कार्तिक पूर्णिमा इस वर्ष 23 नवंबर को पड़ रही है और पंडितों के अनुसार इस दिन बहुत सुखद संयोग बन रहा है। कार्तिक पूर्णिमा देवी-देवताओं के लिए खासतौर पर उत्सव का दिवस है इसीलिए इस दिन पर्व-त्योहारों पर हुई भूलों के लिए माफी तो मांगें ही साथ ही पूजन अर्चन कर देवी-देवताओं को इस दिन आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है। इस वर्ष कार्तिक पूर्णिमा शुक्रवार को है और शुक्रवार माँ लक्ष्मी और भगवान विष्णु के पूजन का दिवस भी होता है। इसलिए कार्तिक पूर्णिमा को भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष रूप से पूजा करें, संभव हो तो भगवान सत्यनारायण की कथा सुनें और प्रसाद ग्रहण करें। सायंकाल में तुलसी पूजन अवश्य करें और जल में दीपदान करें इससे अभीष्ट लाभ होगा।
माता लक्ष्मी की विशेष कृपा पानी है तो इस दिन अपने घर के प्रवेश द्वार को उसी तरह सजाएँ जैसे दीपावली के दिन सजाते हैं। प्रवेश द्वार पर अच्छी रौशनी करें, साफ-सफाई करें, अशोक के पत्ते और गेंदे के फूलों से द्वार को सजाएं, प्रवेश द्वार के बाहर रंगोली बनाएं और द्वार की चौखट पर दीपक जलाएँ। शाम को भगवान को खीर, हलवा, मखाने और सिंघाड़े का भोग भी लगाएं। इस दिन दान का विशेष महत्व माना गया है। इस वर्ष का यह अंतिम स्नान पर्व है और अब अगला स्नान पर्व 2019 में 14 जनवरी को मकर संक्रांति के साथ होगा।
पौराणिक महत्व
यह उल्लेख मिलता है कि इस दिन महादेवजी ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का संहार किया था। इसीलिए इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन यदि कृतिका नक्षत्र हो तो यह महाकार्तिकी होती है, भरणी होने से विशेष फल देती है। लेकिन रोहिणी होने पर इसका महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है। मत्स्य पुराण के अनुसार इस दिन संध्या के समय मत्स्यावतार हुआ था। इस दिन गंगा स्नान के बाद दीप दान आदि का फल दस यज्ञों के समान होता है। इस दिन ब्राह्मणों को विधिवत आदर भाव से निमंत्रित करके भोजन कराना चाहिए।
महापुनीत पर्व
ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अंगिरा और आदित्य ने इसे महापुनीत पर्व की संज्ञा दी है। इसीलिए इसमें किये हुए गंगा स्नान, दीप दान, होम, यज्ञ तथा उपासना आदि का विशेष महत्व है। इस दिन कृतिका पर चंद्रमा और विशाखा पर सूर्य हो तो पद्मक योग होता है, जो पुष्कर में भी दुर्लभ है। इस दिन संध्या काल में त्रिपुरोत्सव करके दीप दान करने से पुनर्जन्मादि कष्ट नहीं होता। इस तिथि में कृतिका में विश्व स्वामी का दर्शन करने से ब्राम्हण सात जन्म तक वेदपाठी और धनवान होता है। इस दिन चंद्रोदय पर शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनसूया और क्षमा− इन छह कृतिकाओं का अवश्य पूजन करना चाहिए।
कार्तिक पूर्णिमा की रात्रि में नक्त व्रत करके वृषदान करने से शिवपद प्राप्त होता है। गाय, हाथी, घोड़ा, रथ, घी आदि का दान करने से संपत्ति बढ़ती है। इस दिन उपवास करके भगवद् स्मरण एवं चितन से अग्निष्टोम के समान फल होता है तथा सूर्य लोक की प्राप्ति होती है। इस दिन स्वर्ण के मेष दान करने से ग्रह योग के कष्टों का नाश होता है। इस दिन कन्यादान करने से संतान व्रत पूर्ण होता है। कार्तिक पूर्णिमा से आरम्भ करके प्रत्येक पूर्णिमा को रात्रि में व्रत और जागरण करने से सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं।
व्रत कथा
एक बार त्रिपुर राक्षस ने एक लाख वर्ष तक प्रयागराज में घोर तप किया। इस तप के प्रभाव से समस्त जड़ चेतन, जीव तथा देवता भयभीत हो गये। देवताओं ने तप भंग करने के लिए अप्सराएं भेजीं, पर उन्हें सफलता न मिल सकी। आखिर ब्रह्माजी स्वयं उसके सामने प्रस्तुत हुए और वर मांगने का आदेश दिया। त्रिपुर ने वर में मांगा, ”न देवताओं के हाथों मरूं, न मनुष्य के हाथों।”
इस वरदान के बल पर त्रिपुर निडर होकर अत्याचार करने लगा। इतना ही नहीं, उसने कैलाश पर भी चढ़ाई कर दी। परिणामतः महादेव तथा त्रिपुर में घमासान युद्ध छिड़ गया। अंत में शिवजी ने ब्रह्मा तथा विष्णु की सहायता से उसका संहार कर दिया। तभी से इस दिन का महत्व बहुत बढ़ गया।
इस दिन क्षीर सागर दान का अनन्त माहात्म्य है। क्षीर सागर का दान 24 अंगुल के बर्तन में दूध भरकर उसमें स्वर्ण या रजत की मछली छोड़कर किया जाता है। यह उत्सव दीपावली की भांति दीप जलाकर सायंकाल मनाया जाता है।