किसी ख्याति प्राप्त व्यक्तित्व की संतान होना, मौके तो आसानी से दिला सकता है, लेकिन इसके साथ ही तुलना का भी सामना करना पड़ता है। चाहे काम की तुलना हो या व्यवहार की या किसी अन्य गुण की।
नई दिल्ली संसदीय क्षेत्र से भाजपा के टिकट पर नए सूरमा के तौर पर चुनाव मैदान में उतरीं दिवंगत दिग्गज भाजपा नेता सुषमा स्वराज की बेटी बांसुरी स्वराज के लिए यही सबसे बड़ी चुनौती है।
लोगों के बीच अपनी पहचान और विश्वसनीयता बनाने की डगर आसान नहीं है। उनके सामने दिल्ली में सत्ताधारी दल आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं तीन बार के विधायक सोमनाथ भारती हैं, जो कांग्रेस के साथ गठबंधन के तहत चुनाव मैदान में हैं।
अब तक तीनों दल अपनी लड़ाई अलग-अलग लड़ते थे, लेकिन गठबंधन के चलते इस बाद मुकाबला आमने-सामने का है, इसलिए नए सूरमा के लिए चुनाव का रण में कांटे का होने वाला है।
दो माह पहले भाजपा प्रत्याशी के रूप में बांसुरी के नाम की घोषणा हुई, तो उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी में ही अपनी स्वीकार्यता को मजबूत करना था। इसके बाद उन्होंने शुरुआत में प्रतिदिन दिल्ली भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के घर जाकर उनसे आशीर्वाद लिया।
इसके साथ ही साथ क्षेत्र में मंडल स्तर पर कार्यकर्ता सम्मेलन कर सबको साथ लिया। उन्होंने करीब 50 दिन तक संसदीय क्षेत्र के अलग-अलग क्षेत्रों में रणनीति के तहत छोटी-छोटी सभाएं कीं।
हर दिन एक से दो सभा और उसमें केंद्रीय योजनाओं की सफलता की कहानी बतानी शुरू की। महिलाओं और युवाओं के साथ सीधा संवाद स्थापित किया। मंदिर और गुरुद्वारे भी गईं। अपने पांच प्रमुख मुद्दों को रखा।
चुनावी सरगर्मी बढ़ने के साथ प्रचार का तरीका भी बदला
अब चुनावी सरगर्मी बढ़ने के साथ ही प्रचार का तरीका भी बदला है। अब सभा से ज्यादा रोड शो के चमक-दमक से मतदाताओं के दिल में उतरने की कोशिश हो रही है।
लोकसभा क्षेत्र की सभी विस सीटों पर है आप का कब्जा
गठबंधन की वजह से टक्कर का मुकाबला है, यह बात भाजपा नेता भी समझते हैं, जिसके चलते सम्मेलनों में कार्यकर्ताओं को यह याद दिलाते रहते हैं। वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव में आप और कांग्रेस के मिले वोट को जोड़ दें, तो अंतर बेहद कम रह जाता है। इतना ही नहीं, नई दिल्ली लोस क्षेत्र की सभी विस सीट पर आप का कब्जा है।
इस क्षेत्र के 25 में से 20 पार्षद भी सत्ताधारी दल के हैं, ऐसे में आप की जमीनी पकड़ मजबूत मानी जा रही है। जिसकी काट के लिए भाजपा ने कार्यकर्ताओं की फौज उतार दी है।
दोनों दलों के कोर वोटर अलग-अलग श्रेणी के हैं। आप की पकड़ जहां बस्तियों में सबसे ज्यादा दिखती है, वहीं मध्यम वर्ग में भाजपा की पकड़ नजर आ रही है। एक तस्वीर यह भी है कि आप के बागी नेता एवं इसी क्षेत्र से विधायक राजकुमार आनंद अब बसपा के टिकट पर नामांकन कर चुके हैं, तो नुकसान भी आप को ज्यादा पहुंचाएंगे। इसका फायदा बांसुरी को मिल सकता है।
मां जीत गई थीं, मैं भी जीत जाऊंगी…
करीब 28 साल पहले वर्ष 1996 में भाजपा की दिग्गज नेता रहीं सुषमा स्वराज पहली बार लोकसभा चुनाव में दक्षिणी दिल्ली से उतरी थीं और उनके सामने कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में कपिल सिब्बल थे।
दोनों पेशे से वकील थे और जीत सुषमा स्वराज की हुई थी। इस बार भी बांसुरी व सोमनाथ दोनों वकील हैं। पहली बार बांसुरी चुनावी महासमर हैं। इस संयोग पर बांसुरी ने कहा कि मां जीत गई थीं, मैं भी जीत जाऊंगी।