भगवान सूर्य की उपासना का पर्व छठ पूर्वांचल में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस पर्व की धूम अब अब बिहार और उत्तर प्रदेश से निकल कर देशभर में फैल रही है और देशभर में विभिन्न जगहों पर रहने वाले पूर्वांचली लोग छठ पर्व को बड़े धूमधाम से मनाते हैं। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को पूरे भक्तिभाव के साथ मनाया जाता है। माना जाता है कि इस पर्व की शुरुआत द्वापर काल में हुई थी। यह पर्व इस मायने में अनोखा है कि इसकी शुरुआत डूबते हुए सूर्य की आराधना से होती है। बिहार के औरंगाबाद जिले में स्थापित प्राचीन सूर्य मंदिर में छठ पर्व के दौरान वृदह सूर्य मेले का आयोजन किया जाता है।
पर्व से जुड़ी महत्वपूर्ण तिथियाँ
इस बार नहाय-खाय 11 नवंबर को, खरना 12 नवंबर को, सांझ का अर्घ्य 13 नवंबर को और सुबह का अर्घ्य 14 नवंबर को होगा। इस वर्ष छठ पूजा के दिन सूर्योदय सुबह 6 बजकर 41 मिनट पर होगा और सूर्यास्त 17 बजकर 28 मिनट पर होगा। इस बार छठ पर्व रविवार से शुरू हो रहा है और रविवार भगवान सूर्य का दिन माना जाता है इसलिए इसे शुभ संयोग माना जा रहा है। छठ पूजा के दिन उगते और अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देने से समस्त पापों का नाश होता है।
पर्व से जुड़ी कुछ बड़ी बातें
छठ पर्व की शुरुआत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को नहाय खाय से शुरू हो जाती है जब छठव्रती स्नान एवं पूजा पाठ के बाद शुद्ध अरवा चावल, चने की दाल और कद्दू की सब्जी ग्रहण करते हैं। पंचमी को दिन भर ‘खरना का व्रत’ रखकर व्रती शाम को गुड़ से बनी खीर, रोटी और फल का सेवन करते हैं। इसके बाद शुरू होता है 36 घंटे का ‘निर्जला व्रत’। महापर्व के तीसरे दिन शाम को व्रती डूबते सूर्य की आराधना करते हैं और अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देते हैं। पूजा के चौथे दिन व्रतधारी उदयीमान सूर्य को दूसरा अर्घ्य समर्पित करते हैं। इसके पश्चात 36 घंटे का व्रत समाप्त होता है और व्रती अन्न जल ग्रहण करते हैं। इस अर्घ्य में फल, नारियल के अतिरिक्त ठेकुआ का काफी महत्व होता है। नहाय खाय की तैयारी के दौरान महिलाओं के एक ओर जहां गेहूं धोने और सुखाने में व्यस्त देखा जा सकता है वहीं महिलाओं के एक हुजूम को बाजारों में चूड़ी, लहठी, अलता और अन्य सुहाग की वस्तुएं खरीदते देखा जा सकता है।
छठ व्रत के हैं कठिन नियम
इस व्रत को करने के कुछ कठिन नियम भी हैं जिनमें निर्जल उपवास के अलावा व्रती को सुखद शैय्या का भी त्याग करना होता है। पर्व के लिए बनाए गए कमरे में व्रती फर्श पर एक कंबल या चादर के सहारे ही रात बिताता है। इस व्रत को करने वाले लोग ऐसे कपड़े पहनते हैं, जिनमें किसी प्रकार की सिलाई नहीं की होती है। महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहनकर छठ व्रत करते हैं। इस व्रत को करने के बारे में एक मान्यता यह भी है कि इसको शुरू करने के बाद छठ पर्व को सालोंसाल तब तक करना होता है, जब तक कि अगली पीढ़ी की किसी विवाहित महिला को इसके लिए तैयार न कर लिया जाए।
छठ पर्व से जुड़ी कथा
राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ परंतु वह मृत पैदा हुआ। प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुईं और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। राजन तुम मेरा पूजन करो तथा और लोगों को भी प्रेरित करो। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।
कार्तिक मास में दीपावली के छह दिन बाद पड़ने वाला यह पर्व मुख्य रूप से बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के साथ ही नेपाल के कुछ इलाकों में धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन अब इस पर्व का विस्तार देश के अन्य हिस्सों में भी तेजी से हो रहा है और बिहार तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश से जुड़े लोग देश के जिस भी कोने में मौजूद हैं, वहां इस पर्व को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। दिल्ली में यमुना नदी और इंडिया गेट तथा मुंबई में चौपाटी पर उमड़ने वाली छठ व्रतियों की भीड़ इस बात को साबित करती है कि बड़े महानगरों में भी अब इस पर्व को लेकर जागरूकता बढ़ी है।