विवेक शुक्ला
अंबेडकरवादी आंदोलन, बौद्ध धम्म और समाजवादी विचारधारा के प्रखर योद्धा, पूर्व सांसद तथा ‘ऑल इंडिया एक्स सांसद एसोसिएशन’ के पूर्व अध्यक्ष श्री श्याम सुन्दर लाल का 28 नवंबर 2025 को 89 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनके निधन से दिल्ली सहित पूरे उत्तर भारत में सामाजिक-राजनीतिक नेतृत्व का एक सशक्त स्तंभ ढह गया है।
1 सितंबर 1936 को दिल्ली में जन्मे श्याम सुन्दर लाल जी पूरी तरह ‘दिल्ली की मिट्टी’ के व्यक्ति थे।
लुटियंस दिल्ली के निर्माण के दौरान उन्होंने युवावस्था में 15 बलवंत राय मेहता लेन स्थित जिस सरकारी बंगले में बाद में सांसद रहते हुए निवास किया, उसी भवन के निर्माण में उन्होंने मजदूरी की थी। जब वे सांसद बने और यह तथ्य लोकसभा अध्यक्ष को ज्ञात हुआ, तो विशेष रूप से वही बंगला उन्हें सम्मानपूर्वक आवंटित किया गया—उनके संघर्षपूर्ण और प्रेरणादायक जीवन की एक अनोखी घटना।

संसद में लगी अंबेडकर प्रतिमा — उनके संघर्ष का अमिट परिणाम:
संसद परिसर में आज स्थापित डॉ. भीमराव अंबेडकर की भव्य प्रतिमा सहजता से नहीं लग सकी थी। इसके लिए दिल्ली में चलाए गए ऐतिहासिक ‘जेल भरो आंदोलन’ के अग्रणी नेता श्री बी.पी. मौर्य और श्याम सुन्दर लाल थे। तत्कालीन सरकार की अनिच्छा को जनदबाव के आगे झुकना पड़ा और संसद भवन में बाबा साहेब की प्रतिमा स्थापित हो सकी—यह पूरी उपलब्धि उनके दृढ़ संकल्प की देन थी।
अद्वितीय मिसाल — संसद में शपथ ‘बाबा साहेब’ के नाम पर: 1977 में वे जनता पार्टी से बयाना लोकसभा क्षेत्र से भारी मतों से विजयी हुए और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाड़िया को पराजित किया। सांसद बनने के बाद उन्होंने ईश्वर के नाम पर नहीं, बल्कि डॉ. बी.आर. अंबेडकर के नाम पर शपथ लेकर इतिहास में अपना नाम दर्ज करा दिया। यह संसद के इतिहास में अब तक की सबसे अनोखी और साहसिक पहल मानी जाती है।
अंबेडकर भवन का पुनरुद्धार तथा बौद्ध धम्म के प्रभावी प्रचारक:
नई दिल्ली के रानी झांसी रोड पर स्थित अंबेडकर भवन, जिसकी स्थापना स्वयं बाबा साहेब ने की थी, 1956 के बाद उपेक्षित हो चला था।
श्याम सुन्दर लाल जी ने इसका पूर्ण जीर्णोद्धार, विस्तार और रख-रखाव का दायित्व अपने कंधों पर लिया।
वे बौद्ध धम्म के प्रमुख अनुयायी और संवाहक थे, और दिल्ली-एनसीआर में अनेक बुद्ध विहारों और प्रतिमाओं की स्थापना में उनकी निर्णायक भूमिका रही।
दिल्ली की अंबेडकर शोभायात्रा की परंपरा के प्रवर्तक: उनके हर साल के सतत प्रयासों से अंबेडकर जयंती पर लाल किले से अंबेडकर भवन तक निकलने वाली विशाल शोभायात्रा और सभा आज दिल्ली की एक ऐतिहासिक परंपरा बन चुकी है। वे अपने पीछे दो पुत्रियाँ, एक पुत्र — श्री अनुरुद्ध लाल, जो दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के महासचिव और लोकप्रिय समाजसेवी हैं — तथा पौत्र-पौत्रियाँ और प्रपौत्र छोड़ गए हैं।
उनका निधन अंबेडकरवादी चिंतन, बौद्ध धम्म और सामाजिक न्याय के आंदोलनों के लिए एक अपूरणीय क्षति है I