीवी चैनलों पर फूहड़ता व आन लाइन गेमो से बच्चों पर पड़े रहे दुष्प्रभाव पर आवाज उठाई और सरकार को इनके खिलाफ कार्रवई के लिए मजबूर किया। इस अभियान में सैंकडो लोगों ने पम्मा के प्रयास के साथ मिल कर आवाज उठाई और उनके कंधे से कंधा मिलाकर चले।
भारत में आतंकवाद कोई नया नाम नहीं है जहां राजनीतिक पाटियों अपना फायदा देखकर आवाज उठाती रही लेकिन पम्मा ने बिना किसी फायदे या लाभ के आंतकवाद के खिलाफ आवाज उठाई और सैंकडो धरना-प्रदर्शन कर सरकार का ध्यान इस और आकर्षित कर आतंकवाद के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने की मांग की। आतंकवाद के खिलाफ आवाज बुलंद करने पर उन्हें कई संगठनों से धमकियां भी मिले लेकिन अपनी जान की प्रवाह किए बिना परमजीत सिंह पम्मा ने अपना अभियान जारी रखा।
ऐसा नहीं है कि परमजीत सिंह पम्मा ने भारत में अपनी आवाज बुलंद की बल्कि विदेशों में सिख समाज व अन्य धर्म के लोगों के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ भी आवाज उठाई। इंग्लैंड में जब सेना में सिखों के पगड़ी पहनने पर रोक लगाई गई तो पम्मा व उसके साथियों ने जौरदार तरीके से आवाज उठाई। उन्होंने तत्कालीन माहारानी एलिजाबेथ को पत्र भी लिखा। यह पम्मा का ही प्रयास था कि माहारानी एलिजाबेथ ने संजान् लिया और पम्मा को पत्र लिखकर इस कानून को वापस लेने की जानकारी दी। इसी प्रकार पगड़ी के मुद्दे पर अन्य देशों में भी अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई।
परमजीत सिंह पम्मा पर काई डॉक्यूमेंट्री भी बन चुकी है और साथ ही उनके किए गए कार्यों पर कई मशहूर गायको गीत गए हैं।
बीबीसी ने अपने सर्वे में पम्मा को एंग्रीमेंंन का खिताब दिया जो आज भी कायम है।