जानिए सबसे पहले किसने रखा था करवा चौथ व्रत क्या हैं पौराणिक मान्यताएं

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कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत रखा जाता है। इस बार 27 अक्टूबर को शनिवार के दिन करवा चौथ का व्रत रखा जाएगा। पति की लंबी उम्र के लिए इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं।

शाम को चंद्रमा के दर्शन के बाद पूजा करके महिलाएं अपने पति के हाथ से जल ग्रहण करती हैं। करवा चौथ का व्रत सदियों से चला आ रहा है। मगर, क्या आप जानते हैं कि सबसे पहले इस व्रत को किसने किया था। इसे लेकर पौराणिक कथाओं में क्या कहा गया है। यदि नहीं, तो हम आपको बता रहे हैं इस व्रत से जुड़ी खास बातें…

माता पार्वती ने सबसे पहले रखा था यह व्रत

मान्यताओं के अनुसार, सबसे पहले माता पार्वती ने यह व्रत शिवजी के लिए रखा था। इसके बाद ही उन्हें अखंड सौभाग्य प्राप्त किया था। इसलिए इस व्रत में भगवान शिव एवं माता पार्वती की पूजा की जाती है। इसके अलावा सावित्री ने यमराज से अपने पति के प्राणों को वापस मांग लिया था। कहा जाता है कि तभी से महिलाएं इस व्रत का पालन करती हैं।

सभी देवताओं की पत्नियों ने एक साथ रखा था करवा चौथ व्रत

एक बार देवताओं और राक्षसों के बीच भयानक युद्ध छिड़ गया जिसमें देवताओं की हार होने लगी। हार से बचने के लिए सभी देवता ब्रह्राजी के पास गए। तब उन्होंने जीत के लिए उपाय बताया। ब्रह्मदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए।

कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों की विजय के लिए प्रार्थना की। इसके बाद युद्ध में देवताओं की विजय हुई। तब से करवा चौथ के व्रत रखने की परंपरा शुरू हुई।

द्रौपदी ने पांडवों के लिए रखा था करवा चौथ का व्रत

महाभारत में भी करवा चौथ के व्रत का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि जब पांडव नीलगिरि के जंगल में तपस्या और भ्रमण कर रहे थे तब द्रौपदी ने भगवान कृष्ण से अपनी परेशानी बताई और पांडवों की रक्षा करने के लिए उपाय पूछा। तब भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को करवा चौथ का व्रत रखने की सलाह दी, जिसके बाद पांडवों की सकुशल वापसी संभव हुई थी।

करवा और छलनी का महत्व

मिट्टी का करवा पंचतत्व का प्रतीक माना जाता है। इस व्रत में सुहागिन स्त्रियां करवा की पूजा करके करवा माता से प्रार्थना करती है कि उनका प्रेम अटूट रहे। वहीं, छलनी से अपने पति को देखने का मनोवैज्ञानिक कारण यह है कि पत्नी अपने मन से सभी विचारों और भावनाओं को छलनी से छानकर शुद्ध करती हैं।

इसकी एक पौराणिक कथा यह है कि वीरवती नाम की एक सुहागिन महिला थी। वीरवती ने विवाह के पहले साल करवाचौथ का व्रत रखा। मगर, पूरे दिन निर्जला व्रत करने की वजह से उसकी तबीयत खराब होने लगी। भाईयों से वीरवती की दशा देखी नहीं गई, तो उन्होंने चांद निकलने से पहले ही एक पेड़ की ओट में छलनी के पीछे दीप रखकर बहन से कहा कि चांद निकल आया है। बहन ने झूठा चांद देखकर व्रत खोल लिया। इससे वीरवती के पति की मृत्यु हो गई। वीरवती ने दोबारा करवा चौथ का व्रत रखा, जिसके बाद मृत पति जीवित हो उठा।

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