
भारत के 1970 के दशक की तस्वीर ज़रा याद कीजिए। उस दौर में कार का मतलब था स्टेटस सिंबल। फिएट और एम्बेसडर जैसी गाड़ियाँ सड़कों पर दौड़ती थीं, लेकिन ये आम आदमी की पहुँच से बहुत दूर थीं। कारें केवल अमीरों और खास लोगों की संपत्ति मानी जाती थीं। मध्यम वर्ग और गरीब परिवारों के लिए कार खरीदना तो जैसे एक सपना था।लेकिन इसी दौर में एक युवा नेता ने एक ऐसा सपना देखा, जिसने आने वाले दशकों में भारत की सूरत बदल दी। यह सपना देखा था — संजय गांधी ने, जो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे
हर परिवार की अपनी कार” का सपना
संजय गांधी का सपना सिर्फ एक कार बनाने का नहीं था, बल्कि एक आम भारतीय के सपनों को पंख देने का था। उन्होंने कल्पना की कि जिस तरह यूरोप और जापान में परिवारों के पास सस्ती और भरोसेमंद गाड़ियाँ होती हैं, वैसी ही कार भारत के हर परिवार की भी होनी चाहिए।
संजय ने 1966 में ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग की पढ़ाई बीच में छोड़ी और इंग्लैंड चले गए। वहाँ उन्होंने रोल्स रॉयस में इंटर्नशिप की और कार निर्माण की बारीकियाँ सीखीं। 1971 में भारत लौटकर उन्होंने “मारुति मोटर्स लिमिटेड” की स्थापना की। उन्होंने कंपनी का नाम हनुमान जी से प्रेरित होकर रखा, क्योंकि हनुमान जी का एक नाम “मारुति” भी है। गुड़गांव का छोटा प्लांट और बड़ा सपना हरियाणा के गुड़गांव (अब गुरुग्राम) में संजय ने एक छोटा-सा प्लांट शुरू किया। कार के डिज़ाइन और प्रोटोटाइप पर उन्होंने खुद काम किया।
फैक्ट्री का लेआउट, मशीनों का चुनाव, हर तकनीकी पहलू को बारीकी से मॉनिटर किया।उनके लिए यह सिर्फ कार बनाना नहीं था, बल्कि भारत को आत्मनिर्भर बनाने और युवाओं के लिए रोज़गार पैदा करने का मिशन था। वे चाहते थे कि गरीब और मध्यम वर्गीय परिवार भी कार खरीदने का सपना देख सके और उसे पूरा कर सके। मुश्किलों से भरा रास्ता
लेकिन संजय गांधी के इस सपने के सामने कई चुनौतियाँ खड़ी हो गईं।
तकनीकी विशेषज्ञता की कमी, सीमित पूंजी, राजनीतिक विरोध और भ्रष्टाचार के आरोप। बहुत से लोग इसे “राजकुमार का हवाई सपना” कहकर मज़ाक उड़ाते थे। 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी और मारुति प्रोजेक्ट का लाइसेंस रद्द कर दिया गया। लेकिन संजय हिम्मत नहीं हारे। वे अपने सपने को सच करने की कोशिशों में लगे रहे।
हादसा जिसने सब बदल दिया
23 जून 1980 की सुबह, देश ने एक दर्दनाक खबर सुनी। संजय गांधी का एक विमान दुर्घटना में निधन हो गया। उनकी उम्र केवल 33 साल थी। उनकी असमय मौत ने मारुति प्रोजेक्ट को गहरी चोट पहुँचाई। लोगों को लगा कि अब यह सपना यहीं दफन हो जाएगा। लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था। इंदिरा गांधी ने बेटे के सपने को जिंदा किया lसंजय की मृत्यु के बाद इंदिरा गांधी ने संकल्प लिया कि बेटे का सपना मरने नहीं देंगी। 1981 में मारुति उद्योग लिमिटेड (Maruti Udyog Limited) का गठन हुआ। जापान की सुज़ुकी मोटर कॉर्पोरेशन के साथ तकनीकी साझेदारी हुई और दिसंबर 1983 में वह ऐतिहासिक दिन आया, जब मारुति 800 लॉन्च हुई। मारुति 800 — कार नहीं, सपनों की चाबी lमारुति 800 ने भारतीय ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में क्रांति ला दी। कीमत इतनी किफायती थी कि मध्यम वर्ग इसे खरीद सकता था।
भरोसेमंद परफॉर्मेंस और आसान मेंटेनेंस ने इसे परिवारों की पहली पसंद बना दिया। यह कार भारतीय सड़कों, भीड़भाड़ और मौसम के लिए बिल्कुल परफेक्ट थी। मारुति 800 सिर्फ एक गाड़ी नहीं, बल्कि भारत के मध्यम वर्ग का सपना थी। यह कार दशकों तक भारत की सबसे सफल कार रही और आज भी इसके नाम का जादू ज़िंदा है। विरासत जो आज भी दौड़ रही है आज मारुति सुज़ुकी भारत की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी है, जिसके पास 40% से भी अधिक मार्केट शेयर है। यह भारत में आम आदमी की कार का प्रतीक है। लाखों परिवारों की पहली गाड़ी मारुति 800 ही रही। यह कहानी है उस सपने की, जिसे एक युवा नेता ने देखा और उसकी मां ने पूरा किया। संजय गांधी को याद कीजिए
आज भी जब सड़क पर कोई मारुति सुज़ुकी की कार दिखे, तो ज़रूर याद कीजिए —यह सिर्फ एक गाड़ी नहीं है, बल्कि संजय गांधी के सपनों की गूंज है। एक ऐसा सपना, जिसने भारत को बदला और करोड़ों भारतीयों को अपनी कार का मालिक बनाया।