राम नाम के जाप ने डाकू रत्नाकर को बना दिया महर्षि वाल्मीकि

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आज वाल्मीकि जयंती है। महर्षि वाल्मीकि का वास्तविक नाम रत्नाकर था। इनका पालन पोषण भील समुदाय में हुआ था। भील राहगीरों को लूटने का काम करते थे और वाल्मीकि भी इस काम में लिप्त थे। हालांकि इसे लेकर कई और बाते भी पढ़ने को मिलते है। कुछ मान्यताओं के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इनका जन्म महर्षि कश्यप और अदिति के नवे पुत्र वरुण से हुआ था। कुछ लोग भृगु को इनका भाई मानते है।

वाल्मीकि जी के ह्रदय परिवर्तन में नारद जी का बड़ा अहम किरदार माना जाता है। कहा जाता है कि जब नारद जी डाकू रत्नाकर के चंगुल में फंस गए थे तो उनका एक सवाल डाकू रत्नाकर को वाल्मीकि बना दिया। नारद जी का एक सादा सवाल यह था कि क्या तुम्हारे बूरे कर्मों में साझेदार बनेंगे जिसके बाद उनहोंने यह सवाल अपने घरवालों पूछा। जवाब मिला- नहीं। अब रत्नाकर बड़ा झटका लगा और तब से उसने बूरे कर्मों को त्याग करने का फैसला कर लिया।
यह भी कहा जाता है कि नारद जी के ही कहने पर रत्नाकर ने राम नाम जपना शुरू किया था। पर शुरूआत में उनके मुंह से राम-राम की जगह मरा-मरा निकल रहा था। धीरे धीरे यही दोहराते हुए रत्नाकर तपस्या में लीन हो गया और मरा-मरा की जगह राम नाम निकल आया। इस तपस्या से खुश होकर ब्रह्मा जी ने उनका नाम वाल्मीकि कर दिया। आगे चलकर यही वाल्मीकि ने महान ग्रंथ रामायण की रचना की। इन्हे आद‍ि भारत का प्रमुख ऋष‍ियों में से एक माना जाता है। इन्हे संस्कृत भाषा के आदि कवि होने का भी सौभाग्य प्राप्‍त है। वाल्मीकि जी ने ही सीता जी के आखिरी दिनों में उन्हे अपने कुटिया में जगह दी थी जहां मां सीता ने लव और कुश को जन्म दिया था।

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