रमेश चंद शर्मा
विनायक नरहरि भावे जिन्हें बाबा, संत, आचार्य, भूदान प्रणेता आदि के नाम से भी जाना जाता है, का जन्म महाराष्ट्र के गागोदे गांव में 11 सितम्बर,1895 को माता रुक्मिणि बाई, पिता नरहर राव भावे के यहां हुआ। पिताजी सरकारी नौकरी में थे। माता अशिक्षित मगर आध्यात्मिक, धार्मिक संस्कार वाली थी। बालकोबा भावे, शिवाजी भावे दो छोटे भाई थे।
तीनों भाई आजीवन ब्रह्मचारी रहे। 1904 में परिवार गागोदे से बड़ौदा (वडोदरा) गुजरात में आकर बस गया।
बचपन से ही माता के प्रभाव के कारण बालक विनायक का मन अलग उड़ान भरने लगा। जिससे वे अपनी रुचि की प्रवृत्ति में समय लगाते। बचपन से ही संन्यास, गृह त्याग की भावना बनी। 1914 में विद्यार्थी मंडल बनाया।एक पुस्तकालय बनाया। अध्ययन गोष्ठी आयोजित की जाती।
1916 में 25 मार्च को घर छोड़ काशी, बनारस, वाराणसी पहुंचे। जहां दो माह से अधिक रहे। दोपहर का खाना अन्न क्षेत्र में करते जहां दो पैसे का दान भी मिलता। इनसे एक पैसे का दही तथा एक पैसे की दो शकरकंद से रात्रि भोजन होता। एक स्कूल में दो माह एक दो घंटे रोज पढ़ाया तो चार रुपए मिले।
दो साथी काशी में साथ थे। एक कुछ दिन में ही अपने घर चला गया। दूसरा साथ रहा मगर काशी में ही उसकी मृत्यु हो गई।
1916 में गांधी जी से प्रभावित होकर उनके आश्रम में पहुंचे और आजीवन गांधी से जुड़े रहे। पांच साल जेल में रहे।
विनोबा जी प्रयोग धर्मी थे। जीवन में अनेक प्रयोग किए। पहले अपने ऊपर ही प्रयोग करते थे। कताई, सफाई, खुराक, कांचन मुक्ति, भूदान, श्रमदान, संपत्ति दान, उपवास दान, हृदय परिवर्तन, चंबल बागियों का समर्पण, शांति सेना, तीसरी शक्ति, महिला शक्ति, ब्रह्मंविद्या, सर्वोदय पात्र, जय जगत, जीवन दान, संस्था/संगठन मुक्ति, ग्रामदान, ग्राम कोष, ग्राम स्वराज्य, आचार्य कुल, नागरी लिपि, एबीसी संघ, गौरक्षा सत्याग्रह, क्षेत्र संन्यास, मौन उपवास, सूक्ष्म में प्रवेश, शून्य की तैयारी आदि।
12 साल भूदान पदयात्रा 70 हजार किलोमीटर, 42 लाख एकड़ जमीन दान में प्राप्त। आधी से ज्यादा का बंटवारा। वाहन से तूफानी यात्रा। व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन के पहले सत्याग्रही विनोबा भावे। बापू ने लेख लिखा विनोबा कौन है।
ग्रंथ- गीताई, गीता प्रवचन, साम्यसूत्र, स्थितप्रज्ञ दर्शन, गीताई चिंतनिका, ऋग्वेद सार,
उपनिषदों का अध्ययन, अष्टादशी, मनुशासनम्, गुरुबोध सार, ईशावास्यवृत्ति, भागवत धर्म सार, विष्णुसहस्त्रनाम, ज्ञानदेव चिंतनिका, महाराष्ट्र के संत, विनयांजलि, नामघोषा सार, जपुजी, धम्मपद नवसंहिता, क़ुरान सार, ख्रिस्तधर्म सार, अभंग व्रतें, मधुकर, जीवन दृष्टि, अहिंसा की तलाश, महागुहा में प्रवेश, शिक्षा विचार, आत्मज्ञान और विज्ञान, स्वराज्यशास्त्र, लोकनीति।
आश्रम स्थापना- समन्वय आश्रम, बोधगया, बिहार- 18 अप्रैल, 1954, ब्रह्मंविद्या मंदिर, पवनार, महाराष्ट्र- 25 अप्रैल, 1959, प्रस्थान आश्रम, पठानकोट, पंजाब- अक्तूबर, 1959, विसर्जन आश्रम, इंदौर, मप्र- 15 अगस्त, 1960, मैत्री आश्रम, नार्थ लखीमपुर, असम- 5 मार्च, 1962, विश्वनीडम्, वल्लभ निकेतन, बंगलौर (बंगलुरू) कर्नाटक- 1965 ।
15 नवम्बर, 1982 ब्रह्म निर्वाण- ब्रह्मंविद्या मंदिर, पवनार, धाम नदी के किनारे, महाराष्ट्र।