मोहन भागवत का मोदी सरकार को संदेश, कानून लाकर करें राम मंदिर का निर्माण

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नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने सरकार से अपील की है कि वह कानून बनाकर अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ करे। उन्होंने कहा कि राम मंदिर का निर्माण ‘स्वगौरव’ की दृष्टि से आवश्यक है और मंदिर बनने से देश में सद्भावना एवं एकात्मता का वातावरण बनेगा। विजयादशमी के अवसर पर यहां अपने वार्षिक संबोधन में भागवत ने कहा, ‘‘राम जन्मभूमि स्थल का आवंटन होना बाकी है, जबकि साक्ष्यों से पुष्टि हो चुकी है कि उस जगह पर एक मंदिर था। राजनीतिक दखल नहीं होता तो मंदिर बहुत पहले बन गया होता। हम चाहते हैं कि सरकार कानून के जरिए (राम मंदिर) निर्माण का मार्ग प्रशस्त करे।’’

उन्होंने कहा, ‘‘राष्ट्र के ‘स्व’ के गौरव के संदर्भ में अपने करोड़ों देशवासियों के साथ श्रीराम जन्मभूमि पर राष्ट्र के प्राणस्वरूप धर्ममर्यादा के विग्रहरूप श्रीरामचन्द्र का भव्य राममंदिर बनाने के प्रयास में संघ सहयोगी है। श्रीराम मंदिर का बनना स्वगौरव की दृष्टि से आवश्यक है, मंदिर बनने से देश में सद्भावना व एकात्मता का वातावरण बनेगा।’’ उन्होंने कहा कि कुछ तत्व नई-नई चीजें पेश कर न्यायिक प्रक्रिया में दखल दे रहे हैं और फैसले में रोड़े अटका रहे हैं। उन्होंने कहा कि बिना वजह समाज के धैर्य की परीक्षा लेना किसी के हित में नहीं है।
आरएसएस प्रमुख ने कहा, ‘‘राष्ट्रहित के इस मामले में स्वार्थ के लिए सांप्रदायिक राजनीति करने वाली कुछ कट्टरपंथी ताकतें रोड़े अटका रही हैं। राजनीति के कारण राम मंदिर निर्माण में देरी हो रही है।’’ भागवत ने माओवादियों पर निशाना साधते हुए कहा कि माओवाद की प्रकृति हमेशा से ‘‘शहरी’’ रही है और शहरी नक्सलियों के नव-वामपंथी सिद्धांत का मकसद एक ‘‘राष्ट्रविरोधी’’ नेतृत्व स्थापित करना है जिनके पीछे उनके लिए प्रतिबद्ध अंधप्रशंसक खड़े हों। उन्होंने आरोप लगाया कि ‘‘शहरी माओवाद’’ समाज में नफरत और गलत चीजों को बढ़ावा दे रहा है।

उन्होंने कहा कि माओवाद हमेशा से शहरी रहा है जिसने अपने एजेंडा को पूरा करने के लिए समाज के वंचित तबकों का इस्तेमाल किया। भागवत ने कहा, ‘‘दृढ़ता से वन प्रदेशों में अथवा अन्य सुदूर क्षेत्रों में दबाए गए हिंसात्मक गतिविधियों के कर्ता-धर्ता एवं पीछे रहकर समर्थन करने वाले अब शहरी माओवाद के पुरोधा बनकर राष्ट्रविरोधी आन्दोलनों में अग्रपंक्ति में दिखाई देते हैं।’’ सबरीमला मंदिर में रजस्वला आयु वर्ग की महिलाओं और लड़कियों के प्रवेश की अनुमति दिए जाने के उच्चतम न्यायालय के फैसले की तरफ इशारा करते हुए आरएसएस प्रमुख ने कहा कि 10 से 50 साल तक की लड़कियों एवं महिलाओं के सबरीमला मंदिर में प्रवेश पर मनाही की परंपरा बहुत लंबे समय से थी और इसका पालन किया जा रहा था।
भागवत ने कहा, ‘‘(उच्चतम न्यायालय में) याचिकाएं दाखिल करने वाले वे लोग नहीं हैं जो मंदिर जाते हैं। महिलाओं का एक बड़ा तबका इस प्रथा का पालन करता है। उनकी भावनाओं पर विचार नहीं किया गया।’’ चुनावों में ‘नोटा’ (उपरोक्त में से कोई नहीं) के विकल्प का इस्तेमाल करने वाले मतदाताओं से की गई अपील में भागवत ने कहा, ‘‘चुनाव में मतदान न करना अथवा नोटा के अधिकार का उपयोग करना, मतदाता की दृष्टि में जो सबसे अयोग्य उम्मीदवार है उसी के पक्ष में जाता है, इसलिए राष्ट्रहित सर्वोपरि रखकर 100 प्रतिशत मतदान आवश्यक है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हमारी पहचान हिन्दू पहचान है जो हमें सबका आदर, सबका स्वीकार, सबका मेलमिलाप व सबका भला करना सिखाती है। इसलिए संघ हिन्दू समाज को संगठित व अजेय सामर्थ्य संपन्न बनाना चाहता है और इस कार्य को सम्पूर्ण संपन्न करके रहेगा।’’ भागवत ने कहा, ‘‘आपसे आह्वान है कि संघ के स्वयंसेवकों के साथ इस पवित्र ईश्वरीय कार्य में सहयोगी व सहभागी बनते हुए हम सब मिलकर भारत माता को विश्वगुरु पद पर स्थापित करने के लिए भारत के भाग्यरथ को अग्रसर करें।’’।
उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्गों के लिए बनी हुई योजनाएं, उप-योजनाएं और कई प्रकार के प्रावधान समय पर तथा ठीक से लागू करने को लेकर केंद्र एवं राज्य सरकारों को अधिक तत्परता और संवेदना का परिचय देने की एवं अधिक पारदर्शिता बरतने की आवश्यकता है। भागवत ने यह भी कहा, ‘‘अपनी सेना तथा रक्षक बलों का नीति धैर्य बढ़ाना, उनको साधन-संपन्न बनाना, नयी तकनीक उपलब्ध कराना आदि की शुरूआत हुई और उनकी गति बढ़ रही है। दुनिया के देशों में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ने का यह भी एक कारण है।’’ उन्होंने कहा कि रक्षा उत्पादन में पूर्ण-आत्मनिर्भरता के बगैर भारत अपनी सुरक्षा को लेकर आश्वस्त नहीं हो सकता। अपने संबोधन में आरएसएस प्रमुख ने कहा कि समाज में सभी त्रुटियों को दूर कर, उसके शिकार हुए अपने बंधुओं को स्नेह एवं सम्मान से गले लगाकर समाज में सद्भावपूर्ण और आत्मीय व्यवहार का प्रचलन बढ़ाना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि प्रकृति स्वभाव पर पक्का और स्थिर रहकर ही कोई देश उन्नत होता है, अंधानुकरण से नहीं।

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