सुख दयाल शर्मा
महान शिकारी एवं पर्यावरणविद ऐडवर्ड जिम कार्बेट की जयंती प्रति वर्ष 25 जुलाई को होती है। वे सिर्फ शिकारी या पर्यावरण प्रेमी ही नहीं बहुत अच्छे लेखक भी थे। अमेरिकन साइंटिस्ट बेंजमिल फ्रैंकलिन के अनुसार अपना वजूद साबित करने के लिए इंसान को ऐसा जरूर लिखना चाहिए जो दूसरे पढ़ना चाहें, यदि कोई लिख नहीं पाये तो उसे ऐसा काम जरूर करने चाहिए कि लोग उन कामों के बारे में ऐसा कुछ लिखें जो पढ़ने लायक हो।
जिम कार्बेट पर ये दोनों बातें लागू होती हैं। उन्होंने अपने बारे में जितना लिखा उससे कहीं अधिक उनके प्रशंसकों द्वारा उनके बारे में लिखा जा चुका है। जिम कार्बेट ने अपने जीवन में छह किताबें लिखी। उनके नाम हैं – मैन इटर्स आफ कुमाऊं (1944), मैन ईटिंग लेपर्ड आफ रुद्रप्रयाग (1948), माई इंडिया (1952), जंगल लोर (1953), टेंपल टाइगर (1954) तथा ट्री टाप्स (1955)। अंतिम पुस्तक उनके देहांत के बाद प्रकाशित हुई। इसका प्रारूप उन्होंने अपनी मृत्यु से तेरह दिन पहले ही पूरा किया था।
उन्होंने ये सभी किताबें अंग्रेजी में लिखी हैं। परंतु अंतिम पुस्तक को छोड़ कर बाकी सभी के हिंदी में अनूदित पुस्तकें बाजार में उपलब्ध हैं। पहली पुस्तक ‘मैन इटर्स आफ कुमाऊँ’ की लोकप्रियता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि उन दिनों अमरीका में इसकी अढ़ाई लाख प्रतियां बिकी तथा नौ भाषाओं में इसका अनुवाद हुआ। इससे पहले उन्होंने ‘जंगल स्टोरीज’ नामक पुस्तक भी लिखी थी, जिसकी सिर्फ सौ प्रतियां ही बिक पाईं।
जिम साहब एक सफल लेखक होने के साथ-साथ अच्छे कहानीकार भी थे। उनकी पहली कहानी 1931 में एक पत्रिका में ‘दी पीपलपानी टाईगर’ शीर्षक से छपी। 1932 में एक अन्य साप्ताहिक पत्रिका में वन्य जीवन विवरण पर एक विस्तृत लेख भी प्रकाशित हुआ था। उन्होंने वन्य जीवन पर कई रोमांचकारी छायाचित्र एवं फिल्में बनाकर एक सफल फ़िल्म निर्माता का भी दिग्दर्शन कराया। आम लोगों को वन्य जीवन की ओर जागरूक करने के लिए वह अक्सर इन तस्वीरों एवं फिल्मों का प्रदर्शन करते और प्रकृति के बारे में उन्हीं विस्तृत जानकारी भी देते थे। चित्रकारिता में भी जिम साहब विशेष रूचि रखते थे। उनके प्रिय विषय पक्षी थे, जिनकी उन्होंने कई तस्वीरें भी बनाईं।
19 अप्रैल 1955 को 80 वर्ष की उम्र में इस अंग्रेज़ महामानव ने केन्या के न्येरी शहर में अंतिम सांस ली।