डिजिटल माध्यम से भी बच्चों को श्रेष्ठ साहित्य से जोड़ना होगा : संजय कुमार गर्ग

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आज के समय की आवश्यकता के अनुरूप हमें डिजिटल माध्यम से भी बच्चों को श्रेष्ठ साहित्य से जोड़ना होगा। हिन्दी अकादमी का प्रयास है कि बच्चों को डिज़िटल माध्यम से श्रेष्ठ हिन्दी साहित्य सरलता से उपलब्ध कराया जाए। यह विचार हिन्दी अकादमी, दिल्ली के सचिव संजय कुमार गर्ग ने पी.जी.डी. ए. वी. महाविद्यालय, नेहरू नगर, श्रीनिवास पुरी, नई दिल्ली में अकादमी द्वारा आयोजित बाल साहित्य और उसका प्रभाव विषयक संगोष्ठी में व्यक्त किये। उन्होंने यह भी बताया कि हिन्दी अकादमी ने हिन्दी साहित्य की छह श्रेष्ठ कहानियों का चित्रकथा के माध्यम से बच्चों के सम्मुख रखने का निश्चय किया है। श्री गर्ग ने इस बात पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज के समय में अच्छे साहित्य के पाठक वर्ग की कमी है।
पी.जी.डी. ए. वी. कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर मनोज कुमार केन के संचालन में हुई इस संगोष्ठी में हिन्दी अकादमी के सदस्य, अनेक साहित्यकार और भारी संख्या में छात्र उपस्थित थे।


मोतीलाल नेहरू कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ. दिविक रमेश ने कहा कि आज का बाल साहित्य है तो बालक का पर बालक के लिए नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि बाल साहित्य सबके लिए है। बाल साहित्य बच्चों की तैयारी के लिए लिखा जाता है परन्तु इसे हर आयु वर्ग के लोगों को पढ़ना चाहिए। आज का बाल साहित्य बच्चों को मित्र या साथी समझकर लिखा जा रहा है इसलिए उसमें ऊपर से उपदेश देने की शैली नहीं है।
नंदन पत्रिका की पूर्व संपादक डॉ. क्षमा शर्मा ने कहा कि अच्छी कहानी, कविता या रचना वही श्रेष्ठ है जो सवाल करना सिखाये। जीवन जीने के आधारभूत तथ्य कभी नहीं बदलते हैं और साहित्य में जीवन के सभी पक्ष पढ़ने को मिलते हैं।
लघु कथाकार बलराम अग्रवाल ने कहा कि बाल साहित्य बच्चों में चरित्र निर्माण करता है और यह जो चरित्र निर्मिति है यह समय के अनुरूप है। बाल साहित्य साहित्य की अन्य विधाओं की तरह ही उसका संबंध लोकरुचि से है इस दृष्टि से जो बात बाल साहित्य को प्रौढ़ साहित्य की तुलना में जनाभिमुक्त बनाता है। आज आवश्यकता है नैतिक प्रसंग शिक्षाप्रद न बनाकर प्रस्तुत किये जायें।
सप्रसिद्ध कहानीकार सुश्री मीनू त्रिपाठी ने कहा कि बाल साहित्य खेल-खेल में ही बच्चों को आसपास के परिवेश और दुनिया से परिचित तो कराता ही है उसकी कोमल जिज्ञासाओं को भी शांत करता है। बाल साहित्य बच्चों को कल्पना की उड़ान भरने हेतु पंख भी देता है साथ ही उनमें साकारात्मक परिवर्तन भी लाता है। बाल साहित्य बच्चों को चुनौतियों का सामना करने में सक्षम बनाता है।
अपने अध्यक्षीय उदबोधन में हिन्दी अकादमी की कार्यकारिणी-समिति के सदस्य डॉ. एस. एस. अवस्थी ने कहा कि पहले विदेशों में रचे गए बाल साहित्य को भारत में अनुवाद के माध्यम से लाया जाता रहा है परंतु अब ऐसा नहीं किया जा रहा है जबकि इसकी आज भी ज़रूरत है। बाल साहित्य की सबसे अच्छी विशेषता यह है कि वो बच्चों के अंदर संस्कार पैदा करता है।
यह संगोष्ठी पी.जी.डी. ए. वी. कॉलेज की प्राचार्या डॉ. कृष्णा शर्मा के सान्निध्य में सम्पन्न हुई।
कार्यक्रम के अंत में हिन्दी अकादमी, दिल्ली के उपसचिव ऋषि कुमार शर्मा ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए संगोष्ठी संपन्न की।

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