बजरंग बली हनुमान जी को भगवान शंकर का अवतार भी माना जाता है। मान्यता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की सेवा के निमित्त भगवान शिव जी ने एकादश रुद्र को ही हनुमान के रूप में अवतरित किया था। हनुमान जी चूंकि वानर−उपदेवता श्रेणी के तहत आते हैं इसलिए वे मणिकुण्डल, लंगोट व यज्ञोपवीत धारण किए और हाथ में गदा लिए ही उत्पन्न हुए थे। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि उपदेवताओं के लिए स्वेच्छानुसार रूप एवं आकार ग्रहण कर लेना सहज सिद्ध है। पुराणों के अनुसार, इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंग बली भी हैं। माता अंजनी एवं पवन देवता के पुत्र हनुमान का जीवनकाल पराक्रम और श्रीराम के प्रति अटूट निष्ठा की असंख्य गाथाओं से भरा पड़ा है। हनुमान जी में किसी भी संकट को हर लेने की क्षमता है और अपने भक्तों की यह सदैव रक्षा करते हैं। हनुमान रक्षा स्त्रोत का पाठ यदि नियमित रूप से किया जाए तो कोई बाधा आपके जीवन में नहीं आ सकती। साथ ही हनुमान चालीसा का पाठ करने से बड़े से बड़ा भय दूर हो जाता है। भगवान श्रीराम की नित उपासना करने वालों पर हनुमान जी खूब प्रसन्न रहते हैं। उनकी मूर्ति स्थापित करके शुद्ध जल, दूध, दही, घी, मधु और चीनी का पंचामृत, तिल के तेल में मिला सिंदूर, लाल पुष्प, जनेऊ, सुपारी, नैवेद्य, नारियल का गोला चढ़ाएं और तिल के तेल का दीपक जलाकर उनकी पूजा करें। इससे हनुमान जी प्रसन्न होकर भक्तों के सारे कष्ट हर लेते हैं।
हनुमान जी के बचपन से जुड़ा एक प्रचलित प्रसंग यह है कि एक बार माता अंजनि हनुमानजी को कुटि में लिटाकर कहीं बाहर चली गयीं। थोड़ी देर में इन्हें तेज भूख लगने लगी। इतने में आकाश में सूर्य भगवान उगते हुए इन्हें दिखायी दिये। इन्होंने समझा कि यह कोई लाल लाल सुंदर मीठा फल है। बस एक ही छलांग में वह सूर्य भगवान के निकट जा पहुंचे और उन्हें पकड़कर अपने मुंह में रख लिया। सूर्य ग्रहण का दिन था, राहु सूर्य को ग्रसने के लिए उनके पास पहुंच रहा था। उसे देखकर हनुमानजी ने सोचा यह कोई काला फल है, इसलिए उसकी ओर भी झपटे। राहु किसी तरह भागकर देवराज इंद्र के पास पहुंचा। उसने कांपते स्वरों में कहा, ‘भगन आज आपने यह कौन सा दूसरा राहु सूर्य को ग्रसने के लिए भेज दिया? यदि मैं भागा ना होता तो वह मुझे भी खा गया होता।
राहु की बातें सुनकर देवराज इंद्र को बड़ा अचंभा हुआ। वह अपने सफेद हाथी पर सवार होकर हाथ में वज्र लेकर बाहर निकले। उन्होंने देखा कि एक वानर बालक सूर्य को मुंह में दबाए आकाश में खेल रहा है। हनुमान ने भी सफेद ऐरावत पर इंद्र को देखा। उन्होंने समझा कि यह कोई खाने लायक सफेद फल है। वह उधर भी झपटे। यह देखकर देवराज इंद्र बहुत ही क्रोधित हो उठे। उन्होंने खुद को अपनी ओर झपटते हनुमान से बचाया और सूर्य को छुड़ाने के लिये हनुमान की ठुड्डी पर वज्र का तेज प्रहार किया। वज्र के प्रहार से हनुमान का मुंह खुल गया और वह बेहोश होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। हनुमान के गिरते ही उनके पिता वायु देवता वहां पहुंच गये। अपने बेहोश बालक को उठाकर उन्होंने गले से लगा लिया। माता अंजनि भी वहां दौड़ती हुई आ पहुंचीं। हनुमान को बेहोश देखकर वह रोने लगीं। वायु देवता ने क्रोध में आकर बहना ही बंद कर दिया। हवा के रुक जाने के कारण तीनों लोकों में प्राणी व्याकुल हो उठे। पशु, पक्षी बेहोश हो होकर गिरने लगे। पेड़ पौधे और फसलें कुम्हलाने लगीं। ब्रम्हाजी इंद्र सहित सभी देवताओं को लेकर वायु देवता के यहां पहुंचे। उन्होंने अपने हाथ से छूकर हनुमान को जीवित करते हुए वायु देवता से कहा, वायु देवता आप तुरंत बहना शुरू करें क्योंकि वायु के बिना हम सब लोगों के प्राण संकट में पड़ गये हैं। यदि आपने बहने में जरा भी देरी की तो तीनों लोकों के प्राणी मौत के मुंह में चले जाएंगे। आपके इस बालक को आज सभी देवताओं की ओर से वरदान प्राप्त होगा। ब्रह्माजी की बात सुनकर सभी देवताओं ने कहा कि आज से इस बालक पर किसी प्रकार के अस्त्र शस्त्र का प्रभाव नहीं पड़ेगा। देवराज इंद्र ने कहा, मेरे वज्र का भी इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसकी ठुड्डी (हनु) वज्र से टूट गयी थी इसलिए आज से इसका नाम हनुमान होगा। ब्रह्माजी ने कहा कि वायुदेव तुम्हारा यह पुत्र बल बुद्धि विद्या में सबसे बढ़ चढ़कर होगा। तीनों लोकों में किसी भी बात में इसकी बराबरी करने वाला दूसरा कोई ना होगा। यह भगवान राम का सबसे बड़ा भक्त होगा। इसका ध्यान करते ही सभी प्रकार के दुःख दूर हो जाएंगे। यह मेरे ब्रह्मास्त्र के प्रभाव से सदा मुक्त होगा। वरदान से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी एवं देवताओं की प्रार्थना सुनकर वायुदेव ने फिर पहले की तरह बहना शुरू कर दिया जिससे तीनों लोकों के प्राणी प्रसन्न हो उठे।