बांग्लादेश में एक बेगम की पार्टी को 300 में से 287 सीटें मिल गईं और दूसरी बेगम की पार्टी को मुश्किल से छह सीटें मिलीं। पहली बेगम शेख हसीना वाजिद हैं और दूसरी बेगम खालिदा जिया हैं। बांग्लादेश पिछले 30 साल से इन दोनों बेगमों के बीच झूल रहा है। आवामी लीग की नेता हसीना शेख मुजीब की बेटी हैं और बांग्लादेश नेशनल पार्टी की नेता खालिदा जिया राष्ट्रपति जिया-उर-रहमान की पत्नी हैं। जनरल इरशाद की फौजी तानाशाही से निजात पाते वक्त ये दोनों बेगमें कंधे से कंधा मिलाकर लड़ती रहीं लेकिन उसके बाद दोनों एक-दूसरे की जानी दुश्मन बन गईं। शेख हसीना पिछले दस साल से सत्ता में हैं और अब अगले पांच साल के लिए तीसरी बार चुन ली गई हैं। इस बार जैसी जबर्दस्त विजय उनकी हुई है, आज तक दक्षिण एशिया में किसी नेता की नहीं हुई। विपक्ष के गठबंधन को 300 में से सिर्फ 10-12 सीटों पर सिमटना पड़ा। याने हसीना को लगभग 95 प्रतिशत सीटें मिल गईं। जाहिर है कि इतनी सीटें खो देने पर विपक्ष का बौखला उठना स्वाभाविक है। आश्चर्य यह है कि बीएनपी की नेता खालिदा जिया, जो कि पहले प्रधानमंत्री रह चुकी हैं, आजकल जेल में हैं और उनके जेल में रहने के बावजूद बांग्ला मुसलमानों का दिल जरा भी नहीं पिघला। उनकी प्रतिक्रिया खालिदा के प्रति वैसी ही हुई, जैसी पाकिस्तान के लोगों की नवाज शरीफ के प्रति हुई। क्या मुस्लिम देशों के लोग इतने जागरुक होते हैं कि अपने प्रिय नेताओं पर भ्रष्टाचार सिद्ध होते ही वे उन्हें इतिहास के कूड़ेदान में बिठा देते हैं ?