अहोई अष्टमी: क्या है महत्व और व्रत की विधि

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अहोई अष्टमी एक ऐसा त्योहार है, जो उन महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है, जिनकी संतान है. संतान के कल्याण की प्रार्थना के लिए महिलाएं ये त्योहार मनाती हैं.

अहोई अष्टमी व्रत की महिमा का जितना वर्णन किया जाय कम है. इस एक व्रत से आप अपनी संतान की शिक्षा, करियर, कारोबार और उसके पारिवारिक जीवन की बाधाएं भी दूर कर सकते हैं.

अहोई अष्टमी व्रत का महत्व

अहोई अष्टमी व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है. इस दिन अहोई माता (पार्वती) की पूजा की जाती है.

इस दिन महिलाएं व्रत रखकर अपने संतान की रक्षा और दीर्घायु के लिए प्रार्थना करती हैं. जिन लोगों को संतान नहीं हो पा रही हो उनके लिए ये व्रत विशेष है. जिनकी संतान दीर्घायु नहीं होती हो या गर्भ में ही नष्ट हो जाती हो, उनके लिए भी ये व्रत शुभकारी होता है.

सामान्यतः इस दिन विशेष प्रयोग करने से संतान की उन्नति और कल्याण भी होता है. ये उपवास आयुकारक और सौभाग्यकारक होता है.

इस बार अहोई अष्टमी का व्रत 12 अक्टूबर को किया जाएगा

उपवास की विधि

प्रातः स्नान करके अहोई की पूजा का संकल्प लें. अहोई माता की आकृति , गेरू या लाल रंग से दीवार पर बनायें.

सूर्यास्त के बाद तारे निकलने पर पूजन आरम्भ करें.

पूजा की सामग्री में एक चांदी या सफेद धातु की अहोई, चांदी की मोती की माला, जल से भरा हुआ कलश, दूध-भात, हलवा और पुष्प, दीप आदि रखें.

पहले अहोई माता की रोली, पुष्प, दीप से पूजा करें, उन्हें दूध भात अर्पित करें. फिर हाथ में गेहूं के सात दाने और कुछ दक्षिणा (बयाना) लेकर अहोई की कथा सुनें.

कथा के बाद माला गले में पहन लें और गेहूं के दाने तथा बयाना सासु मां को देकर उनका आशीर्वाद लें.

अब चन्द्रमा को अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करें.

चांदी की माला को दीवाली के दिन निकाले और जल के छींटे देकर सुरक्षित रख लें.

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