उत्तराखंड कांग्रेस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और चिन्हित राज्य आंदोलनकारी संयुक्त समिति के केंद्रीय मुख्य संरक्षक धीरेंद्र प्रताप ने 2 अक्टूबर 1994 को मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा कांड में शामिल दो दोषी पैकर्मियों को सीबीआई की अदालत द्वारा आजीवन कारावास दिए जाने पर संतोष व्यक्त किया है उल्लेखनीय है इस कांड में सा राज्य निर्माण आंदोलनकारी गोली के शिकार हुए थे और अनेक उत्तराखंडी महिलाओं के साथ पुलिसकर्मियों ने दुर्व्यवहार किया था उन्होंने कहा कि इस मामले में आज दो पुलिसकर्मियों मिलन सिंह और वीरेंद्र प्रताप को आजीवन कारावास और 25 25000 रुपए का जो जुर्माना सीबीआई अदालत ने किया है यद्यपि उत्तराखंड के लोगों को इसे पूरा संतोष तो नहीं मिलेगा क्योंकि वह सभी चाहते थे कि इनको फांसी की सजा दी जाए परंतु फिर भी स्थानीय अदालत में जो आजीवन कारावास की सजा दी है उसे इस तरह के सरकारी कर्मचारियों द्वारा बजे लोगों की रक्षा करने के लोगों की जान माल और उनकी आबरू पर डकार डालने की कोशिश ऑन की पुनरावृत्ति ना हो ऐसा संभव हो सकेगा उन्होंने सीबीआई के जज की तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने इस बात को समझा कि उत्तराखंड की महिलाएं जो उत्तराखंड राज्य निर्माण के लिए प्रस्तावित 2 अक्टूबर 1994 की लाल किला रैली में भाग लेने जा रही थी कम से कम उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि रेलिया में इस तरह हुआ करता है या ऐसा हो सकता है उन्होंने उम्मीद जाहिर की जब यह मामला और बड़ी अदालत में जाएगा तो माननीय मजिस्ट्रेट इस पर विचार करेंगे और आजीवन कारावास से भी ज्यादा कड़ी सजा मिल सके उत्तराखंड संघर्ष समिति के वकील और सरकारी वकील भी इस मामले में ठोस पर भी करेंगे
उत्तराखंड कांग्रेस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और चिन्हित राज्य आंदोलनकारी संयुक्त समिति के केंद्रीय मुख्य संरक्षक धीरेंद्र प्रताप ने 2 अक्टूबर 1994 को मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा कांड में शामिल दो दोषी पैकर्मियों को सीबीआई की अदालत द्वारा आजीवन कारावास दिए जाने पर संतोष व्यक्त किया है उल्लेखनीय है इस कांड में सा राज्य निर्माण आंदोलनकारी गोली के शिकार हुए थे और अनेक उत्तराखंडी महिलाओं के साथ पुलिसकर्मियों ने दुर्व्यवहार किया था उन्होंने कहा कि इस मामले में आज दो पुलिसकर्मियों मिलन सिंह और वीरेंद्र प्रताप को आजीवन कारावास और 25 25000 रुपए का जो जुर्माना सीबीआई अदालत ने किया है यद्यपि उत्तराखंड के लोगों को इसे पूरा संतोष तो नहीं मिलेगा क्योंकि वह सभी चाहते थे कि इनको फांसी की सजा दी जाए परंतु फिर भी स्थानीय अदालत में जो आजीवन कारावास की सजा दी है उसे इस तरह के सरकारी कर्मचारियों द्वारा बजे लोगों की रक्षा करने के लोगों की जान माल और उनकी आबरू पर डकार डालने की कोशिश ऑन की पुनरावृत्ति ना हो ऐसा संभव हो सकेगा उन्होंने सीबीआई के जज की तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने इस बात को समझा कि उत्तराखंड की महिलाएं जो उत्तराखंड राज्य निर्माण के लिए प्रस्तावित 2 अक्टूबर 1994 की लाल किला रैली में भाग लेने जा रही थी कम से कम उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि रेलिया में इस तरह हुआ करता है या ऐसा हो सकता है उन्होंने उम्मीद जाहिर की जब यह मामला और बड़ी अदालत में जाएगा तो माननीय मजिस्ट्रेट इस पर विचार करेंगे और आजीवन कारावास से भी ज्यादा कड़ी सजा मिल सके उत्तराखंड संघर्ष समिति के वकील और सरकारी वकील भी इस मामले में ठोस पर भी करेंगे